देश-विदेश में जैनविद्या के वर्तमान परिदृश्य एवं संभावनाओं पर हुआ अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार

जैन अध्ययन केंद्र, के सोमैया विद्याविहार विश्वविद्यालय, में स्थापना दिवस पर आयोजित 


मुंबई :-
सोमैया विद्याविहार विश्वविद्यालय, मुंबई के जैनविद्या अध्ययन केंद्र के 21वें स्थापना दिवस के अवसर पर के.जे. सोमैया इंस्टीट्यूट ऑफ धर्म स्टडीज ने 21 अप्रैल 2023 को “Jain Studies - Present Scenario, Opportunities, and Future Prospects” विषयक अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार का सफलतापूर्वक आयोजन किया । इस अवसर पर देश-विदेश के जाने-माने जैन शिक्षाविदों वक्ता के रूप में भाग लिया । 

वेबिनार की शुरुआत सोमैया विद्याविहार विश्वविद्यालय के संस्कृत कुलगीत से हुई, जिसे डॉ. प्राची पाठक (सहायक प्रोफेसर, KJSIDS) ने मधुरता से प्रस्तुत किया । तत्पश्चात एमए जैनोलॉजी एवं प्राकृत (भाग प्रथम) के छात्र विवेक जैन ने प्राकृत मंगलाचरण से कार्यक्रम की शुरुआत की । इस अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए वेबिनार के संयोजक एवं सहायक प्रोफेसर डॉ. अरिहंत कुमार जैन ने कहा कि इस वेबिनार का उद्देश्य जैनविद्या के वर्तमान परिदृश्य एवं इसके अध्ययन के प्रति लोगों की बढ़ती जागरूकता को देखते हुए भविष्य के लिए नए लक्ष्य निर्धारित करना है । जिससे सभी को लाभ होगा । उन्होंने सोमैया विद्याविहार विश्वविद्यालय की शैक्षणिक गुणवट्टा के प्रतिबद्धता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह विश्वविद्यालय शिक्षा और अनुसंधान पर जोर देने के लिए जाना जाता है । प्राच्य अध्ययन को बढ़ावा देने में इसके सदैव विकसित और खुले विचारों वाले दृष्टिकोण और नेतृत्व ने इसे भारत के शीर्ष विश्वविद्यालयों में से एक बना दिया है ।

के.जे. सोमैया इंस्टीट्यूट ऑफ धर्म स्टडीज की निदेशक डॉ. सुप्रिया राय ने सभी प्रतिष्ठित वक्ताओं का स्वागत करते हुए जैन अध्ययन को बढ़ावा देने के लिए संस्थान के मजबूत उद्देश्यों को प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि जिन भाषाओं में हमारे मूल ग्रंथों की रचना हुई थी, ऐसी प्राकृत,संस्कृत और पाली प्राच्य भाषाएँ भी हमारे संस्थान में पढ़ाई जाती हैं । उन्होंने कहा कि सोमैया विद्याविहार विश्वविद्यालय का जैन केंद्र पूरे मुंबई में एकमात्र केंद्र है, जो पूरी तरह से जैन दर्शन और प्राकृत के अध्ययन और अध्यापन के लिए समर्पित है। उन्होंने सभी से आह्वान करते हुए कहा कि हमें मिलकर कुछ ऐसा करना होगा जिससे अधिक से अधिक लोग भारतीय धार्मिक संस्कृति और विरासत के बारे में जागरूक हों और अधिक से अधिक लोग इसका लाभ उठा सकें ।

सेंटर फॉर स्टडीज इन जैनिज़्म, और इसकी गतिविधियों और सफलतापूर्वक चल रहे पाठ्यक्रमों (एम.ए./पी.एच.डी./सर्टिफिकेट/डिप्लोमा) का परिचय देते हुए, केंद्र के अध्यक्ष डॉ. एस.पी. जैन ने बताया कि आचार्य महाप्रज्ञ कि प्रेरणा से स्व. श्री शांतिलालजी सोमैया ने 2003 में इस केंद्र की स्थापना की थी । तब से, केंद्र ने जैन अध्ययन के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए कई पहल और अभियान भी शुरू किए हैं। पिछले दो दशकों की उपलब्धियों और सफलताओं का स्मरण करते हुए संस्थान से प्रकाशित महत्त्वपूर्ण प्रकाशनों जैसे समणसुत्तम्, योगसार संग्रह, आराधना समुच्चय आदि शास्त्रों का भी उल्लेख किया। उन्होंने जैन पीठ की स्थापना के प्रयासों को भी साझा किया और भविष्य में शीघ्र ही इसकी स्थापना की संभावना जताई ।

