क्या हमने वैलेंटाइन डे मनाया ?

 प्रेम प्रसादी

प्रेरणा :- श्री गुरुप्रेम के आजीवन चरणोपासक परम पूज्य आचार्य श्री विजय कुलचंद्र सूरीश्वरजी (K.C) म.सा.


अपनी संस्कृति का गौरव बढ़ाएं

संत ऋतु का शुभारंभ अपने आप में एक अजब सी सुंदरता के साथ होता है जहां माँ सरस्वती की उपासना के साथ इस ऋतु का स्वागत किया जाता है विशेषतः विद्यार्थियों एवं लेखन प्रेमियों हेतु उपासना का दिन माना जाता है परंतु संयोगवश साथ ही शुरू होता है आज की युवा शक्ति का विशेष महोत्सव जो कि विदेशी संस्कृति से भेंट स्वरूप हम भारतीयों ने अपना लिया हैं। आधुनिकता एवं मार्केटिंग के दौर ने इसमे ओर रंग भर दिए।

फरवरी माह की चौदह तारीख को मनाये जाने वाले वेलेंटाइन डे से आज कोई भी अनभिज्ञ नहीं है। खासकर इस दिवस के लिए युवा पीढ़ी पूरे साल लालायित और बेसब्र दिखती है। मानों हमने वेलेंटाइन डे को एक परंपरा का रूप देकर इसका निर्वहन करना अपना परम कर्त्तव्य समझ लिया है। हमको ये याद हो न हो कि वसंत पंचमी का क्या महत्व और कब आएगी । परंतु ये महोत्सव हम नही भूल सकते, परंतु विचार करे कि हमारी प्राथमिकता क्या होनी चाहिये।

भारतीय सभ्यता या विदेशी नकल हमारी पूजन की परंपरा या फूहड़ता का प्रदर्शन हमारे आचार संस्कार या प्रेम का खुलेआम दिखावा हमारे गरिमापूर्ण त्यौहार या गरिमाविहीन विदेशी डे आधुनिक होना गलत नही परंतु अपनी संस्कृति को गौण करना गलत है। अपनी संस्कृति को अपना गौरव बनाये।

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