आचार्य श्री 108 प्रसन्नसागर जी महाराज डॉक्टर ऑफ लिट्रेचर की मानद उपाधि से विभूषित

आंखों से ही सत्य के विराट स्वरूप को देखना आवश्यक है।


उदगांव :-
बसंत पंचमी के पावन अवसर पर कुंजवन में हुए स्वर्णिम स्टार्टअप एंड इनोवेशन विश्विद्यालय का विशेष दीक्षांत समारोह मे भारत वर्ष के प्रमुख दिगंबर जैन संत अंतर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्नसागर जी महाराज को डॉक्टर ऑफ लिट्रेचर की मानद उपाधि से विभूषित किया गया। विश्वविद्यालय की ओर से इसके कुलपति एवं अध्यक्ष ऋषभ जैन ने अन्य अधिकारियों के साथ अंतर्मना अचार्य श्री 108 को उपाधि प्रदान की। विश्विद्यालय द्वारा प्रदान किए गए प्रशस्ति पत्र में आचार्य श्री की 557 दिनों की दीर्घ सिंहनिष्क्रीडित व्रत की उत्कृष्ट साधना एवं अन्य साधना प्रयोगों का उल्लेख किया गया है।

समारोह को अचार्य श्री के अलावा उपाध्याय श्री 108 पीयूष सागरजी एवं मुनि श्री‌108 सहज सागरजी ने भी संबोधित किया। समारोह का प्रारंभ अकादमिक शोभायात्रा से हुआ। क्रांतिकारी संत मुनि श्री तरुण सागर जी महाराज ने वर्ष 2015 में दिल्ली में दूसरे तपस्वी सम्राट के रूप में उनके नाम की घोषणा करते हुए मुनिराज के तपस्या की सराहना की थी। वर्ष 2018 में, अहमदाबाद में, गुजरात के महामहिम राज्यपाल ने उन्हें साधना महो दधि और गुजरात केशरी के सम्मान से अलंकृत किया और पवित्र आचार्य श्री को अपना सर्वोत्तम सम्मान और भक्ति प्रदान की।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वर्ष 2019 में उनके गुरु गणचार आचार्य श्री पुष्पदंत सागरजी महाराज ने उन्हें गुरु पूर्णिमा के अवसर पर तपाचार्य की उपाधि से सम्मानित किया और जैन साधुओं की अंकदीकर परंपरा में उन्हें आचार्य पद से सुशोभित किया। इसके अलावा वर्ष 2020 में जम्बूद्वीप, हस्तिनापुर में महावीर जन्म कल्याणक की पूर्व संध्या पर गणिनी आर्यिका ज्ञानमती माता जी ने उन्हें प्रवचन प्रभाकर की उपाधि से विभूषित किया। आचार्य श्री को विभिन्न संस्थाओं द्वारा विभिन्न अवसरों पर अनेक उपाधियों से अलंकृत किया गया है। उन्होंने दो दर्जन से अधिक जेलों में अपने उपदेश दिए हैं और कैदियों के साथ गहन बातचीत की है और जेल से रिहा होने के बाद उन्हें नैतिक/प्रामाणिक जीवन जीने के लिए प्रेरित किया है। आचार्य श्री  ने अपने 35 वर्ष के तपस्वी जीवन में अहिंसा संस्कार पद यात्रा के माध्यम से भारत के 30 राज्यों में एक लाख पच्चीस हजार किलोमीटर से अधिक की यात्रा की है और अहिंसा संस्कार की शिक्षाओं को जन-जन तक पहुंचाकर उन्हें पवित्र जीवन जीने की प्रेरणा दी है। वे भगवान महावीर की भाति वाणी के विशाल मेघ बनकर ऐसी वर्षा करते हैं कि संकीर्ण मानसिकता वाले मस्तिष्कों की सारी दरारें बंद हो जाती हैं, मन का मैल धुल जाता है, प्यासी धरती की प्यास बुझ जाती है, निर्मल आनन्द की पवन अपनी शीतलता से जलते हुए मनुष्यों के दुःखों को बुझा देती है।


आंखों से ही सत्य के विराट स्वरूप को देखना आवश्यक है। सत्य वह नहीं है जो दिखाई देता है, क्योंकि वह सत्य का केवल एक भाग है। वह हमेशा लोगों को सत्य के विभिन्न आयामों के प्रति जागरूक करते हैं, ताकि समग्र अवधारणा को समझा जा सके।

आचार्य श्री ने कि स्वयं को बदले बिना, प्रामाणिक बने बिना, दुनिया नहीं बदलेगी। वह प्रेरणा देते हैं कि अध्यात्म का चिंतन ही भारत का सूर्य है, इसलिए आवश्यक है कि आध्यात्मिक संत इस धरती पर मानवीय संवेदनाओं को ऊर्जावान बनाने की पहल करें, ताकि चारों ओर शांति हो।वे कहते ​​है कि आध्यात्मिक जागृति से ही भारत दोबारा विश्व गुरु बन सकेगा।

कुलपति ने उनकी अभूतपूर्व तपस्या, उनकी चेतना को मान्यता देते हुए इसकी प्राचीन पवित्रता में विकसित हुआ, विभिन्न प्रतिज्ञाएं करके अपनी आत्मा को जानने की उनकी खोज, शारीरिक आवश्यकताओं पर उनका पूर्ण नियंत्रण, आंतरिक सफाई से लेकर आत्म-अनुशासन तक उनकी तप प्रथाओं का स्पेक्ट्रम, उनकी इच्छाओं, इंद्रियों, श्वास और श्वास पर नियंत्रण मन और आंतरिक सद्भाव प्राप्त करने के लिए, मैं अकादमिक परिषद और प्रबंधन बोर्ड की ओर से आपसे परम पूज्य आचार्य श्री 108 प्रसन्नसागर जी महाराज को नमोस्तु करते हुए डॉक्टर ऑफ लिटरेचर (मानद उपाधि) की उपाधि प्रदान करने का अनुरोध करता हूं। ‌

गुरुदेव का परिचय :-

जन्म :– 23-07-1970
जन्म नाम :-  दिलीप जैन
जन्म स्थान :-छत्तरपुर (म. प्र.)
माता :–  शोभा जैन
पिता :– अभय कुमार जैन
गृहत्याग :– 21-01-1986
ब्रह्मचर्य व्रत :– 12-04-1986
मुनि दीक्षा :– 18-04-1989, महावीर जन्म कल्याणक
मुनि दीक्षा स्थान :– परतापुर, राजस्थान
मुनि दीक्षा गुरू :- परम पूज्य वात्सल्य दिवाकर गणाचार्य :- श्री 108 पुष्पदंत सागर जी महाराज
आचार्य दीक्षा गुरु :- आचार्य 108 श्री पुष्पदंत सागर जी महाराज
आचार्य दीक्षा स्थली सोनकच्छ, देवास, मध्य प्रदेश
आचार्य दीक्षा दिनांक – 29-11-2020

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