आर्थिक तंगी न होती तो फौजी होता अनिल मुखलाल झा / भायंदर


आर्थिक तंगी न होती तो फौजी होता 
अनिल मुखलाल झा / भायंदर 


छोटी उम्र में ही माता पिता का साया सर से उठ गया और परिवार में तीन भाई तीन बहनों की जवाबदारी ने स्वप्न नगरी मुंबई आने को मजबूर कर दिया जहां जीवन में बहुत उतार चढ़ाव देखे. आर्थिक परिस्थिति से बदहाल नहीं होता तो आज फ़ौज में रहकर देश की सेवा कर रहा होता कहते हैं 1998 से रिक्शा चला रहे बिहार स्थित सीतामढी जिला में हलदिया गांव के रहनेवाले अनिल मुखलाल झा. अनिल बताते हैं की मुंबई के बारे में जैसा सुना था वैसा नहीं था. 1975 में भायंदर आने के बाद दुध की दुकान में काम किया जहां मात्र 50 रुपये महिना मिलते थे. उसके बाद नौकरी की लेकिन जीवन का संघर्ष काम नहीं हो रहा था. मालिक ने दुकान बंद करने का निर्णय लिया और फिर नौकरी ढूंढने से अच्छा खुद का ही कुछ काम करने का सोचा और 1998 से रिक्शा चलना शुरू किया जो आज भी जारी हैं.
अनिल कहते हैं की इतने साल बीत जाने पर भी हमे अभी तक परमीट नहीं मिल रहा हैं जबकि आरटीओ आज ऐसे लोगों को परमीट दे देता हैं जिन्हे दो दिन भी इस व्यवसाय मैं आकर नहीं हुए हैं. कुछ तो ऐसे है जो परमीट मिलने के बाद इसे बेच देते हैं. शायद उत्तर भारतीय होने के कारण यह भेदभाव तो नहीं होता हैं?परमीट प्रणाली ऑनलाइन होने के बाद भी समस्या जस की तस हैं. सरकार इसमें नियम बनाये की इतने साल रिक्शा चलानेवालों को तुरंत परमीट दिया जायेगा. ऑनलाइन में भी भ्रस्टाचार को नकारा नहीं जा सकता.अनिल को चार लड़की और एक लड़का हैं जिन्हे वो बहुत पढ़ाना चाहता हैं लेकिन मंदी और महंगाई ने काम अब बहुत कठिन कर दिया हैं.पोलिसेवालों के बारे में वो कहता हैं की आप की गाड़ी के सारे कागदपत्र सही हैं और आप सही तरह से ड्राइविंग कर रहे हो तो उनके द्वारा परेशानी खड़ी करने की कोई वजह ही नहीं होगी.
वे महिलाओं को रिक्शा चलने की अनुमति देने के सख्त खिलाफ हैं. वो कहता हैं की ऐसा करने से परेशानी बढ़ेगी. वो लोगों के प्रति नाराजगी जताते हुए कहता हैं की हम यात्रियों के सुख दुःख के साथी हैं,कोई व्यक्ति रोड पर घायल हो जाये या उसे कुछ हो जाये तो हर रिक्शावाला मदद को तैयार रहता हैं लेकिन उनपर कुछ हो जाये तो हर व्यक्ति मुंह फेरकर चला जाता हैं.   वे यात्रियों से अपील करते हैं की एकाद दो रुपये के लिए मचमच न करे. चिल्लर न होने पर ही हम नहीं दे पाते हैं. इसकी वजह से लोग झगड़ा करना शुरू कर देते हैं जो नहीं होना चाहिए. लोग भी हमें सकारात्मक नजरों से देखें और मुख्यधारा से जोड़कर रखे. ताली हमेशा दोनों हाथों से बजती हैं. वैसे भी यात्री हमारे लिये भगवन हैं क्योंकि वे है तभी हमारा घर चलता हैं. वो अपने बच्चों को अच्छी से अच्छी तालीम देकर उन्हें बहुत बड़ा आदमी बनाना चाहता हैं.
प्रस्तुति-दीपक आर जैन 

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