क्षमा धर्म का आधार है

 आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज क्षमा की प्रतिमूर्ति


अभिषेक जैन / लुहाड़ीया रामगंजमंडी

 क्षमा बराबर तप नहीं, क्षमा धर्म आधार 

ज्ञानी के भूषण क्षमा, क्रोध विनाशन हार

    कहा गया है क्षमा के बराबर  कोई तप नहीं होता और न ही कोई तपस्या है क्षमा ही धर्म का आधार है क्षमा ही जीवन की ज्योति है कहा गया है ज्ञानी का आभूषण भी क्षमा होती है जो व्यक्ति क्रोध मे अपना विनाश कर लेता है व्यक्ति के जीवन मे क्षमा का भाव हमेशा रहना  चाहिये 

आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज क्षमा की प्रतिमूर्ति 

  संस्मरण

क्षमामूर्ति ?

पूज्य आचार्य भगवन उत्तम क्षमा को धारण करने वाले अद्भुत संत है, उनकी हर क्रिया क्षमा से ओतप्रोत है।

एक बार की बात है रात्रि के समय आचार्य श्री जी की वैयावृत्ति चल रही थी तब किसी श्रावक ने आचार्य श्री की आंखों में गलती से अमृतधारा लगा दी, जिसे लगाते ही आचार्य श्री जी की आंखों से आंसू निकलने लगे,लेकिन आचार्य भगवन तो क्षमा के भंडार हैं उन्होंने उस श्रावक को कुछ नहीं कहा और समता पूर्वक उस दर्द को स्वयं सहन कर लिया वास्तव में यह है वास्तविक क्षमा क्रोध का कारण उपस्थित होने पर भी क्रोध नहीं करना यह उत्तम क्षमा का लक्षण है,जो आचार्य श्री जी की प्रत्येक क्रिया में हमे देखने को मिलता है। 

   चंद पंक्तिया 

क्षमा को जीवन मे लाता है ,नव चेतना को लाता है, 

 क्षमा बैर भाव मिटाता है ,धन्य  जीवन वो करता है 

जो क्षमा को धारण करता है ,सबसे क्षमा सबको क्षमा 

       

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