पालीताणा तीर्थ के महत्व को बताता अतुलनीय नाटक शत्रुंजय-एक शौर्य गाथा
जिनशासन के तीर्थो के महत्व को जन जन तक पहुंचाना है :- पक्षाल लोढा
गुरु भगवंतों से विनंती
जिनशासन के सभी गच्छाधिपति,आचार्य भगवंत तथा सभी समुदायों के साधु साध्वियों से निवेदन है कि पक्षाल लोढ़ा के इस नाटक शत्रुंजय-एक शौर्य गाथा नाटक का मंचन अपने चातुर्मास के दौरान अवश्य कराने का प्रयास करे ताकि आनेवाली पीढ़ी तीर्थो की महिमा व महत्व को समझ सके।
दीपक जैन
मुंबई :- कहते हैं पालीताणा के कंकर कंकर में भगवान बसते हैं।इस तीर्थ तीर्थ में सिद्ध अनंतों का वास हैं।23 23 तीर्थंकर परमात्माओं ने इस धरती पर विचरण किया है।हजारों गणधर परमात्मा की कल्याणक भूमि के साथ करोड़ों मुनियों ने यंहा मोक्ष प्राप्त कर अपने जीवन का उद्धार किया है।यह महान तीर्थ ऐसे ही पवित्र और श्रेष्ठ नहीं कहा जाता हैं।इस तीर्थ की महत्ता को कायम रखने के लिए लोगो के बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता हैं।
शत्रुंजय-एक शौर्य गाथा,यह नाटक इसी तीर्थ की महिमा को दर्शाता हैं।इस नाटक का निर्देशन पक्षाल प्रकाश लोढ़ा ने बहुत शानदार तरीके से किया हैं।इसकी प्रस्तुति से रोम रोम में रोंगटे खड़े हो जाते है।पक्षाल बताते हैं कि यह 14वीं शताब्दी की एक ऐतिहासिक गाथा है तथा आदिपुर गांव के उन 51 बहादुर निवासियों को श्रद्धांजलि है, जिन्होंने अलाउद्दीन खिलजी के खिलाफ लड़ाई लड़ी और अपनी भूमि, पवित्र स्थानों और मंदिरों की रक्षा के लिए जीवन-बलिदान दिया।
पक्षाल बताते हैं कि शत्रुंजय जैनियों के लिए प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ की पवित्र पहाड़ी है। कहानी गुजरात के शत्रुंजय पर आधारित है, जहां बारोट समाज के निवासी योद्धा परिवारों से हैं, जिन्होंने हमेशा भूमि की रक्षा के लिए युद्ध लड़े हैं। एक दिन, आदिपुर के प्रमुख दादू बारोट को अलाउद्दीन खिलजी के खतरे के बारे में चेतावनी दी जाती है, जो लोगों द्वारा अपना धर्म बदलने से इनकार करने पर निर्दयी हत्याओं के साथ पूरे गुजरात में सभी पवित्र स्थानों और मंदिरों पर कब्जा कर रहा होता है। जब उसे शत्रुंजय पहाड़ियों में एक सुंदर मंदिर के बारे में पता चलता है तो वह उस पर हमला करने और वहां एक किला बनाने की योजना बनाता हैं। खिलजी की हजारों योद्धाओं की विशाल सेना के खिलाफ,आदिपुर के 51 निवासी आगे आते है,और पहाड़ी के धार्मिक, सांस्कृतिक और पवित्र स्थानों को बचाने के लिए अपने जीवन का सर्वोच्च बलिदान देते है।
इस तीर्थ के महत्व को जन जन तक पहुंचाने के लिए व लोगों में इस महाकाव्य गाथा के इतिहास को स्थापित करने के लिए पहलीबार इस नाटक का मंचन 2019 में पुना सादड़ी सम्मेलन में किया गया था और अभी हाल ही में इसका मंचन हाल ही में कांदिवली के तेरापंथ भवन में श्री आत्म वल्लभ सेवा मंडल, सादड़ी (राणकपुर) के सतरंग 2024 में किया गया था|इसकी यंहा बहुत सराहना हुई।सभी कलाकारों का शानदार प्रदर्शन, निर्देशन और संगीत इसे सही मायनों में आकर्षक बनाते हैं।
सालो से यात्रा करते करते जब पालीताणा तीर्थ के महत्व पर 350 पेज के ग्रंथ श्री शत्रुंजय महात्यम को पढ़ा तो समझ मे आया कि इस महान तीर्थ के महत्व को जन जन तक पहुंचाना कितना जरूरी हैं, और इस नाटक को मुहूर्त रूप दिया।वे कहते है एक एक तीर्थो का इतिहास हैं जिसे लोगों तक पहुंचाना आवश्यक हैं।पेशे से आईटी इंजीनियर पक्षाल आनंदजी कल्याणजी पेढी द्वारा संचालित गिरिसेवा में 2015 से जुड़े हुए हैं।इसमें पूरे देश से लगभग 90 टीम हैं, जो समय समय पर तीन दिन तीर्थ का ध्यान रखती हैं।वे कहते हैं कि आजकल पढ़ना वैसे ही कम हो गया हैं, ऐसे में इस तरह के माध्यम युवाओं को धर्म से जोड़ने में बहुत सशक्त माध्यम हो सकता हैं।
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