प्रथम वक्ता डॉ. सुलेख जैन ने जैन धर्म में शिक्षण और शोध और उत्तरी अमेरिका में जैन अध्ययन की यात्रा के बारे में बताया। उन्होंने जैन अध्ययन को बढ़ावा देने के लिए की जा रही विभिन्न पहलों और परियोजनाओं और जैनविद्या की बेहतर समझ के लिए ऐसे प्रयासों के महत्व पर चर्चा की और साथ ही वहां के विश्वविद्यालयों में जैन अध्ययन के लिए कई चेयर खोले जाने की जानकारी दी । उन्होंने जैन अध्ययन के विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और विनिमय कार्यक्रमों के महत्व पर भी चर्चा की ।

जैन अध्ययनों की समीक्षा और अनुमानों के बारे में चर्चा करते हुए, हमारे अगले वक्ता डॉ शुगनचंद जैन (निदेशक, ISJS) ने जैन धर्म की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, इसकी वर्तमान स्थिति और आने वाले वर्षों में इसके विकसित होने की संभावना का व्यापक अवलोकन प्रदान किया । उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में लोगों में जैन अध्ययन के प्रति रुचि बढ़ी है । उन्होंने जैन अध्ययन की उज्ज्वल संभावनाओं के बारे में अपना अनुसंधानात्मक विश्लेषण प्रस्तुत किया और कहा कि आने वाले वर्षों में पूरे विश्व में जैन धर्म का अध्ययन करने वालों की संख्या में अकल्पनीय रूप से वृद्धि होने की उम्मीद है । उन्होंने विश्व स्तर पर जैन धर्म और प्राकृत अध्ययन को बढ़ावा देने के लिए इंटरनेशनल स्कूल फॉर जैन स्टडीज (ISJS) के माध्यम से किए जा रहे कार्यों को भी रेखांकित किया।

प्रो. धर्मचंद जैन (निदेशक, जैन केंद्र, T.M.U.) ने बताया कि शिक्षा जगत में जैन अध्ययन का वर्तमान परिदृश्य अत्यंत उत्साहजनक है । यह सुनिश्चित करने की भी आवश्यकता है कि युवा पीढ़ी जैन परंपरा और इसकी शिक्षाओं से पर्याप्त रूप से परिचित हो । कुछ प्रसिद्ध संस्थानों के नामों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि ये संस्थान शैक्षिक कार्यक्रमों सहित अन्वेषण के लिए एक महत्वपूर्ण मंच प्रदान करते हैं और यह सुनिश्चित करने में मदद करते हैं कि भविष्य में जैनविद्या की अकादमिक रूप से श्रीवृद्धि होती रहेगी । उन्होंने सुझाव दिया कि आम जनता को जैन पुस्तकों के बारे में अधिक जानकारी देने के लिए केंद्रीय जैन प्रकाशन गृह स्थापित करना एक अच्छा विचार होगा।

पाण्डुलिपि विज्ञान के महत्व की जानकारी देते हुए प्रो. जितेन्द्र बी. शाह (निदेशक, श्रुत रत्नाकर, अहमदाबाद) ने बताया कि जैन पाण्डुलिपियों का अध्ययन अकादमिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह भारतीय धर्म और संस्कृति के विकास पर प्रकाश डालने में मदद करता है । यह विभिन्न धार्मिक और दार्शनिक विचारों की गहरी समझ प्रदान कर सकता है । उन्होंने कहा कि जैन धर्म से संबंधित विभिन्न विषयों पर शोध और जैन साहित्य और कलाकृतियों के संरक्षण के लिए यह आवश्यक।

प्रो आनंद प्रकाश त्रिपाठी (निदेशक, डिस्टेन्स एजुकेशन, जैनविश्वभारती संस्थान.,लाडनूँ)ने कहा कि जैनविद्या अनुसंधान के नवीन अवसर प्रदान करती है । इस क्षेत्र में धर्म एवं दर्शन से संबंधित ऐतिहासिक और समकालीन मुद्दों की जांच करने के लिए अकादमिक शोध भी किया जा सकता है। उन्होंने जैन अध्ययन को बढ़ावा देने के लिए जैन विश्व भारती संस्थान की पहल के बारे में भी बताया। उन्होंने कहा कि इस अंतरराष्ट्रीय वेबिनार की ध्वनि, प्रतिध्वनि के रूप में पूरे विश्व तक जाएगी, जिसका श्रेय सोमैया विद्याविहार विश्वविद्यालय के जैन केंद्र को जाएगा । 

