कोरोना पर दुनिया का पहला उपन्यास

पीपल पर घोंसले नहीं होते! 

समीक्षा

हर स्त्री के चेहरे पर सिर्फ दो आंखें होती हैं, मगर उसकी आत्मा में सैकड़ों खिड़कियां होती हैं| जिनसे वह बाहर की दुनिया के सच और झूठ देखती रहती है | जिनसे वह देखती है अपने पिता, पति, पुत्र, और अपने समाज से जुड़े हर पुरुष को और हमेशा के लिए अपने प्रेमी को |साथ ही हर स्त्री की आत्मा के बहुत भीतर एक रोशनदान होता है जिससे वह आजन्म अपने प्रथम प्रेम को देखती रहती है... चाहे वह कहीं भी हो... मैंने भी उसी रोशनदान से मनु को देखा है |

उपन्यास के लेखक अभिलाष अवस्थी देश के जानेमाने पत्रकार/कथाकार/कवि/ ,' धर्मयुग ' पत्रिका के पूर्व वरिष्ठ उपसंपादक है. उपन्यास ऐमेज़ॉन पर उपलब्ध है.इसे पढ़कर उपन्यास पर अपनी टिप्पणी  अवश्य दें.


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