जिनशासन में अविस्मरणीय दीक्षा-दिवस

अविस्मरणीय सेवा है इन अनमोल रत्नों की जिनशासन के लिए

राघव प्रसाद पाण्डेय / रानी स्टेशन


जितने कष्ट कंटकों में हैं,

जिनका जीवन सुमन खिला।

 गौरव गन्ध उन्हें उतना ही, 

यत्र तत्र सर्वत्र मिला ॥


जिनशासन देव की जय बोलना सरल है, जिनशासन के कार्य करना भी ज्यादा कठिन नहीं, बड़ी सहजता से समर्पण भाव रखकर सुश्रावक जिनशासन के कार्य करते हैं किन्तु जिनशासन के लिए अपना सर्वस्व समर्पित करना अत्यन्त कठिन है, अकल्पनीय है, असंभव जान पड़ता है। यही दुष्कर कार्य करने का श्रेय लाला चिमनलाल एवं उनकी धर्मपरायणा राजरानी को जाता है जिन्होंने असंभव को भी संभव कर, दुष्कर कार्य को भी सहजता से करके एक ऐसा अद्भुत इतिहास बनाया जिसकी पुनरावृत्ति अशक्य है।

सम्भवतः वर्ष 1964 को बात होगी। 20 कल्याणकों की भूमि श्री हस्तिनापुर जी तीर्थ के शहर (टाउन) की अनाज मण्डी में परम पूज्य मुनिराज श्री प्रकाश विजय जी म. सा. की पावन निश्रा में उपधान तप की माला का महोत्सव चल रहा था। सभा में उपधान तप के आराधक लाला चिमनलाल जैन तथा उनकी धर्मपत्नी उपधान तप आराधिका राजरानी जैन हाथ जोड़कर खड़े हुए और गुरुदेव से चतुर्थ व्रत शीलव्रत लिया। तीनों सुपुत्र अनिल, सुनील तथा प्रवीण भी पास में श्रद्धापूर्वक हाथ जोड़े खड़े थे। मेरी उम्र उस समय लगभग 8 वर्ष रही होगी परन्तु वह दृश्य आज 59 वर्ष बाद भी मेरी आँखों के समक्ष है। सम्भवतः वैराग्य की दिशा में बढ़ने का वह प्रथम चरण रहा होगा। 

इसके बाद तो जिनशासन शांत तपोमूर्ति परम पूज्य आचार्य भगवंत श्री विजय समुद्र सूरीश्वरजी म. सा. ने अपने उपदेशों से पूरे परिवार को संयम पथ पर सफलतापूर्वक आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त किया। परन्तु मित्रों! आप जरा कल्पना तो करें माता-पिता, बाबाजी एवं तीनों बालकों का ऐसा निर्णय जो अन्य कुटुम्बी जन, रिश्तेदारों एवं सभी परिचितों के हृदय को विदीर्ण कर रहा था, न जाने कितनों ने बुरा-भला कहा होगा कि अरे दीक्षा लेनी है तो तुम दोनों ले लो इन मासूम बच्चों ने तो अभी संसार कहाँ देखा है? माताएँ उन तीनों बच्चों से लिपट लिपटकर रोती और पुरुषों को तो यह बात गले ही नहीं उतरती थी। जनसमुदाय तीनों भाइयों की दीक्षा के पक्ष में नहीं था; रिश्तेदार कहते थे हम पालन-पोषण करेंगे परन्तु तीनों भाइयों के नेत्रों में अपार शान्ति, संयम का संकल्प और वैराग्य का सागर हिलोरें मार रहा था। तीनों भाइयों ने एक स्वर में संयम का शंखनाद किया। महानता के शिखर तक पहुंचने के संयम सोपान पर दृढ़तापूर्वक कदम बढ़ा दिए।

