गुरु के तेज से सारे संशय खत्म हो जाते हैं

गुरु की दीक्षा से भवसागर पर होते है

विजय वसंत सुरीश्वरजी म. सा.


गवान के श्री चरणों मे मैने एक आदमी से पूछा कि गुरू कौन है! वो सेब खा रहा था,उसने एक सेब मेरे हाथ मैं देकर मुझसे पूछा इसमें कितने बीज हें बता सकते हो ? सेब काटकर मैंने गिनकर कहा तीन बीज हैं।उसने एक बीज अपने हाथ में लिया और फिर पूछा इस बीज में कितने सेब हैं यह भी सोचकर बताओ?

मैं सोचने लगा एक बीज से एक पेड़, एक पेड़ से अनेक सेब अनेक सेबो में फिर तीन तीन बीज हर बीज से फिर एक एक पेड़ और यह अनवरत क्रम! वो मुस्कुराते हुए बोले, बस इसी तरह गुरु की कृपा हमें प्राप्त होती रहती है। बस हमें उसकी भक्ति का एक बीज अपने मन में लगा लेने की ज़रूरत है।

गुरू एक तेज हे जिनके आते ही, सारे संशयके अंधकार खतम हो जाते हैं।गुरू वो मृदंग है जिसके बजते ही अनाहद नाद सुनने शुरू हो जाते है।गुरू वो ज्ञान हैं जिसके मिलते ही भय समाप्त हो जाता है।गुरू वो दीक्षा है जो सही मायने में मिलती है तो भवसागर पार हो जाते है।गुरू वो नदी है जो निरंतर हमारे प्राण से बहती हैं।गुरू वो सत चित आनंद है जो हमें हमारी पहचान देता है।गुरू वो बांसुरी है जिसके बजते ही मन और शरीर आनंद अनुभव करता है।गुरू वो अमृत है जिसे पीकर कोई कभी प्यासा नही रहता है!गुरू वो कृपा ही है जो सिर्फ कुछ सद शिष्यों को विशेष रूप मे मिलती है और कुछ पाकर भी समझ नही पाते हैं।गुरू वो खजाना है जो अनमोल है।गुरू वो प्रसाद है जिसके भाग्य मे हो उसे कभी कुछ भी मांगने की ज़रूरत नही पड़ती हैं।  

गुरु के पास बैठो,आंसू आ जाएं, बस इतना ही काफी है।चरण छूने की दौड़ नही बस बेठो भर गुरु के पास, याद रहे भविष्य की कोई आकांक्षा ना हो।मौन प्रार्थना जल्दी पहुँचती हैं गुरु तक क्यों की मुक्त होतीं हैं शब्दों के बोझ से।गुरु का होना आशीर्वाद है, मांगना नहीं पड़ता, गुरु के पास होने से ही सब मिल जाता है। जैसे फूल के पास जाओ खुशबू,  सूर्य के पास गर्माहट व् रौशनी।मांगना मत गुरु के पास सिर्फ जाना उसकी शरण में, सब स्वयं ही मिल जायेगा।

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