आओ जाने मंदिर में निसीहि क्यों बोलते है

प्रेम प्रसादी


आइये जानते हैं तपागच्छाधिपति आचार्य प्रेम सूरीश्वरजी म.सा.के आजीवन चरणोपासक परम पूज्य आचार्य विजय कुलचंद्रसूरीश्वरजी (K.C) म.सा. से

निसीहि क्यो बोलते है ?

जिनालय दर्शन-पूजन हेतु जाने पर तीन बार निसहि का उच्चारण किया जाता है, जिसमे प्रथम निसीहि :

यह जिनालय के मुख्य द्वार पर बोली जाती है, जिसका तात्पर्य है - मैं और जिनालय अर्थात मैं पाप कर्म का त्याग कर प्रवेश करता हूँ। 

द्वितीय निसीहि:

गर्भ गृह में प्रवेश करते समय इसका उच्चारण करते है इसका अर्थ है कि मेरा संबंध अब केवल पूजन से हैं।

तीसरा निसीहि :-

चैत्यवन्दन प्रारम्भ करते समय तीसरी निसीहि बोली जाना है चाहिए । इसका अर्थ है - अब बस मैं और परमात्मा, ये निसीहि हमको परमात्मा से जोड़ती है। इसके पश्चात अन्य किसी क्रिया से संबंध नहीं रहता।

प्रायः देखने में आता है कि लोग पूजा विधि करते हुए अन्य लोगों से चर्चा करना, अभिवादन करना जैसे व्यवहार भी निभाते है जो कि सर्वथा अनुचित है।

निसीहि के पश्चात अन्य किसी कार्य से संबंध नही रहता।

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