युगपुरुष आचार्य वसंत सूरीश्वरजी का महाप्रयाण

गुरु वल्लभ के हाथों दीक्षित थे महा तपस्वी


पालीताणा :-
पंजाब केसरी,आचार्य गुरु वल्लभ युग के साक्षी, समुदाय वडील ,55वें वर्षीतप आराधक जैनाचार्य श्री विजय वसंत सूरीश्वरजी जी म.सा. का दिनांक भावनगर में अकस्मात देवलोकगमन हो गया था। उनका अंतिम संस्कार पालीताणा तीर्थ लर किया था।

उनके महाप्रयाण का समाचार जन जन को अचंभित एवं हृदय को झकझोरने वाला था। उनके गमन से मानो एक युग के अंत की घोषणा हो गयी। देव भूमि पालीताणा पर धर्म आराधना करते हुए अपने नश्वर शरीर का विसर्जन कर वचन सिद्ध गुरूदेव चिर निद्रा में सो गए।

गुरूदेव की अंतिम यात्रा पंजाबी धर्मशाला, पालीताणा से निकलना तय हुई।उनका वर्ष 2022 का चातुर्मास भी इसी स्थान पर आनंद पूर्वक सम्पन्न हुआ था एवं वर्तमान में भी गुरूदेव वही विराजमान थे। समाचार मिलते ही भारत भर से गुरुभक्त शत्रुंजय महातीर्थ की तरफ रवाना हो गए। दिनांक 11 दिसंबर को पंजाबी धर्मशाला में अंतिम दर्शन करने वालो का तांता लगा हुआ था।

इस अवसर पर अंचलगच्छ के गच्छाधिपति आचार्य श्री कलाप्रभ सागर सूरीश्वरजी भी अपने साधु साध्वी वृन्द के साथ तपस्वी आचार्य भगवंत के पार्थिव देह के दर्शनार्थ पधारे एवं उनको श्रद्धा सुमन अर्पित किए।साथ ही आचार्य विजय यशोभद्र सूरीश्वरजी, मुनि श्री दिव्यरत्न विजय जी (पंजाबी), मुनि श्री भाग्यचंद्र विजय जी, मुनि श्री लोकेंद्र विजय जी म. आदि उपस्थित थे साथ ही अनेको साध्वी मण्डल भी दर्शन एवं अंतिम विदाई हेतु पधारे। गुरु भगवंतों ने तपस्वी आचार्य श्री के जीवन पर प्रकाश डाला। 

श्रावक रत्न राजकुमार ओसवाल जो कि श्री आत्मानंद जैन पंजाबी यांत्रिक भवन के अध्यक्ष है साथ ही अखिल भारतीय श्री आत्म वल्लभ जैन महासंघ,श्री आत्मानंद जैन सभा,फरीदाबाद के भी अध्यक्ष होने के साथ साथ अनेक संस्थाओं के कुशल मार्गदर्शक है,उन्होंने गुरु चरणों में भाव प्रस्तुत करते हुए सभी संस्थाओं एवं श्री मृगावती फाउंडेशन,वल्लभ स्मारक दिल्ली की तरफ से भी श्रद्धा सुमन अर्पित किए।पंजाबी धर्मशाला ट्रस्ट के महासचिव सुनील जैन(RCRD) आगरा वालो द्वारा श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए गुरूदेव की स्वास्थय प्रतिकूलता के समय की परिस्थितियों का वर्णन करते हुए गच्छाधिपति शांतिदूत गुरूदेव की इस हेतु किये गए प्रयासों को संक्षिप्त में बताया। 

जैन ने बताया कि किस प्रकार गच्छाधिपति गुरूदेव अपने पितृसम तपस्वी गुरूदेव के चातुर्मास काल में तो नियमित रूप से सारी परिस्थितियों की नियमित जानकारी तो लेते ही थे साथ ही उनके स्वास्थ्य के प्रति भी जागरूक रहते थे। उनसे प्रायः बात करके तपस्वी गुरूदेव भी प्रसन्न हो जाया करते थे। उन्होंने बताया कि दो दिन पहले स्वास्थ्य की प्रतिकूलता लगने पर जब गच्छाधिपति को बताया तो वह व्याकुल हो उठे जैसे एक बालक अपने पिता की देख रेख करते है वैसे ही थोड़ी थोड़ी देर में बात करके समाचार लेते और दिशा निर्देश देते परंतु विधि का विधान तय था और तपस्वी भगवंत उसको भांप भी गए थे।गुरूदेव के कालधर्म से लेकर उनके अग्नि संस्कार तक के बाद की भी सभी विधि हेतु स्वयं गच्छाधिपति निर्देश दे रहे थे।मन में सिर्फ यही भाव था कि युग पुरुष की विदाई शान से हो।

