दीक्षा दानेश्वरी गुणरत्न सूरीश्वरजी का निधन

जिनशासन को अनमोल खोट
दीपक आर जैन
सूरत:- 451 से ज्यादा दीक्षा दानेश्वरी,अनेक जिन मंदिरों के प्रतिष्ठाचार्य,परम पूण्य के स्वामी,सूरी प्रेम कृपा पात्र ऐसे पूज्य आचार्य श्री गुणरत्न सूरीश्वरजी म.सा. का सूरत में दुःखद निधन हो गया. वे 88 वर्ष के थे. उनके निधन से जैन समाज के शोक की लहर हैं.
मिली जानकारी के अनुसार नवकार महामंत्र का जाप करते करते उन्होंने रात 3.20 को कैलाश नगर  स्थित जैन उपाश्रय में अंतिम प्रयाण किया.संयोग हैं की यहां तपागच्छाधिपति परम पूज्य आचार्य श्री विजय रामसूरीस्वरजी (डहेलवाला) म.सा. का भी निधन हुआ था.ज्ञात हो गुरु राम पावन भूमि की हाल ही में हुई प्रतिष्ठा में आपने निश्रा प्रदान की थी. आपका दीक्षा पर्याय 60 वर्ष से अधिक था. उनके निधन पर प्रवर समिति के कार्यवाहक परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री विजय अभयदेव सूरीश्वरजी म.सा.,गच्छाधिपति आचार्य श्री विजय धर्मधुरंधर सूरीश्वरजी म.सा.,गच्छाधिपति आचार्य श्री विजय नित्यानंद सूरीश्वरजी म.सा.,आचार्य श्री विजय कुलचंद्र सूरीश्वरजी म.सा. आदि नेइसे जिनशासन के लिए अनमोल क्षति बताया हैं. उन्होंने कहा युगो युगो तक उनके द्वारा की गई सेवाओं को याद किया जायेगा.
गच्छाधिपति अभयदेव सूरीश्वरजी म.सा. ने कहा की गुरुदेव के निधन का समाचार अत्यंत आघातजनक था.गुरु भगवंतों की समर्थ पंक्ति में आपका स्थान शोभायमान था.
दीक्षा दानेश्र्वरी परम पूज्य आचार्य श्री विजय गुणरत्नसुरीश्वरजी महाराजा का जन्म विक्रम संवत 1989,पोष सुद 4 ,ई. स. 1932 को  राजस्थान के जालोर जिला के पादरली गांव में मनुबाई  की कोख से हीराचंदजी के घर हुआ. आपका सांसारिक नाम गणेशमलजी था. बचपन से ही धर्म के प्रति अटूट श्रद्धा ने आपका ध्यान युवा अवस्था में ही सयंम की और अग्रसर हुआ और आपने विक्रम संवत 2010 , महा सुद 4 , ई. स. 1954 में मुंबई महानगर में  परम पूज्य सिद्धांत महोदधि आचार्य श्री विजय प्रेमसूरीश्वरजी म.सा.के पट्टलंकार परम पूज्य  वर्तमान तपोनिधि आचार्य श्री विजय भुवनभानुसूरी महाराज साहेब के शिष्य मेवाड देशोद्धारक आचार्य श्री विजय जितेन्द्रसुरीश्वरजी महाराज साहेब के शिष्य बन गुरु का नाम चरों और देदीप्यमान किया. आप 14 वर्षों तक परम पूज्य आचार्य श्री विजय प्रेमसूरीश्वरजी म.सा.के साथ रहे. उनके प्रिय शिष्यों में आपका समावेश था. बड़ी दीक्षा विक्रम संवत 2010 महा वद 7 , ई. स. 1954 में मुंबई नगरी में हुई.
विक्रम संवत 2041 , मागशर सुद 11 , ई. स. 1985 में अमदावाद में गणि पद फिर जालोर में विक्रम संवत 2044 , फागण सुद,ई.स.1988 में पन्यास पद प्रदान किया गया.विक्रम संवत 2044 , जेठ सुद 10 , ई. स. 1988 में आपके जन्म स्थल पादरली में आचार्य पद पर आरूढ़ किया गया.आपने  न्याय , व्याकरण , काव्य , आगम आदि अनेक शास्त्रो का अध्यन किया हैं.साथ ही साथ क्षपक क्षेणी , देशोपशमना , उपशमनाकरणादि 60 हजार श्लोक प्रमाण संस्कृत , प्राकृत ग्रंथ तथा गुजराती , हिन्दी और  अंग्रेजी मे सभी सिद्धगिरि जाएँ , जैन रामायण,जो जे करमाय ना, टेन्शन टु पीस,रे !कर्म तेरी गति न्यारी,श्री शत्रुंजयादि 4 महा तीर्थोना दिशा दर्शक यंत्रादि.साहित्य सर्जन किया हैं.  
