उलझन

सूरज नांदोला

लझन ये नहीं है की, रिश्तें किसी और के साथ है, 

बस यहाँ हम विरानियों से लड़ रहे है....


उलझन ये नहीं है की, जज़्बात बदल चुके है,

बस यहाँ हम दरबदर मोहताज़ घूम रहे है....


उलझन ये नहीं की, नज़र अंदाज़ कर रहे है,

बस यहाँ हम वादों का फ़र्ज़ निभा रहे है....


उलझन ये नहीं की, आशियाना उजाड़ दिए है,

बस यहाँ हम कोनो में भी छुप रहे है....


उलझन ये नहीं की, ज़िन्दगी छीन लिए है, 

बस यहाँ हम साँसों से हिसाब ले रहे है....

(कविता के रचयिता टेक्स कंसलटेंट हैं)

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