जन-जन कि आस्था के केंद्र श्री विजय शांति सूरीश्वरजी म.सा.

दुनिया भर में फैला हैं गुरुदेव का परचम


महा सुद पांच दीन उजवाय, ओगणीसे छीयालीस साल गवाय वसंत पंचमी दिव्य प्रभाते, जन्म भयो गुरुराय....

हापुरुषों का जीवन परोपकार और पवित्रता का ही दुसरा रूप होता है। निस्वार्थ और निष्काम भाव से गंगा की तरह प्यास बुझाना, फूलों की तरह सुगंध लूटाना, सूर्य की तरह अंधकार हटाना उनका ऐसा वैभवी स्वभाव होता है। संस्कार के बिना जीवन बेकार है। जन जीवन को सांस्कृतिक धरातल देने के लिए ही संत का निर्माण होता है। दिव्य दृष्टा श्री विजय शांतिसूरि गुरुदेव की अधिकतम आभा प्रभा संस्कारों की प्रेरणा के लिए प्रवाहित हुई है। श्रेष्ठ योगाचार्य श्री विजय शांति सूरिश्वरजी म.सा.भारतीय नभ के दैदीव्यामन उज्जवल नक्षत्र है। यह वह अद्वितीय ज्ञान सूर्य हैं जो अपनी दिव्य उर्जा से प्रच्छन्न अज्ञान अंधकार को दिव्य किरणों के भेद रहे हैं। गुरुदेव के आत्मा की गहराइयों में डुबकी लगाकर प्रभु प्रीती, भक्ति और मस्ती में एकाकर होने वाले एक अ‌द्भुत आध्यात्मिक योगी । अध्यात्म की गहराई और साधना की उंचाई गुरुदेव ने अपने कठोर ध्यान और योग से पाई है।

वि सं. 1946, दिनांक: 25 जनवरी 1890, .. मरू प्रदेश के मणादर गाँव में माता वसुदेवी की रत्नकुक्षी से एक दिव्यात्मा का अवतरण हुआ। नाम रखा गया सगतोजी।16 वर्षों बाद असार संसार को त्याग कर वैराग्य भावों में रमण कर रामसीन की पवित्र भूमि पर वि.स. 1961, 9 फरवरी सन् 1905, मंगलवार, बसंत पंचमी के दिन ही जिनशासन में दीक्षित हुए। धवल श्रमण वेश को पाकर सगतोजी से बने श्री शांति विजय जी महाराज साहब। बसंत पंचमी के दिन गुरुदेव का जन्म और दीक्षा दिन है। तीर्थ विजयजी महाराज की निर्मल निश्रा में ज्ञानजनपूर्वक चारित व आध्यात्म विकास के साथ जिनधर्म का चहुंमुखी उत्कर्ष करना शांतिगुरु की अप्रमत्त चेतना का दिख्य लक्ष्य रहा। उन्होंने इस लक्ष्य की संपूर्ती आत्म साधन द्वारा की। वे अहिंसक क्रान्ति के सूत्रधार एवं संस्कारी जीवन के संवाहक थे। सच्चाई यह है कि उनके अद्भुत और असीम व्यक्तित्व को शब्दों की परिधि में बंध पाना संभव नहीं।

गुरुदेव के जीवन से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए और उनके मार्मिक, मर्जुल एवं मोहन जीवन को हृदय भाव से पढ़कर हमें प्रेरणा लेनी चाहिए । उनका जीवन प्रखरता सह मधुरता, कोमलता सह कठोरता विनम्रता सह विद्वता यशस्विता सह निस्मृहता जैसे परस्पर गुणों को उजागर करता है। आज हम सभी यह धारणा करें कि गुरु शांतिविजयजी के अलौकिक एवं अर्निवचनीय जीवन महल में जाकर कृपा, करूणा, कोमलता का प्रसाद पाएंगें। जैसे प्यास तो उसकी हो बुझे, जो सरिता में डुबकी लगाये, इसी तरह महापुरूष की जीवन कथा, गौरव गाथा एवं प्रभावक प्रथा को आत्मसात् करके पवित्रता व प्रेरकता का हमें पाथेय पाना है।

गुरुदेव की महानता का गुणगान करना कठिन है। हर जाति, धर्म के लोग उनके दर्शन करने आते हैं। केरल के महान संत रामदासजी ने अपने एक पत्र में गुरुदेव का गुणगान, बड़े ही अ‌द्भुत भावों से किया :- गुरुदेव आप सर्व विद्यमान अविनाशी सत्य है। जो रूप और नाम से परे है। जिसकी प्रकृत पवित्र, प्यारो व शांत है। आप शक्ति है; आप सगुण है, आप ही गतिरत बदलने वाली दुनिया है, आप ही ब्रह्मांड है, आप एक है, आप अनेक भी है, आप उच्च से उच्चतम है,संपूर्ण है।

गुरुदेव का जीवन हम सभी के लिए, एक आदर्श है। हमें गुरुदेव का जीवन चरित्र को पढ़कर उनके त्याग, तपस्या, साधना, प्रेम आदि गुणों को समझना चाहिए। जब हम इन गुणों को अपने जीवन में लाते हैं. तब हम अपने जन्म को सचेत और महत्वपूर्ण बनाते हैं। उनके उपदेशों से हमें संवेदना और विवेक की प्राप्ति होती है। हम अपने आध्यात्मिक सौंदर्य और आत्म शक्ति को बढ़ा सकते हैं। जिससे हम अपने लक्ष्य को एक नवीन दृष्टीकोण से देख पाते हैं।

गुरुदेव की जन्मतिथि पर हम अपने जन्म को सार्थक बनाने के लिए, हमें उनसे प्राप्त ज्ञान और उपदेशों को अमल में लाने की कोशिश करनी चाहिए। जिससे आत्म विकास होगा। संतों के जीवन से प्रेरणा लेने का अर्थ यह नहीं कि हम संत बन जाए, बल्कि हमें उनके मार्गदर्शन से अपने जीवन को आध्यात्मिक और संवेदनशील बनाने का प्रयास करना चाहिए। अंत में हमें यह समझना चाहिए कि अपने जन्म को गुरु जन्मतिथि पर सार्थक बनाने का एक कदम उठायें, जिससे गुरु के प्रति सच्ची भक्ति और श्रध्दा सर्मित होगी।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

श्रमण संघीय साधु साध्वियों की चातुर्मास सूची वर्ष 2024

पर्युषण महापर्व के प्रथम पांच कर्तव्य।

तपोवन विद्यालय की हिमांशी दुग्गर प्रथम