सभी तीर्थंकरों का जन्म कल्याणक मनाया जायें

भगवान ऋषभदेव जैन धर्म के गंगोत्री हैं तो भगवान महावीर गंगासागर

राजेश जैन लड्डू / भोपाल


गवान ऋषभदेव जैन धर्म के गंगोत्री हैं तो भगवान महावीर गंगासागर,गंगा अपने उद्गम स्थल हिमालय से एक पतली लकीर के रूप में यात्रा शुरू करती है, लेकिन जैसे-जैसे वह आगे बहती बढ़ती है उसमें कई धाराएं आकर मिलती जाती है और वह विशाल होती चली जाती है तथा आगे चलकर गंगासागर का रूप धारण कर लेती है।

जैन धर्म की गंगा भगवान ऋषभ से शुरू होती है 23 तीर्थंकरों के धर्म घाटों से गुजरती हुई महावीर के घाट तक पहुंचते-पहुंचते गंगासागर के विराट स्वरूप को धारण कर लेती है।

महावीर जैन धर्म की भव्य इमारत के भव्य कलश हैं तो ऋषभ देव नींव है।हम कलश को तो पूजे कितु नीव को भी नही भूलना चाहिए।यह बात सच है कि भगवान महावीर की पहचान अहिंसा से है परन्तु यह भी सच है कि वर्तमान युग मे जैन धर्म की उतपत्ति भगवान ऋषभदेव द्वारा हुई थी।

भगवान ऋषभदेव जी इस कालक्रम में जैन धर्म के प्रवर्तक व प्रथम तीर्थंकर है

भगवान ऋषभदेव जी को आदिनाथ भी कहा जाता है, इनके पिता का नाम नाभिराज तथा माता का नाम मरूदेवी था । इनके पिता कुलकर व्यवस्था कें अतिंम 15 वें कुलकर थे!_

भगवान ऋषभदेव जी इस पृथ्वी के प्रथम चक्रवर्ती सम्राट भरत के पिता थे ,इन्ही भरत के नाम पर इस देश का नाम "भारत" रखा गया था।भगवान ऋषभदेव ने असी,मसी और कृषी का निर्माण किया था, गणित और बाह्नी लिपी भी प्रभु आदिनाथ की देन है।

प्रभु ऋषभदेव जी के 100 पुत्र तथा दो पुत्रियाँ ब्रह्मी तथा सुंदरी जी थी । भगवान ऋषभदेव जी बाहुबली जी के पिता थे।भगवान ऋषभदेव जी का जन्म अयोध्या नगरी में हुआ था ,जैन रामायण के अनुसार वह प्रभु श्री राम के पूर्वज थे । प्रभु ऋषभदेव भगवान की आयु 84 लाख पूर्व की थी।भगवान ऋषभदेव से महावीर के बीच 22 ओर भी तीर्थंकर हुए है,जिन्होंने अपने तपोबल से मोक्ष व तीर्थंकर पद प्राप्त किया।


परन्तु वर्तमान परिवेश में हम 23 तीर्थंकरों को मंदिर तक ही सीमित कर केवल भगवान महावीर जन्मोत्सव ही धूमधाम से मनाते है जिससे अन्य समाजो में केवल महावीर को ही जैन धर्म का आदि ओर अंत समझा जाता है।तो आइए इस वर्ष से हम आगामी ऋषभदेव जन्मोत्सव पर भव्य शोभायात्रा का आयोजन कर ऋषभदेव के संदेशों को घर घर पहुंचाते हैं।

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