यद्यपि भागवती दीक्षा की सम्पूर्ण तैयारी दिल्ली में हुई किन्तु इस ऐतिहासिक भागवती दीक्षा स्थल का सौभाग्य बड़ौत श्रीसंघ को मिला। वि. सं. 2024, मार्गशीर्ष सुदी दशमी को जिनशासन रत्न, शान्त तपोमूर्ति, राष्ट्रसंत आचार्य भगवंत श्री विजय समुद्र सूरीश्वरजी म. सा. की पावन निश्रा में भागवती दीक्षा का मांगलिक कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। परम गुरुभक्त समाजरत्न  लाला खेरायती लालजी (एन. के. परिवार) धर्मपिता बने तथा बड़ौत नगरपालिका के चेयरमेन शीतलप्रसाद जैन ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए दीक्षा की सम्पूर्ण व्यवस्था की। चिमनलाल जी का नाम मुनि श्री अनेकान्त विजय जी म. सा. राजरानी का नाम साध्वी श्री अमितगुणाश्री जी म. सा., विलायती राम जी (बाबाजी) का नाम मुनि श्री नयचन्द्र विजय जी म. सा., अनिल कुमार का नाम मुनि श्री जयानन्द विजयजी म..सा., सुनील कुमार का नाम मुनि श्री धर्मधुरन्धर विजयजी म. सा.व प्रवीण कुमार का नाम मुनि श्री नित्यानन्द विजयजी म. सा. रखा गया।

महातपस्वी मुनिराज श्री अनेकान्स विजय जी म. सा. दीक्षा के बाद से ही गहन तपस्या में लीन हो गए। दीक्षा के पश्चात् प्रथम चातुर्मास बीकानेर में किया।वंहा 51 उपवास की तपस्या की।दूसरा चातुर्मास लुणावा में किया जंहा 61 उपवास व मुंबई के चातुर्मास में 71 वें उपवास में देवलोक हो गया।

वर्तमान में बंधु त्रिपुटी आचार्य त्रिपुटी है। शासन रत्ना साध्वी अमितगुणा श्रीजी (माताजी महाराज) अत्यंत प्रसन्न हैं और क्यों न हो? विश्व के समस्त धर्मों में ऐसे अद्भुत अविस्मरणीय प्रसंग कम मिलते है कि सम्पूर्ण परिवार अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दीक्षा ले ले। जिनशासन के लिए ये तीनों आचार्य भगवंत अनमोल हैं। स्वयं को उन्होंने जिस तरह से ज्ञान,ध्यान, आराधना, साधना में लीन रखकर जिनशासन की सेवा में तत्पर रखा है,और इसकी जितनी अनुमोदना की जाए कम है। ज्ञान प्रभाकर, गोडवाड़ भूषण, स्वर्ण संत आचार्य श्री जयानंद सूरीश्वरजी म. सा. बड़े भैया के रूप में जाने जाते हैं तथा भोले बाबा के रूप में विख्यात हैं। बड़े भैया की सहजता, सरलता, संगीत का ज्ञान, भजनों का मधुर गायन समस्त गुरुभक्तों को मंत्रमुग्ध कर देता है।

श्रुतभास्कर आचार्य श्री विजय धुरंधर सूरीश्वर जी म. सा. को आगमिक ज्ञान, विद्वत्ता, प्रवचन दक्षता, आगम संशोधन आदि महती कार्य सम्पूर्ण श्रमण- श्रमणी परिवार में आदरणीय बनाते हैं।वर्तमान में आप भी गच्छाधिपति हैं।

शांतिदूत कल्याणक तीर्थोद्धारक,गच्छाधिपति आचार्य श्री विजय नित्यानन्द सूरीश्वरजी म. सा. के लिए तो क्या लिखूं ? माता-पिता, दोनों भाई, सभी पारिवारिक जन सभी को जिनको अधिक स्नेह मिला, गुरुओं की अपार कृपा बरसी और वे प्रगति करते हुए श्रीमद् आत्म-वल्लभ- समुद्र-इन्द्रदिन गुरुदेवों की परमोज्जवल परंपरा के क्रमिक पट्टधर तथा गच्छाधिपति बने। समाज के अगणित कार्यों को अपनी शान्त शीतल मधुर वाणी के प्रभाव से पूर्ण कर पूज्य गुरुदेवों के दर्शन एवं विचारों के अनुरूप देश के कोने कोने में ज्ञान, शिक्षा तथा परोपकार के अनेकविध लक्ष्यों को पूर्ण करने के साथ जिनशासन की अनवरत सेवा कर रहे हैं। ऐसे गुरु भगवन्त परिवार के स्वर्णिम दीक्षा दिवस पर संपूर्ण जैन समाज आपके श्रीचरणों में सादर वंदन- अभिनन्दन करता है। आचार्य बन्धु त्रिपुटी व माता जी म. सा. स्वस्थ रहते हुए जिनशासन सेवा में अभिवृद्धि करें, यही प्रभु महावीर के चरणों मे मंगल कामना।






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