लगातार तीसरी बार फिर सत्ता में होंगे मोदी
मोदी विरोध में कांग्रेस कमजोर लगती है
- राकेश दुबे
कोई नहीं जानता कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ओशो का वह सूत्र वाक्य अपने जीवन में कब उतारा कि ऐसे बनो कि या तो कोई आपको स्वीकार करे या फिर खारिज करे, मगर कोई भी आपकी अवहेलना ना कर सके और ना ही हल्के में ले। ओशो की तरह ही आज नरेंद्र मोदी एक स्थापित ब्रांड हैं, एक मजबूत ब्रांड, देश के किसी भी राजनेता के मुकाबले बहुत मजबूत ब्रांड। वे आज ब्रांड मोदी हैं और बीते दस साल से लगातार देश की सत्ता पर काबिज हैं। संसार के सबसे बड़े लोकतंत्र के मुखिया के तौर पर नरेंद्र मोदी देश के ही नहीं, दुनिया भर के अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग महत्व और मायने रखते हैं। भारत की बहुत बड़ी जनसंख्या के लिए वे भारत के ‘अब तक के सर्वाधिक ताक़तवर प्रधानमंत्री’ हैं, तो विरोधियों की नज़र में वे एक ‘निरंकुश राजनेता’ हैं, जो आने वाले दिनों में देश में चुनावी व्यवस्था ही समाप्त कर देंगे।
मोदी विरोध में कांग्रेस कमजोर लगती है
कांग्रेस की तरह ही ऐसा मानने वाले लोगों की तादाद काफ़ी बड़ी है कि उनके नेतृत्व में दुनिया में भारत की गरिमा गिरी है, मगर सच्चाई यह है कि कांग्रेस और उसके नेताओं के पास मोदी विरोध में तथ्यात्मक वास्तविकता के मुकाबले अनर्गल प्रलाप ज्यादा है, इसी कारण मोदी विरोध में कांग्रेस कमजोर सी लगती है और मोदी व उनकी पार्टी बीजेपी की हैसियत लगातार बढ़ती जा रही है। जिन लोगों को मोदी और बीजेपी की लगातार बढ़ती हैसियत और ताकत पर भरोसा नहीं है, वे 4 जून की प्रतीक्षा करें, जिस दिन मोदी भारी बहुमत से तीसरी बार देश की सत्ता पर काबिज होंगे और कांग्रेस बहुत संभव है कि तीसरी बार भी लगातार विपक्ष के नेता का पद पाने जितनी सीटें भी जीतने में असफल रहे। हालांकि, कांग्रेस की कोशिश है कि वह सत्ता में आए, कांग्रेसियों की भावना है कि उनकी पार्टी मोदी और उनकी बीजेपी को हराए और राहुल गांधी प्रधानमंत्री बने। लेकिन लोकतंत्र में सपने देखने और धरातल पर सफलता प्राप्त करने में जमीन आसमान का फर्क होता है, जिसे कांग्रेस को गहराई से समझना होगा। सही मायने में देखा जाए, तो मोदी विरोध के प्रयास में कांग्रेस मजबूत नहीं हो रही, बल्कि और कमजोर लगती है।
हर तरफ मोदी की दमदार उपस्थिति
आज मोदी सत्ता में हैं, जनता में हैं, मीडिया में हैं, सोशल मीडिया में है, रेडियो में है, तो अखबारों के पहले पन्नों पर भी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राजनीतिक परिदृश्य पर छा जाने की व्याख्या यही है कि वे शहरों के चौराहों पर चमक रहे हैं, गांव की गलियों में उनकी उपस्थिति है, पेट्रोल पंपों पर वे होर्डिंग में सजे हुए हैं, और रेलवे स्टेशनों पर वे सेल्फी पॉइंट के परवान पर चढ़े हुए हैं। अपनी दमदार उपस्थिति से उन्होंने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में अपनी बराबरी तो क्या तुलना करने के लिए भी किसी भी अन्य राजनेता के लिए कोई संभावना नहीं छोड़ी है। मोदी अपनी सरकार की हर योजना के केंद्र में है, तो केंद्र सरकार की हर वेबसाइट के पहले पन्ने पर भी हैं। होर्डिंग और पोस्टर बैंनर में वे हैं, और ज्यादा सही कहें, तो देश की आबादी के बहुत बड़े हिस्से के दिलों में भी वे ही हैं। चप्पे - चप्पे पर इससे पहले किसी भी प्रधानमंत्री की ऐसी उपस्थिति दुनिया के किसी भी देश में नहीं देखी गई। मतलब, साफ है कि कोई मोदी को पसंद कर सकता है, कोई उनके विरोध में खड़ा हो सकता है, लेकिन उनकी अवहेलना नहीं कर सकता। अब चुनाव है, तो बहुत लाजमी भी है कि प्रधानमंत्री मोदी की यह अवाक कर देने वाली उपस्थिति अभी और बढ़ेगी, जो किसी को हंसाएगी, तो किसी को चिढ़ाएगी।
