कर्तव्य-पालन है सबसे बड़ा धर्म- राष्ट्रसंत ललितप्रभ
संबोधि धाम में सत्संग का आयोजन
जोधपुर। राष्ट्रसंत ललितप्रभ सागर ने कहा कि धर्म सात्विक और पवित्र जीवन जीने का दिव्य मार्ग है। यह केवल नरक से बचने के लिए या स्वर्ग पाने के लिए नहीं है अपितु मन के विकारों को शांत करने के लिए और कषायों से मुक्त होने के लिए है। धर्म की चर्चा कम, चर्या ज्यादा कीजिए। धर्म हमें न तो नास्तिक बनाता है और न ही आस्तिक। वह तो हमें केवल वास्तविक बनाता है।
संत प्रवर संबोधि धाम में आयोजित सत्संग समारोह के दौरान धर्म सभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि धर्म पगड़ी और दमड़ी नहीं है कि जब चाहो उतार दो और जब चाहो तब पहन लो या जब चाहो तब दमड़ी की तरह भुना लो। धर्म तो चमड़ी है जो सदा हमारे जीवन का हिस्सा बनी रहती है। जो क्रोध के वातावरण में प्रेम जगा दे वह धर्म है, लोभ के वातावरण में संतोष जगा दे वह धर्म है, जो अहंकार के वातावरण में सरलता और विलासिता के वातावरण में संयम के भाव पैदा कर दे उसी का नाम धर्म है। धर्म को केवल परम्पराओं में बांधने की बजाय प्रेक्टिकल स्वरूप में जीने की कोशिश कीजिए। धर्म की हमें सिखावन है - अपने कर्तव्यों का पालन कीजिए, इंसान होकर इंसान के काम आइए, मनोविकारों पर विजय प्राप्त कीजिए और सब धर्मों का सम्मान कीजिए।
इससे पूर्व मुनि शांतिप्रिय सागर ने भाई बहनों को ओमकार ध्यान का अभ्यास करवाया।
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