श्री आत्मानंद जैन महासभा(रजि) के संरक्षक सुरेंद्र मोहन, अध्यक्ष  नरेन्द्र बब्ब एवं कोषाध्यक्ष  राहुल जैन CA भी इस अवसर पर पधारे एवं तपस्वी गुरूदेव को श्रद्धा सुमन अर्पित किए। विजयानंद के सम्पादक राघव प्रसाद पांडेय ने गुरुदेव के दीक्षा के प्रसंग का रोचक वर्णन किया, किस तरह के गुरु वल्लभ के आशीर्वाद से उन्हें जीवन दान मिला एवं किस तरह से वे गुरु आत्म वल्लभ की निशानी थे। विजयानंद की सहसंपादिका एवं वल्लभ वाटिका एडमिन अनु दीपक जैन, जयपुर ने भी कविता के माध्यम से श्रद्धा सुमन अर्पित किए। अनेको गुरुभक्तों ने भी अपने भावों द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित की।

तपस्वी आचार्य भगवंत की भावना एवं गच्छाधिपति आचार्यश्री के निर्देश से पार्थिव देह के अग्नि संस्कार की बोली नहीं करवाई गई। ट्रस्ट मण्डल द्वारा जीवन पर्यंत गुरुदेव की सेवा करने वाले  मनीष (अम्बाला),बॉबी जी,विकासजी, विकसितजी, सुशीलजी (लुधियाना) इन पांचों को इस सुकृत का लाभ दिया गया। इसके अतिरिक्त हुए चढ़ावो में भारत भर से पधारे हुए गुरुभक्तों ने उत्साहपूर्वक भाग लेकर स्वर्णिम इतिहास का निर्माण किया। भारत भर के संघो एवं श्रावकों द्वारा ऑनलाइन भी चंदन, जीव दया आदि में राशि लिखवाई गयी।

पालकी का आरंभ होते ही जय जय नंदा, जय जय भद्दा की ध्वनि से पालीताणा गुंजायमान हो गया। पंजाबी धर्मशाला से कमल मन्दिर की ओर पालकी में सैंकड़ों भक्त हर्ष और शोक के अश्रुओं से गुरुदेव को अंतिम विदाई दे रहे थे। गुलाल उड़ाते, वर्षीदान देते और जयकारे लगवाते चल रहे गुरुभक्त ऐसे लग रहे थे मानो जैसे गुरूदेव को अंतिम विहार करवा रहे हो।

कमल मंदिर पहुंच कर विधिपूर्वक गुरूदेव की अंतिम संस्कार की विधि करवाई गई। नम आंखों से जय कार करवाते हुए सबने गुरूदेव को विदाई दी।पूज्य तपस्वी भगवंत के देवलोकगमन से एक युग का अंत हो गया जिनकी यशोगाथा सदैव गाई जाती रहेगी।

तपस्वी भगवंत की स्वास्थ्य प्रतिकूलता पर दिन रात एक करने वाले एवं अंतिम यात्रा को ऐतिहिसिक रूप देने में श्री आत्मानंद जैन पंजाबी यात्रिक भवन के पदाधिकारियों महामंत्र( सुनील जैन) कोषाध्यक्ष (राकेश जैन CA) एवं विशेष रूप से विद्या विचार मण्डल के गुरु भक्तों का जो अद्भुत सहयोग एवं प्रयास रहा, वो अनुमोदनीय है।

सम्पूर्ण कार्यक्रम को वल्लभ वाटिका सोशल मीडिया की एडमिन टीम एवं सदस्यों द्वारा लाइव प्रसारण के माध्यम से हजारों गुरुभक्तों तक पहुंचाया गया। सभी ने इस प्रयास की अनुमोदना की।

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