श्री अंतरिक्ष पार्श्वनाथजी में शीघ्र शुरू होगी पूजा

भावयात्रा में भाव विभोर हुए लोग

दीपक जैन


भायंदर :-  महाराष्ट्र के अति प्राचीन श्री अंतरिक्ष पार्श्वनाथजी तीर्थ में मुख्य भगवान की पक्षाल (अभिषेक),पूजा शीघ्र ही शुरू होगी।ट्रस्टी ललित धामी ने बताया कि इस तीर्थ मंदिर के प्रबंधन का अधिकार को लेकर जैन धर्म के श्वेतांबर और दिगंबर समुदाय में विवाद था। 22 फरवरी 2023 को उच्च न्यायालय ने इस तीर्थ के प्रबंधन का अधिकार का निर्णय श्वेतांबर समुदाय के पक्ष में दिया था।इस तीर्थ में सुबह 6 से रात्रि 10 बजे तक क्रमबद्ध श्वेतांबर और दिगंबर दोनों समुदायों के श्रद्धालु 3 -3 घंटे तक पूजा करेंगे।

मीरा भायंदर के इतिहास में पहली बार परम वंदनीय श्री अंतरिक्ष पार्श्वनाथजी महातीर्थ की भाव यात्रा का आयोजन  भायंदर पश्चिम के स्टेशन रोड पर स्थित संतोक टॉकीज ग्राउंड में किया गया था। इस भाव यात्रा में करीब हजारों जैन समुदाय के श्रद्धालु शामिल हुए थे।


तीर्थ के ट्रस्टी ललित धामी ने बताया कि इस भाव यात्रा का आयोजन श्री अंतरिक्ष पार्श्वनाथजी महातीर्थ के महत्व और इसके प्राचीन इतिहास से जैन समुदाय को परिचित कराने के लिए किया गया था। उन्होंने बताया कि भगवान की प्रतिमा को दो स्तर का लेप पूर्ण हो चुका है और तीसरा स्तर बहुत जल्दी पूरा होगा और पक्षाल (अभिषेक) पूजा शीघ्र शुरू होगी। ज्ञात हो भगवान की प्रतिमा जमीन से ऊपर हवा में स्थित है इसलिए यह तीर्थ अंतरिक्ष पार्श्वनाथ जी के नाम से प्रसिद्ध है।

भायंदर पश्चिम में इस भावयात्रा का आयोजन शहर की विभिन्न संस्थाओं की ओर से किया गया इस तीर्थ के लिए संघर्ष करने वाले पंजाब केसरी आचार्य विजय वल्लभ सूरीश्वरजी की शिष्या साध्वी सुमती श्रीजी, आचार्य सम पन्यास प्रवर चंद्रशेखर विजयजी, श्री हेमरत्न सूरीश्वरजी पन्यास श्री विमलहंस विजयजी, पन्यास प्रवर श्री परमहंस विजयजी आदि के अलावा इस तीर्थ के लिए संघर्ष करने वाले सांकलचंद भाई, रविंद्रलाल हरकचंद भाई के बारे में भी जानकारी दी गई।

भाव यात्रा मे विराज शाह ने बहुत तरीके से इस महातीर्थ का इतिहास बताया। संगीतकार पारस गड़ा, मनन संघवी, राज फोफानी ने अपनी संगीतमय प्रस्तुति से लोगो को भाव विभोर कर दिया. कार्यक्रम का संचालन धैर्य धामी ने किया. इस भावयात्रा के मुख्य लाभार्थी हनुमानमल महावीर दुग्गड़ (अमरपद्म परिवार), सह लाभार्थी विजयाबेन मोहनलालजी सिसोदिया (दांतराई), सुधाबेन परेशभाई शाह, महुवा भायंदर और शुभेक्छुक परिवारों में एम प्राइवेट ट्यूटोरियल, मातुश्री वसुमतिबेन हिमंतलाल मणियार, मातुश्री चंद्रादेवी . मोहनराजजी सुराणा परिवार थे।

मंदिर का प्राचीन इतिहास

महाराष्ट्र के अकोला जिले के पास शिरपुर में स्थित इस भव्य महातीर्थ के चमत्कारी प्रतिमा का इतिहास बहुत ही प्राचीन है। श्वेताम्बर मान्यतानुसार कहा जाता है, राजा रावण के बहनोई पाताल लंका के राजा खरदूषण के सेवक माली व सुमाली ने पूजा निमित्त इस प्रतिमा का निर्माण बालू व गोबर से किया था।जाते समय प्रतिमा को नजदीक के जलकुंड में विसर्जित किया था। शताब्दियों तक प्रतिमा जलकुंड में अदृश्य रही जो की विक्रम सं. 1142 में चमत्कारिक घटनाओं के साथ पुनः प्रकट हुई।तत्पश्चात श्री भावविजयजी गणि के सदुपदेश से मंदिर का जीर्णोद्धार करवाकर उन्ही के शुभ हाथों विक्रम सं. 1725 चैत्र शुक्ल 5 के दिन शुभ मुहूर्त में प्रतिष्ठा पुनः संपन्न हुई थी. बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे।

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