संस्कार और धर्म से धरती रहेगी सुरक्षित-


संस्कार और धर्म से धरती रहेगी सुरक्षित-  / 
गुरुमाँ परम पूज्य 105 धर्मेश्वरी माताजी / गणिनी आर्यिका रत्न
दीपक आर जैन /
 परम पूज्य आचार्य श्री १०८ बहुबलीसागरजी म.सा. की शिष्या गणिनी आर्यिका रत्न गुरुमाँ परम पूज्य माताजी 105 धर्मेश्वरी माताजी आज साधु साध्वियो में प्रथम पंक्तियों में आता हैं. जिस युवा उम्र में लोग सपने देखकर समाज में स्थान पाना चाहते है ऐसे समय में उन्होंने उन्होंने मात्र 17 वर्ष की उम्र में   धर्म की रह पर चलने का निश्चय किया तो मनो परिवार के तो पैरों तले जमीन खिसक गयी.आज जैन धर्म मैं दिगंबर साधु साध्वी का जीवन बहुत ही कठिन है.ऐसे में उनके द्वारा दीक्षा का निर्णय सभी के लिए यह आशार्यजनक था. कोल्हापुर जिले के नरदे गांव ( कुंभोज बाहुबली ) में श्रीपाल देसाई व माता शानाबाई के भर जन्मी को बचपन से ही धर्म के संस्कार मिले. सेंद्री त्यागी तपोवन (कुंथलगिरी) में पढाई  बाद धर्म के प्रति रूचि बड़ती गयी और संसार के प्रति मोह कम होता गया और नानी से मिले धार्मिक संस्कारों और गुरु के सानिध्य में वैराग्य की भावना दृढ़ होती गयी और आखिर परम पूज्य आचार्य श्री 108 बाहुबलीजी महाराज ने उन्हें दीक्षित किया और नाम दिया धर्मेश्वरी माताजी और जैन धर्म का ध्वज घर घर लहराने और इसे जन जन तक पहुंचाने के लिए वे सक्रिय हो गयी. 
उन्होंने बताया की दीक्षा लेने के पहले गुरु के गुरु के साथ दो वर्षों तक साध्वी जीवन जीने की शिक्षा ली और उसके बाद उन्हें दीक्षित  किया.  आज उनके सयम   जीवन को 26 साल हो गये है और जिनशाशन के अनेक कार्य उनकी प्रेरणा से हुए  हैं. यह क्रम  अन्व्रत जारी हैं. उनकी प्रेरणा से महाराष्ट्र,कर्नाटक आदि अनेक जगहों पर मंदिरों का निर्माण,जीर्णोद्धार जैसे कार्य हुए हैं जिनमे गलतगा,तमदङी,भायंदर,समडोली आदि प्रमुख हैं. उन्होंने अब तक 25 चातुर्मास देश  अनेक कोनों में कर संस्कारो और धर्म के प्रति रूचि बढ़ाने का प्रयास किया हैं. कर्नाटक के परमानन्द वाडी के अलावा जिनमंदिर के निर्माण हुए हैं.महाराष्ट्र सहित मुंबई में २५ से ज्यादा महिला मंडल स्थापित हुए हैं जो अनेक धर्मोपयोगी कार्य करते हैं. उनके दीक्षा के रजत जयंती पर समाज ने अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया व इसी वर्ष उन्हें गणिनी पद प्रदान किया गया और वे गणिनी आर्यिका रत्न गुरुमाँ परम पूज्य माताजी 105 धर्मेश्वरी माताजी  के नाम से आज जानी जाती हैं. देश के कई राज्यों में चातुर्मास कर धर्म का डंका बजाया हैं.उन्होंने 22 तीर्थंकरों की कल्याणक भूमि सम्मेद शिखरजी व नेमिनाथ भगवान की कल्याणक भूमि गिरनार तीर्थ पर जंगल में विशिष्ट  साधना की हैं.माताजी ने दिव्य प्रवचन,संस्कार भारती,सहस्त्र प्रश्नोत्तरी,दिव्य अर्चना,श्रुत भजन व वृत्त लहान पुण्य महान पुस्तके मराठी में लिखी हैं. ज्योतिष शास्त्र के प्रति उनकी गहन रूचि हैं.   
 माताजी कहती हैं आज की युवा पीढ़ी को समयानुसार समझाना  बहुत जरूरी हैं. समय के साथ और एक हिकर नहीं चले तो आनेवाला समय बहुत काठी हैं.संतो के सुरक्षा के प्रति उन्होंने गहन चिंता व्यक्त की. आये दिन होती दुर्घटनाएं अत्यंत चिंता का विषय हैं जिसपर समस्त जैन समाज को बहुत ही गंभीरता से विचार करना होगा. वे महती हैं की विहार के समय पगार पर आया व्यक्ति उतना ही काम करेगा. साधु-साध्वी की बदौलत ही यह धरती सुरक्षित हैं. इन्ही संतो की बदौलत आज समाज सम्पन्नता के चरम शिखर पर हैं. आज धर्म साधना की नितांत आवश्यकता हैं. धर्म वर्तमान समय में जरूरी और आवश्यक हैं. यही आपके कर्मा को खपाएगा. इंटरनेट ने प्रेम,आस्था,श्रद्धा को खत्म कर दिया हैं. वे कहती हैं की जो अनुभूति साक्षात होगी वह इंटरनेट पर नहीं मिलेगी. जो ऊर्जा आपको मंदिर मैं प्राप्त होगी वह ऑनलाइन दर्शन पर नहीं मिलेगी. 
माताजी ने कहा की जिसके सिर पर गुरु का हाथ,दुनिया देगी उसका साथ. संथारा हमारे लिये जन्मसिद्ध वरदान हैं.जीवन और मृत्यु की आकांशा से मुक्त होकर अध्यात्म में पूर्णरूपेण स्थित होने की विशिस्ट प्रक्रिया को संथारा कहा गया हैं. वे  कहती हैं की जिस एकता का परिचय हमने संथारा के समय दिया वह हमारे हर कार्य में होना चाहिये. आज नये नये मंदिरों की नहीं बल्कि हमारे प्राचीन तीर्थों के जीणोद्धार व उनके सुरक्षा की ज्यादा आवश्यकता हैं. इसके लिये व्यापक जागरूकता की आवश्यकता हैं. गणिनीजी ने कहा की जीवन ईश्वर का मिला सर्वश्रेष्ठ उपहार हैं,इसलिए जीवन के महत्व को समझने का प्रयास करे इसे व्यर्थ न जाने दे.शिक्षा के बारे मैं उन्होंने कहा की आज की शिक्षा जीवन जीने के लिए न होकर भौतिक संसाधनों के परिग्रह पर अधिक जोर दे रही है,जिसका नतीजा आतंक और लालच को प्रश्रय देने के रूप में सामने आ रहा हैं. पढाई के समय ही आध्यात्मिकता की शिक्षा उतनी ही जरूरी हैं जितनी किताबी शिक्षा. प्रेम,करुणा और अहिंसा से ही हम संसार में परिवर्तन ला पाने का सामर्थ्य रखते हैं प्राचीन तीर्थो की रक्षा,संस्कारों का सिंचन,जैन धर्म पहुंचे घर घर यही उद्देश्य हैं.  .     

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

श्रमण संघीय साधु साध्वियों की चातुर्मास सूची वर्ष 2024

पर्युषण महापर्व के प्रथम पांच कर्तव्य।

तपोवन विद्यालय की हिमांशी दुग्गर प्रथम