प्रत्येक व्यक्ति के मन मे बिराजमान हैं गुरुदेव

संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के चरणों में भावपूर्ण विनयांजलि

सरिता जैन / हिसार


आज हम प्रत्येक प्राणी के मन में विराजमान अपने श्रद्धेय गुरु संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज को अपनी भावभीनी विनयांजलि देते हैं।

यह इस युग का परम सौभाग्य है कि आचार्य श्री जैसे अलौकिक व्यक्तित्व ने इस कलयुग में जन्म लेकर इसे भी सतयुग के समान सुन्दर बना दिया और हमारा यह सौभाग्य रहा कि हमने आचार्य श्री के युग में जन्म लेकर अपने जीवन को सार्थक कर लिया। 

हमने प्रत्यक्ष रूप में न तो भगवान महावीर को देखा और नही उनके समवशरण के वैभवशाली सौन्दर्य को, लेकिन आचार्य श्री के रूप में हमें साक्षात् तीर्थंकर का स्वरूप दिखाई देता था और उनकी प्रवचन सभा में बैठ कर समवशरण जैसी अलौकिक व दिव्य अनुभूति होती थी। अपनी छोटी-सी लेखनी से उनके अनन्त गुणों का वर्णन करना तो इतना ही असम्भव है, जितना गागर में सागर को भरना। यह तो सूर्य को दीपक दिखाने के समान है।

लगभग 6-7 साल पहले मैं यहाँ के सर्वोदय भवन में मोटिवेशनल स्पीच देने जा रही थी। विषय था - संस्कारों का महत्त्व।उस दिन सुबह जैसे ही मैंने टी. वी. खोला, तो आचार्य श्री के दर्शन हुए। उनके द्वारा दिए गए मार्गदर्शन को मैंने तुरंत अपनी स्पीच में शामिल किया, क्योंकि वे केवल जैनों के नहीं, जन-जन के आराध्य व मार्गदर्शक थे। वे आदेश  देकर नहीं, अपने आचरण से आदर्श  प्रस्तुत  करते थे। यहाँ तक कि उत्कृष्ट  समाधि मरण कैसा होता है, यह भी उन्होंने प्रैक्टिकल कर के दिखाया।पिछले एक सप्ताह में अनेक  लोगों ने उनके समान  समाधि सल्लेखना की भावना भाई। यदि मरण  उनके समान  बनाना है तो पहले अपना जीवन उनके समान  बनाना होगा।

आचार्य  श्री ने पूछा कि क्या तुमने कभी साइकिल की दुकान पर दुकानदार को पंचर लगाते हुए देखा है? मैंने मन ही मन में कहा - हाँ जी! बहुत बार देखा है। 

वे बोले - बताओ! वह सबसे पहले क्या करता है?फिर वे बोले कि चलो! मैं ही बताए देता हूँ। सबसे पहले वह साइकिल के पहिए की ट्यूब बाहर निकाल कर उसमें हवा भरता है।अरे जब पहिए की ट्यूब में हवा टिक ही नहीं रही, तो वह हवा क्यों भर रहा है? हाँ! यही तो जादू है। वह हवा से भरी ट्यूब को पानी से भरे बर्तन में घुमा-घुमा कर देखता है कि कहाँ से हवा बाहर निकल कर पानी में बुलबुले बना रही है। बस! उसे पता चल जाता है कि यह छिद्र ही हवा को टिकने नहीं दे रहा। इसे बंद कर देने से हवा बाहर नहीं निकल सकेगी। वह तुरन्त लोहे की रेती से रगड़ कर छिद्र को साफ करता है और उस पर कुछ मसाले का पेस्ट बना कर लगाता है। इससे छिद्र बंद हो जाता है और पहिए में हवा टिकने लगती है।

सरिता जैन/शिक्षिका
उन्होंने बताया कि हमारे समाज में भी कुछ इसी प्रकार के छिद्र बने हुए हैं, जिनमें से हमारी बताई हुई धर्म व सदाचरण की बातें तुरन्त दिमाग से निकल जाती हैं और समाज की गाड़ी धर्म के मार्ग पर डगमगाने  लगती है। वह चाह कर भी आगे नहीं बढ़ पाती। यदि हमें जन-जन को धर्म के मार्ग पर ले कर जाना है, तो सबसे पहले उन छिद्रों को खोज कर उनकी मरम्मत करनी होगी और उन्हें सुधारना होगा।वे जानते थे कि इतना धर्म सिखाने पर भी लोग इसे अपने आचरण में क्यों नहीं ला रहे? उनकी दूरदृष्टि ने पहचाना कि लोगों को केवल धर्म की बातें सुनाने से समाज में परिवर्तन नहीं आएगा। पहिले उनकी मूलभूत आवश्यकताओं को जानना होगा और उन्हें पूरा करना होगा। 

इसीलिए उनके निर्देशन में अच्छे स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेदिक पद्वति से चिकित्सा पर आधारित पूर्णायु संस्थान का निर्माण, हिंसा को रोकने के लिए गौशालाओं का निर्माण और बेरोज़गारी को रोकने के लिए हथकरघा जैसी योजनाओं का शुभारम्भ किया गया।

उन्होंने समाज के शैक्षणिक स्तर को उन्नत बनाने के लिए बालिकाओं को विशेष  रूप  से शिक्षित बनाने का बीड़ा उठाया और प्रतिभास्थली का निर्माण करवाया। धार्मिक पाठशालाएं खोलने के लिए देश के समस्त लोगों को प्रोत्साहित किया।      वे इंडिया नहीं, एक आत्मनिर्भर भारत का निर्माण होते हुए देखना चाहते थे, जहाँ सब को अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने की सुविधा हो, तभी हम निर्वाण-पथ पर कदम बढ़ा सकेंगे।

वे अलौकिक व्यक्तित्व व दिव्य शक्ति के धारी थे। कविहृदय व उच्चकोटि के साहित्यकार, मूकमाटी के रचयिता व हिन्दी, संस्कृत, कन्नड़, प्राकृत आदि अनेक भाषाओं के विद्वान थे।   

यदि हम उन्हें सच्चे मन से अपनी विनयांजलि अर्पित करना चाहते हैं तो हमें भी इन कार्यों में जहाँ तक हो सके, अपना सहयोग अवश्य देना चाहिए। छोटे स्तर से आरम्भ किया गया कार्य एक दिन वटवृक्ष बन सकता है और भारत को विश्व गुरु बना सकता है।अपने विशाल संघ के रूप में वे हमें एक अनमोल निधि विरासत में देकर गए हैं, जिनमें उनका ही अंश दिखाई देता है।हम भी यही प्रार्थना करते हैं कि वे सदैव हमारे हृदय में  विराजमान रहें और इसी प्रकार हमारा आध्यात्मिक व लौकिक पथ प्रशस्त करते रहें। और अंत  में 

-जनम  जनम का साथ  है तुम्हारा हमारा, हमारा तुम्हारा।         करेंगे सेवा हर जीवन में, पकड़ो हाथ हमारा.......जनम  जनम  का साथ  है तुम्हारा हमारा, हमारा तुम्हारा।

आचार्य श्री के चरणों में हमारा कोटि-कोटि नमन, कोटि-कोटि वंदन।

(लेखक सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका हैं।)

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