5 पॉइंट में जानें गुरु इन्द्रदिन्न सूरिश्वरजी का जीवन

प्रभु वीर के 76 वें पटधर

परमार क्षत्रियोंद्धारक के रूप मे जाना जाता है

1) बोडेली के पास सालपुरा नामक छोटे से गांव में जन्में बालक मोहन  की दीक्षा 18 वर्ष की उम्र में नरसंडा ( गुजरात ) में हुई थी। गुरु वल्लभ के पट्टधर आचार्य श्री विजय समुद्र सूरिश्वरजी ने उन्हें आचार्य पदवी प्रदान की थी एवं पूना में उन्हें अपना पट्टधर घोषित किया था। वे प्रभु वीर के 76वें पट्टधर हुए।

2) आपने जैन धर्म मे दीक्षा लेकर स्वयं का तो उद्धार कर लिया पर आपको चिंता थी कि जिस क्षेत्र में मेरा जन्म हुआ वहां मेरी जाति में भी कोई जैन धर्म नही समझता इस लिए 12 वर्षों तक आपने मान अपमान के कड़वे घूंट पीकर , सूखा रुखा खाकर इस पूरे क्षेत्र का उद्धार किया ।  गुजरात के बड़ोदा , पंचमहाल जिलों के पिछड़े गांवों में रह रहे विभिन्न जातियों के लगभग 5 लाख लोगों को उन्होंने जैन धर्म से जोड़ा, उस क्षेत्र में 60 से अधिक जिनमंदिर बनवाये एवं 100 से अधिक मुमुक्षुयों को दीक्षा दी।

आज इस पूरे क्षेत्र में गुरु इंद्र भूमि के रुप मे जाना जाता है । तभी गुरुदेव को भी परमार क्षत्रियोद्धारक का बिरुद्ध प्राप्त हुआ ।

3) भगवान महावीर के 2600वाँ जन्म कल्याणक के राष्ट्रीय आयोजन में आपकी महती भूमिका रही। राजधानी दिल्ली में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की उपस्थिति में यह कार्यक्रम सम्पन्न हुआ था। 

4) लुधियाना में जरुरतमंद साधर्मिक परिवारों के लिए विजय इंद्र नगर आवासीय योजना के प्रेरणा स्रोत गुरुदेव थे। सेठ अभय कुमार जी ओसवाल ने आपकी प्रेरणा से 750 फ्लैट बनाये अद्भुत जिनालय बनाया और आपके नाम से पूरा नगर बसाया। विजय वल्लभ स्मारक, दिल्ली की प्रतिष्ठा भी गुरुदेव की निश्रा में हुई थी।

5) तपागच्छ अधिष्ठायक श्री माणिभद्र वीर ने गुरुवर इंद्र को साक्षात दर्शन दिए थे। गुरुदेव का संयम बहुत निर्मल था, वे अत्यंत साहसी थे । वयोवृद्ध  अवस्था तथा दो - दो बायपास ऑपरेशन के बावजूद भी उन्होंने वर्षीतप तथा अनेक वर्धमान तप की ओलियों की तपस्या की थी।

अम्बाला को उन्होंने अपनी समाधि भूमि बनाकर सदा के लिए स्थान ग्रहण कर लिया।

ऐसे लाखों भक्तों के हृदय में बसने वाले अनंत उपकारी गुरु इंद्र के दीक्षा दिवस पर वल्लभ वाटिका टीम व शांति वल्लभ टाइम्स परिवार कोटि कोटि वन्दना करते हुए श्रद्धांजलि समर्पित करते है।

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