जैन धर्म के पारंपरिक शिक्षण केंद्रों और उनकी उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए, प्रो. अनेकांत कुमार जैन (आचार्य, जैनदर्शन विभाग, श्री लालबहादुर केन्द्रीय संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली) ने कहा कि जैन धर्म के पारंपरिक शिक्षण केंद्रों में प्राचीन और आधुनिक शिक्षा के बीच एक सेतु के रूप में काम करने की क्षमता है, जिससे पारंपरिक ज्ञान के महत्व की सराहना की जा सकती है। उन्होंने क्षेत्र में अधिक शोध और छात्रवृत्ति की आवश्यकता पर प्रकाश डाला और जैन अध्ययन में अंतःविषय दृष्टिकोण के महत्व पर चर्चा की । उन्होंने क्षेत्र में शोधकर्ताओं और विद्वानों के सामने आने वाली चुनौतियों पर भी चर्चा की । उन्होंने कहा कि सभी विश्वविद्यालय, प्राच्य विद्याओं को आर्थिक लाभ की अपेक्षा से नहीं, बल्कि प्राच्य विद्याओं के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु सेवाभाव से संचालित करे । उन्होंने जैनविद्या को समझने के लिए आलोचनात्मक सोच और विश्लेषणात्मक कौशल विकसित करने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने एक अंतर्राष्ट्रीय जैन शैक्षणिक परिषद् बनाने की अपील की, जिसके माध्यम से उन नीतियों के प्रति आवाज़ उठाई जा सके, जो जैन अध्ययनों की उपेक्षा कर रही है और इसके अस्तित्व को खतरे में डाल रही है । चर्चा के बीच जेवीबीआई से समणी डॉ. शशीप्रज्ञा ने अखिल भारतीय महिला मंडल की एक बड़ी पहल के बारे में भी जानकारी दी, जिसमें अनेक छात्राओं को जैन शिक्षा में पारंगत बनाने का महत्वपूर्ण कार्य चल रहा है।

इस दौरान सभी विद्वानों ने एक स्वर में सराहना की कि सोमैया विद्याविहार विश्वविद्यालय द्वारा प्राच्य विद्या को बढ़ावा देने की पहल सराहनीय है । यह भारत की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है । यह छात्रों को भारतीय संस्कृति के बारे में अधिक ज्ञान और समझ हासिल करने का एक शानदार अवसर भी प्रदान करेगा । अधिकांश वक्ताओं ने एक और सुझाव दिया कि जैन संतों की गरिमा को ध्यान में रखते हुए उनके अध्ययन और शोध को सुगम बनाने के लिए लचीले प्रावधान/नियम बनाने की आवश्यकता है, जिसके लिए विश्वविद्यालयों को पहल करनी चाहिए । वेबिनार के दौरान वक्ताओं के साथ प्रश्नोत्तर सत्र प्रतिभागियों के लिए एक अमूल्य संसाधन था । प्रतिभागियों ने खुलकर सवाल पूछे, कुछ ने लाइव चैट के जरिए और कुछ ने चैट बॉक्स के जरिए । प्रतिभागियों की ओर से सुश्री रेशमा द्वारा चैटबॉक्स प्रश्न पूछा गया । वक्ताओं ने सवालों के विस्तृत जवाब भी दिए और आगे के अध्ययन या शोध के लिए अतिरिक्त संसाधन भी उपलब्ध कराए ।

वेबिनार के संयोजक डॉ अरिहंत कुमार जैन ने वेबिनार का समापन करते हुए कहा कि “जैन अध्ययन - वर्तमान परिदृश्य, अवसर और संभावनाओं” पर चर्चा के लिए एक मंच प्रदान करना ही जैन केंद्र के स्थापना दिवस को सही रूप में मनाने का अर्थ तथा सार्थकता है । क्योंकि यह जैन केंद्र भी इन्हीं उद्देश्यों को ध्यान में रखकर स्थापित किया गया था । वेबिनार को सारांशित करते हुए उन्होंने कहा कि पूरी चर्चा से यह स्पष्ट है कि जैन अध्ययन के क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं और यह कर्मठ शोधकर्ताओं और युवाओं के लिए अवसरों से भरा है । मात्र जागरूकता, समर्पण और सही मार्गदर्शन की आवश्यकता है । अब यह हम पर निर्भर है कि हम इन अवसरों का अधिकतम लाभ उठाएं और यह सुनिश्चित करें कि जैन अध्ययन विश्व स्तर पर अध्ययन का एक समृद्ध अकादमिक क्षेत्र बनेगा । अंत में शोध सहायक सुश्री वर्षा शाह ने अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार से जुड़े सभी गणमान्य वक्ताओं, विद्वानों, शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों का धन्यवाद ज्ञापित किया । इस वेबिनार के माध्यम से जैन धर्म-दर्शन पर विचारों और ज्ञान के आदान-प्रदान के लिए एक मंच प्रदान किया । छह प्रख्यात वक्ताओं ने जैन अध्ययन के वर्तमान परिदृश्य, अवसरों और भविष्य की संभावनाओं पर बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान की । इस कार्यक्रम में दुनिया के विभिन्न हिस्सों से छात्रों, विद्वानों एवं विभिन्न विधाओं से जुड़े जैन -जैनेतर प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया ।

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