पिता की प्रेरणा व आशीर्वाद ने बनाया संगीतकार :- दिलीप पुनमिया

40 वर्षों से करवा रहे भायंदर के बावन जिनालय में भैरव भक्ति


भायंदर :-
जैन संगीतकार के रूप में दिलीप पुनमिया आज जाना पहचाना नाम है।पिता द्वारा महाराष्ट्र के एकमात्र बावन जिनालय में शुरू कि गई भैरव भक्ति ने उन्हें संगीतकार बनने की और मोड़ दिया और 1986 से शुरू हुआ प्रभु भक्ति का सफर आज तक जारी हैं।

दिलीप बताते है कि 1986 में उनके पिता भागचंदजी पुनमिया, मोहनजी चोपड़ा व पुखराजजी दुजाणा वालो ने बावन जिनालय में भैरव भक्ति की शुरुआत की और यह सफलतापूर्वक आगे बढ़ती गई तब उनके पिता भागचंदजी ने उनसे कहा कि हम रहे ना रहे इस भक्ति को विराम नहों लगना चाहिए और इस तरह मेरे संगीतकार बनने का सफर शुरू हुआ।1986 में शुरू हुई भक्ति आज भी गुरुदेव व नाकोड़ा भैरव देव के आशिर्वाद से हर रविवार को निरंतर जारी है, और आगे भी जारी रहेगी।

संगीतकार बनने के बाद पहला कार्यक्रम उन्होंने भायंदर में दीक्षा महोत्सव का किया,और कार्यक्रमों का क्रम आज तक जारी है।परम पूज्य मुनिराज श्री देवगुप्त विजयजी म.सा.का आगे बढ़ाने में विशेष आशिर्वाद रहा।उनकी निश्रा में उन्होंने पूना क्षेत्र में 750 से ज्यादा भैरव भक्ति के कार्यक्रम प्रस्तुत किये,साथ ही साथ मातृ पितृ वंदना कार्यक्रम न भी उन्हें ख्याति दिलाई।इसके लिए अनेक कार्यक्रमों ने उन्हें सोने की चेन से सम्मानित किया गया।

परम पूज्य आचार्य श्री विजय हर्षसागर सूरीश्वरजी म.सा., आचार्य श्री प्रभाकर सूरीश्वरजी,श्री दिवयचंद्रविजयजी आदि की निश्रा में अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव के कार्यक्रम किये हैं।अनेक देवी देवताओं के महापूजन संपन्न करवाएं हैं।श्री हिरण्यप्रभ सूरीश्वरजी म.सा.की प्रेरणा से निर्मित केनपुरा तीर्थ में अधिष्टायक देव श्री माणिभद्रजी का देढ़ साल तक हर पाचम को हवन करवाया।इस तीर्थ के वे ट्रस्टी भी रहें।रानी स्टेशन निवासी कांतिलाल बच्छावत परिवार की और से नाकोड़ा तीर्थ पर 18 सालों से नाकोड़ा भैरव देव का महापूजन करवा रहे हैं।तालेगांव तीर्थ पर उनका यादगार कार्यक्रम रहा। आचार्य श्री रैवत सूरीश्वरजी म.सा. आदि ठाणा की निश्रा में 108 जोड़ो का भैरव महापूजन करवाया।इसके अनेक छोटे बड़े कार्यक्रम समय समय पर प्रस्तुत किये व आज भी कर रहे है।राजस्थानी और नाकोड़ा भैरव देव के गीतों को प्रस्तुत करने में उनकी विशेष रूचि हैं।2004 में हिंदी साप्ताहिक ठाणे की आवाज की और से ' जैन संगीतरत्न' से सम्मानित किया था। शीघ्र ही 'भैरव रत्न'से सम्मानित किया जायेगा।

वर्तमान में पुनमिया ऑल इंडिया भैरव दरबार के उपाध्यक्ष व श्री राजस्थान जैन युवक मंडल के सक्रिय सदस्य हैं।अपनी सफलता का श्रेय गुरुदेव व अपने माता पिता एवं परिवार को देते हैं।


टिप्पणियाँ

  1. Bheuji ki kurpa se aap hamesha khushyo ka bhandar me raheege.

    जवाब देंहटाएं
  2. भैरव दादा के परम भक्त

    जवाब देंहटाएं
  3. आप सभी का आशीर्वाद बना रहे

    जवाब देंहटाएं
  4. माता पिता के आशीर्वाद से हो रहा है

    जवाब देंहटाएं
  5. जीवन के प्रथम गुरु माता पिता ही होते है उनके बिना जीवन अधूरा है

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत खूबसूरत रचना दीपक जी के द्वारा
    दिलीप पुनिमिया के प्रयास एक साधक के तरह

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

श्रमण संघीय साधु साध्वियों की चातुर्मास सूची वर्ष 2024

पर्युषण महापर्व के प्रथम पांच कर्तव्य।

तपोवन विद्यालय की हिमांशी दुग्गर प्रथम