देश को चलाने का मोदी का अपना तरीका
दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ये उपस्थिति या तो लोगों को लुभाती है या फिर विरोधियों को नाक भौं सिकोड़ने को मजबूर करती है, तीसरा कोई रास्ता ही नहीं है। बहुत से लोग मानते हैं कि मोदी अपने आप को एक ऐसे टेक्नोक्रैट की तरह पेश करते हैं जिसके देश को चलाने का अपना तरीका है। इस तरीके में कारोबार, पूंजी निवेश और विकास की महत्ता कायम करने का माद्दा दिखता है और पश्चिमी देशों में भारत का दबदबा बढ़ाने की ताकत भी प्रदर्शित होती है। बस यही एक वह ताकत है, जिसके जरिए मोदी अपना महात्म्य बढ़ाते हैं और कोई भले ही उनके विरोधी हों या समर्थक, मोदी दोनों के बीच उग्र भावनाएँ जगाते हैं, अटल बिहारी बाजपेयी की तरह, या फिर इंदिरा गांधी की तरह। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संयत और संतुलित विश्लेषण शायद ही कभी कहीं देखने को मिलता है। मोदी की आलोचना में मरे जा रहे विरोधी कहते हैं कि उनकी सरकार ने विरोध की आवाज़ों को खरीद लिया है, मीडिया पर कब्जा कर लिया है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंट दिया है,। मगर वास्तव में क्या ऐसा है, यह सबसे बड़ा सवाल है। क्योंकि अगर ऐसा होता, तो विरोध में बोलने वालों की आवाज सुनाई नहीं देती और आप व हम इस बात पर चर्चा भी नहीं कर पाते कि कौन मोदी विरोध में क्या कह रहा है। भले ही कोई कहे कि भारत में लोकतंत्र को बहुत कमज़ोर कर दिया गया है, मगर हिंदू, हिंदुत्व और राष्ट्रवाद पर मोदी का ज़ोर देना भारत की विविधता भरी संस्कृति के अनुरूप है, यह तो आपको भी मानना ही होगा।
मोदी और उनकी बीजेपी की ताकत का कमाल
बीबीसी हिंदी की बेवसाइट पर प्रकाशित एक लेख के मुताबिक अमरीका के जाने-माने रिसर्च संस्थान प्यू रिसर्च सेंटर के अगस्त 2023 में किए गए सर्वे के मुताबिक़, भारत में हर दस में से लगभग आठ लोग, प्रधानमंत्री मोदी के बारे में सकारात्मक राय रखते हैं। इनमें वो 55 फ़ीसद लोग भी शामिल हैं जो उन्हें ‘सबसे अच्छा’ या फिर ‘बहुत अच्छा’ मानते हैं। दुनिया ने भी देखा है कि अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक नायक की तरह स्वागत किया, इससे पहले डोनाल्ड ट्रंप की मोदी के प्रति गर्मजोशी भी दुनिया ने देखी है और उससे पहले बराक ओबामा द्वारा किया गया मोदी के स्वागत के भी हम सब गवाह हैं। कोई प्रधानमंत्री हमारे मोदी के सामने आते ही उनके पैर छूता हैं, तो कोई उनको गले लगाता हैं। किसी के साथ उनके दोस्तना रिश्ते साफ दिखते हैं, तो कोई देश का मुखिया उनको अपना आदर्श बताता है। इन्हीं बहुत सारी वजहों से आज की तारीख में मोदी अजेय है और खास बात यह भी है कि उनके इस अजेय होने में मोदी और उनकी बीजेपी की ताकत का सबसे बड़ा कमाल है, तो विपक्ष का बेहद कमजोर होना भी सबसे बड़ी कमजोरी है। चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर इसी तर्ज पर कहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी की अजेय छवि की वजह विपक्ष का कमज़ोर होना भी बड़ा कारण है। देश देख रहा है कि न तो राहुल गांधी और न ही कोई और नेता इस समय इतना मज़बूत दिख रहा कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के लिए ख़तरा साबित हो सके।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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