पश्चिम रेलवे ने इतिहास की सैर के साथ मनाया ‘वर्ल्ड हेरिटेज डे’

कर्मचारियों के लिए एक हेरिटेज वॉक का आयोजन


मुंबई :-18
अप्रैल को ‘वर्ल्ड हेरिटेज डे’ के अवसर पर पश्चिम रेलवे ने एक अनोखे और भावनात्मक अंदाज़ में इस दिन को मनाया। इस विशेष दिन पर चर्चगेट स्थित मुख्यालय में महिला कर्मचारियों के लिए एक हेरिटेज वॉक का आयोजन किया गया। इस वॉक के माध्यम से प्रतिभागियों को पश्चिम रेलवे की समृद्ध विरासत और इसके सौ वर्ष से भी अधिक पुराने मुख्यालय भवन की ऐतिहासिक झलक दिखाई गई।

इस वॉक में कुल 32 महिलाओं ने भाग लिया, जिन्होंने इस ऐतिहासिक इमारत की भव्य वास्तुकला का आनंद लिया, उसकी दीवारों में समाए किस्से सुने और यह जाना कि कैसे मुंबई शहर के विकास के साथ-साथ रेलवे का इतिहास भी गहराई से जुड़ा हुआ है। यह केवल कार्यालय की दीवारों से गुजरने की बात नहीं थी, बल्कि यह स्मृतियों की गलियों से गुज़रने जैसा अनुभव था। पश्चिम रेलवे के अन्य मंडलों ने भी इस दिन को विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से मनाया और हमारे सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित रखने की जिम्मेदारी और गर्व की भावना को प्रोत्साहित किया।

चर्चगेट मुख्यालय – जीवंत इतिहास की मिसाल
पश्चिम रेलवे का यह मुख्यालय अपने आप में एक ऐतिहासिक धरोहर है। इसका निर्माण वर्ष 1894 में आरंभ हुआ और 1899 में पूर्ण हुआ। इस भवन को प्रसिद्ध वास्तुकार फ्रेडरिक विलियम स्टीव्हन्स ने डिज़ाइन किया था, जो छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (पूर्व में विक्टोरिया टर्मिनस), मुंबई महानगरपालिका भवन जैसे अन्य प्रसिद्ध स्थलों के निर्माण के लिए भी जाने जाते हैं। यह भवन मूल रूप से बॉम्बे, बड़ौदा और सेंट्रल इंडिया रेलवे (BB&CI) का मुख्यालय था और आज भी पश्चिम रेलवे की धड़कन के रूप में कार्य कर रहा है।लगभग 7.5 लाख रुपये की लागत से निर्मित यह इमारत वेनेशियन गॉथिक, इंडो-सरसेनिक और इटालियन शैलियों का अद्भुत मिश्रण है। नीले बेसाल्ट पत्थरों से निर्मित, इसकी गुंबदें, सजीव नक्काशी और वर्गाकार से अष्टकोण और फिर गुंबद में बदलता हुआ केंद्रीय टॉवर इसे एक अनुपम दृश्य बनाते हैं। अंदरूनी हिस्सों में संगमरमर की फर्श, टीक की लकड़ी की छतें और तीन मंज़िलों में फैले लंबे गलियारे इसे और भी भव्य बनाते हैं।

यह भवन समय के कई उतार-चढ़ावों का साक्षी रहा है 1905 में राजसी दौरे के दौरान लगी आग, 1926 में जोड़ा गया ऐनेक्स भाग और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान एक नई मंज़िल का निर्माण — इसके बावजूद इसने अपनी मौलिकता को बरकरार रखा है। हाल ही में इस भवन ने 125 वर्ष पूर्ण किए हैं और इस अवसर पर विविध कार्यक्रमों का आयोजन किया गया।

‘सबर्ब्स की रानी’ – बांद्रा स्टेशन
जहां पश्चिम रेलवे मुख्यालय अपनी भव्यता से चौंकाता है, वहीं बांद्रा स्टेशन अपनी पुरानी दुनिया की सादगी और आकर्षण से मन मोह लेता है।
1864 में पहली बार शुरू हुआ बांद्रा स्टेशन प्रारंभ में अस्थायी संरचना और सस्ते निर्माण सामग्री से बना था। 24 वर्षों के बाद, 1888 में आज जो भवन हम देखते हैं, वह निर्मित हुआ। यह विक्टोरियन गॉथिक और स्थानिक वास्तुकला का सम्मिलन है। महाराष्ट्र सरकार द्वारा इसे ग्रेड I हेरिटेज संरचना का दर्जा प्राप्त है – देश के कुछ गिने-चुने उपनगरीय स्टेशनों में से एक जिसे यह सम्मान मिला है।

इस स्टेशन की बनावट अत्यंत खूबसूरत और व्यावहारिक है — बेसाल्ट पत्थरों की मधुकोशीय चिनाई, टीक की लकड़ी की छज्जे और सममितीय अग्रभाग। इसके चौड़े बरामदे, ऊँची छतें और गहरे ओवरहैंग्स मुंबई की उमस भरी गर्मी में ठंडक प्रदान करते हैं। सबसे अनोखी विशेषता इसके प्लेटफॉर्म्स पर देखी जा सकती है रेलवे ‘I’ ट्रैक सेक्शन से बनाए गए स्टील कॉलम, जिन्हें जोड़कर षट्भुज आकृतियाँ बनाई गई हैं और जिन्हें सुंदर लोहे की ब्रैकेट्स व कोट ऑफ आर्म्स से सजाया गया है। यह कला और इंजीनियरिंग का अद्भुत संगम है, जिसे शायद ही किसी और रेलवे प्लेटफॉर्म पर देखा गया हो।
बांद्रा स्टेशन सदियों से मूक रूप से शहर के विकास, उपनगरों की बढ़ती रफ्तार और अनगिनत यात्राओं का साक्षी रहा है।

पत्थर और लोहे से परे की कहानी
पश्चिम रेलवे मुख्यालय और बांद्रा स्टेशन केवल इमारतें नहीं हैं, ये इतिहास के जीवंत दस्तावेज़ हैं। इन्होंने साम्राज्यों के पतन, युद्धों की हलचल, शहरों के विकास और लाखों लोगों की रोज़मर्रा की जिंदगी को देखा है।पश्चिम रेलवे द्वारा वर्ल्ड हेरिटेज डे का यह उत्सव हमें यह याद दिलाता है कि धरोहर केवल दीवारों को बचाए रखने का नाम नहीं है, बल्कि उन लोगों, स्थानों और उद्देश्य को सम्मान देने का नाम है, जिन्होंने इन संरचनाओं को अर्थ दिया है।

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