शुद्ध मन से परमात्मा के पास जाएं :- नित्यसेन सूरीश्वरजी

योग सार ग्रंथ ’’ और ’’जम्बूकुमार स्वामी शास्त्र ’’ का वाचन शुरू


झाबुआ :-
मनुष्य के लिये चातुर्मास मे आराधना अत्यंत आवश्यक बतलायी हेै, साथ ही परमात्मा की वाणी को श्रवण करना भी आवश्यक बताया गया हेै । जब तक व्यक्ति योग का उपयोग नही करता वह कितनी भी प्रवृत्ति करे निष्फल होती हेै। जीवन को जीवंत रखने के लिये तथा भ्रमण को समाप्त करने के लिये क्रियाएं करना भी आवश्यक है । वर्तमान मे हमने केवल संसार की प्रवृत्ति को ही आवश्यक मान लिया हैे जबकि निवृत्ति मूलक प्रवृत्ति मोक्ष की और ले जा सकती हे ! ’’योग सार ’’ ग्रंथ हमे संसार के बंधन से केैसे निवृत्ति मिले यह समझाता है ।

उपरोक्त प्रेरक प्रवचन परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री विजय नित्यसेन सुरीश्वरजी मसा ने ’’योग सार ग्रंथ ’’ और ’’जम्बूकुमार स्वामी शास्त्र ’’ का वाचन प्रारम्भ करते हुए श्री राजेंद्र सूरी पौषध शाला मे विशाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।इस अवसर पर मुनिराज़ निपुणरत्न विजयजी म.सा. ने योग सार ग्रंथ के बारे मे बताया की इस ग्रंथ मे 5 विभाग हेै जिसमे कुल 206 गाथा का वर्णन आता है ।

उन्होंने प्रथम विभाग की चर्चा करते हुए कहा कि  परमात्मा का स्वरूप केैसा है,े यह हमने अभी समझा ही नही है । हम परमात्मा के पास शुध्द काया और वचन से तो जाते हैे किंतु शुध्द मन से नही जाते हेै, इस कारण से हम परमात्मा की निर्मलता को देख नही पा रहे है । मन पर नियंत्रण सबसे कठिन होता हैे वचन और काया का नियंत्रण तो हो सकता है । आवश्यकता मन को आत्मा के साथ जोड़ने की हैे । इस ग्रंथ के माध्यम से समताभाव हेतु क्या सत्व हमारे पास होना चाहिए समझ सकते है।मुनिराज ने कहा कि हमारे मूल आत्मस्वभाव को खंडित करने में बाह्य्य अभ्यन्तर कारण जिसमे राग , द्वेष और एकान्तर भाव होते हैे,और योग सार ग्रंथ इन सबसे आत्मरक्षण करता है।धर्म श्रवण मे रुचि होने से जीव सम्यक दर्शन की और आगे बढ़ता हैे और अरुचि और देरी करने से जीव स्वयं अपनी आत्मा का अनादर करता हेै ।

ग्रंथ और शास्त्र की शोभा यात्रा निकली -

धर्म सभा के पूर्व योग सार ग्रंथ और जम्बूकुमार स्वामी शास्त्र की लाभार्थी परिवार कमलेश सुजानमलजी कोठारी और प्रदीपकुमार सुजानमलजी परिवार (प्रदीप बस सर्विस) के निवास से शोभा यात्रा निकली । पौषध हाल मे दोनो ग्रंथ और शास्त्र विधि पूर्वक गच्छाधिपति श्री को वोहराया गया। इसके बाद वासक्षेप से प्रथम पूजन अरविन्द मुकेश लोढ़ा, दुसरा पूजन मांगुबेन सकलेचा, तीसरा पूजन पंकज दयडा, चतुर्थ राकेश राजेंद्र मेहता और पंचम पूजन राजेश मेहता परिवार ने किया। दोनो ग्रंथ और शास्त्र की ज्ञान आरती चन्द्रशेखर मनोज मुकेश जैन परिवार ने की। अंत मे गुरुदेव श्री राजेंद्र सूरीश्वरजी म.सा. और पुण्य सम्राट श्री जयंतसेन सूरीश्वरजी म.सा. की आरती जितेंद्र भरत बाबेल ने उतारी ।संचालन डॉ प्रदीप संघवी ने किया।

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