पूज्य श्री की विशेषताएँ -
1.21 वर्षनी युवास्था मे सगाई छोड कर दीक्षा ली थी । 
2.श्री जीरावला तीर्थ मे 3200 व्यक्तिओ की सामुहिक चैत्री ओळीजी की आराधना ।
3.2700 आराधको का मालगांव से पालिताणा तीर्थ , 6000 आराधको का राणकपुर तीर्थ तथा 4000 आराधको का पालिताणा से गिरनारजी का ऐतिहासिक छ' री पालित संघ । 
4.28 युवक - युवतीओ की सुरत मे , 38 युवक युवतीयो की पालिताणा मे सामुहिक दीक्षा के साथ अभि तक कुल 451 दीक्षाओं के दीक्षादाता । 
5.श्री शंखेश्वर महातीर्थ मे 4700 अठ्ठम और 1700 आराधको का ऐतिहासिक  उपधान तप ।
6.पालिताणा घेटी की पाग के बीच 2200 आराधको की नव्वाणुं यात्रा । 
7.सुरत दीक्षा मे 51000 , पालिताणा दीक्षा मे 52000 तथा अमदावाद मे 55000 युवानो की समूह सामायिक । 
8.क्षपकक्षेणी ग्रंथ के सर्जनकर्ता , जिसके विषय को लेकर जर्मन प्रोफेसर " कलाउझ ब्रुन " ने भी प्रशंसा की है । 
9.55 से अधिक आध्यात्मिक ज्ञान शिबिरो के सफळ प्रवचनकार ।
10.439 से अधिक साधु साध्विजी भगवंतो के  योगक्षेम कर्ता 
11.नाकोडा ट्रस्ट द्वारा संचालित निःशुल्क " विश्व प्रकाश पत्राचार पाठ्यक्रम " द्वारा 1 लाख विधार्थीओ के जीवन मे ज्ञान का प्रकाश फेलाने वाले । 
12.राजस्थान स्थित सुमेरपुर मे "अभिनव महावीर धाम " के मुख्य मार्ग दर्शक 
13.शंखेश्वर सुखधाम,महावीर धाम,पावपुरी जीव मैत्री धाम , भेरुतारक तीर्थ के प्रेरणा दाता : जिसकी प्रतिष्ठा मे 700 साधु साध्वीजी की उपस्थिती थी । चैत्री ओळीजी मे एक साथ मे 274 आराधक भाई बहेनो ने जावजजीव - आजीवन चोथे व्रत का स्वीकार करवाया और श्री जीरावाला तीर्थ मे जीणोद्धार मे सामुहिक मार्ग दर्शन मे सबसे वडील,और श्री वरमाण तीर्थ के जीणोद्धार के मार्ग दर्शक
14. परम पूज्य दादा प्रेमसूरीश्र्वरजी महाराजा का ओघो गुरूदेव के पास मे ही है , अहमदाबाद मे श्री भवंरलालजी दोशी की दीक्षा के समय सभी को दर्शन करवाये थे । 
15. विक्रम संवत 2071 मे अहमदाबाद
 जिन शासन की यादगार दीक्षा भवंरलालजी दोशी की हुयी जो स्वयं भारत के बडे उधोगपति थे और गुरुदेव के हाथो से दीक्षा ली थी । 
16. आपके शिष्य परिवार मे आचार्य श्री रविरत्नसूरी , आचार्य श्री रश्मिरत्नसूरी , आचार्य श्री पुण्यरत्नसूरी , आचार्य श्री यशोरत्नसूरी,आचार्य श्री जिनेशरत्नसूरि आदि है ।  
आपकी अद्भुत वाणी के कारण 430 से ज्यादा युवा-युवती आज संयम लेकर शासन की सेवा कर रहे हैं.आपकी निश्रा में अनेक आयोजन ऐसे हुए हैं जिन्हे स्वर्ण अक्षरों में अंकित किया जाएगा. 
जिनशासन की सेवा में लीन रहने वाले इस वायरल व्यक्तित्व के महाप्रयाण से महत्वपूर्ण स्थान रिक्त हुआ हैं. शांति वल्लभ टाइम्स का आपको शत शत नमन.     

  

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

श्रमण संघीय साधु साध्वियों की चातुर्मास सूची वर्ष 2024

पर्युषण महापर्व के प्रथम पांच कर्तव्य।

तपोवन विद्यालय की हिमांशी दुग्गर प्रथम