क्या तैयार है हम,जरा विचार करें
प्रेम प्रसादी
जप तप आराधना का शंखनाद
प्रेरणा :- श्री गुरू प्रेम के आजीवन चरणोपासक प.पू. आ. श्री विजय कुलचंद्र सूरीश्वरजी (के सी) म.सा.
चातुर्मास के शुभारंभ के साथ साथ तप, जप, आराधना का शंखनाद भी स्वाभाविक रूप से हो जाता है । कहा जाता है कि एक जैन श्रावक के लिए अगर वर्ष के 12 माह में से चातुर्मास के 4 माह बिना सार्थकता के निकाल दे तो शेष 8 माह शून्य सम हैं । परंतु यह भी सत्य है कि प्रत्येक जीव की योग्यता, क्षमता अलग अलग है । हर श्रावक तपस्या नही कर पाता, हर श्रावक जिनवाणी सुनने का सौभाग्य नही पा सकता परंतु क्या इसी में चातुर्मास समाया है विचार करे।अगर हम तप नही कर पा रहे तो क्या हम उन्नोदरी जैसा तप भी नही कर सकते अथवा द्रव्य सीमा का निर्धारण नही कर सकते ?
अगर हम जिनवाणी नही सुन पा रहे तो क्या कुछ समय गुरु भगवंतों के सानिध्य में स्वाध्याय करने का भाव रख रहे है ?अगर हम अठ्म तप, मासक्षमण नही कर पा रहे तो क्या हम क्रोध, मान, माया, लोभ को त्यागने का मासक्षमण करने का साहस भी नही कर पा रहे ? अगर हमने वर्ष भर रात्रि भोजन एवं अभक्ष्य का सेवन करते है तो क्या इन चार माह में सूर्यास्त पूर्व भोजन एवं कंद मूल आदि का त्याग नही कर सकते ?
अगर हम प्रतिदिन प्रतिक्रमण, सामायिक नही कर पा रहे तो क्या कुछ समय मौन पूर्वक समय व्यतीत करने का विचार भी नहीं कर सकते ? जिनशासन में हर क्रिया के सहज रूप को भी बताया गया है परंतु उस पर चलने का भाव तो रखना ही होगा । अगर ये तय कर ले कि हमसे कुछ नही हो पायेगा तो आपके लिए चातुर्मास का कोई महत्व भी नही ।
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