'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' अभियान चला रहे अजय दुबे
बनना था पायलट बन गए व्यवसायी
कुछ करने का जोश, जज्बा और उत्साह के साथ काम में सफल होने का दृढ़ निश्चय लेकर जब कोई अपने काम की शुरुआत करता है तो भगवान भी उनका साथ देता है। ऐसे ही उत्साह और आत्मविश्वास से लबरेज अजय लक्ष्मीकांत दुबे की कहानी है, जो उत्तर प्रदेश के भदोही जिला के मानिकपुर गांव के रहनेवाले हैं। कभी मुंबई में इनके दादा का तबेला हुआ करता था, लेकिन पारिवारिक कलह के कारण तबेले का बिजनेस खत्म हो गया और परिवार आर्थिक तंगी से गुजरने लगा। हालांकि, अजय के पिता लक्ष्मीकांत दुबे मुंबई में रहकर छोटा-मोटा काम कर रहे थे और उनका परिवार जहां गांव में रह रहा था, वहीं अजय भी गांव में रहकर अपनी पढ़ाई पूरी कर रहे थे। आर्थिक तंगी की वजह से मैट्रिक पास करके 1991 में अजय मुंबई आ गए। मुंबई आकर बारहवीं तक पढ़ाई करने के बाद वो आगे की पढ़ाई नहीं कर पाए क्योंकि पैसों की कमी आड़े आने लगी। खैर, रोजगार की तलाश करनेवाले अजय को अपनी शिक्षा को देखकर जल्द ही समझ में आ गया कि उन्हें अपना खुद का कारोबार करना पड़ेगा, लेकिन अपने काम के लिए उनके पास पूंजी नहीं थी। अजय के पिता लक्ष्मीकांत दुबे ने मीरा रोड स्थित शांति नगर में एक दुकान खरीदी थी। अजय ने उसमें एसटीडी पीसीओ खोल दिया। यह वो दौर था जब एसटीडी पीसीओ की दुकान पर गांव में बात करनेवालों की लाइन लगती थी। उसी दुकान में अजय चॉकलेट, आइसक्रीम और पानी भी बेचते थे। परंतु इससे होनेवाली आय उतनी ही थी, जितने में परिवार का गुजारा हो सके,तब अजय ने आधे दुकान में ऑफिस डालकर केशव प्रॉ पर्टी कंसल्टेंट का काम शुरू किया। यह काम अजय को जम गया और अजय ने तेजी से तरक्की करते हुए यहां से लेकर गांव तक अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाते हुए हर कार्य को पूरा किया।
अजय का नाम आज मीरा रोड ही नही बल्कि मुंबई सहित आसपास के गिने-चुने प्रॉपर्टी कंसल्टेंट्स में आता हैं।वे मीरा-भायंदर प्रॉपर्टी वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं।अजय बताते हैं कि मेरा और मेरे पिताजी का सपना था कि मैं पढ़-लिखकर पायलट बनूं, लेकिन आर्थिक तंगी के कारण वो सपना पूरा नहीं हो सका। परंतु मैंने अपने बच्चों को खूब शिक्षित किया और उनकी शिक्षा में पैसों की कमी को आड़े नहीं आने दिया। हमेशा से सामाजिक कार्यों में रुचि रखनेवाले अजय 'सेल्फी विथ डॉटर' मुहिम चलाने वाले हरियाणा के सुनील जगलान से जुड़ गए। समाज में बेटियों की दुर्दशा, भ्रूण हत्या जैसी चीजों से वो आहत होते थे। अजय ने बताया कि हमारे घर में भी बहनें थीं इसलिए बहन-बेटियों का कष्ट मुझसे देखा नहीं जाता। इसी सब को देखकर मैं 2015 में 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' नाम से एक संस्था का रजिस्ट्रेशन करवाकर जरूरत मंद बेटियों की मदद करने लगा। कई बेटियों की पढ़ाई का खर्च उठाया तो कई की विवाह में मदद पहुंचाने का कार्य किया जो आज भी जारी हैं। उनके सामाजिक कार्यों को देखते हुए श्रीलंका की संस्था सीआईएएल ग्लोबल की तरफ से अजय को श्रीलंका बुलाकर 2018 में उन्हें 'डॉक्टरेट' की उपाधि प्रदान की गई।
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