कार्यदक्ष, प्रखर प्रवचनकार मुनिराज श्री मोक्षानंद विजयजी म.सा.

नित्यानंद सूरीश्वरजी के हस्तदीक्षित व बहुमुखी प्रतिभा के धनी

कार्यदक्ष, प्रखर प्रवचनकार मुनिराज श्री मोक्षानंद विजयजी म.सा.गच्छाधिपति आचार्य विजय नित्यानंद सूरीश्वरजी के हस्तदीक्षित शिष्य हैं।वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं।पिछले 25 वर्षों से उनके साथ जुड़े रहने का सौभाग्य मिला व उनकी लुधियाना में दीक्षा के दौरान अवसर मिला।भायंदर में रेल्वे प्रोटेक्शन फ़ोर्स(RPF) के लिए गए सेमिनार में  अपने प्रवचन से सभी को अत्यंत प्रभावित किया था।दीक्षा के 25 वर्ष पूर्ण करने पर कोटि कोटि वंदन।

दीपक जैन,

संपादक :- शांति वल्लभ टाइम्स


र्तमान गच्छाधिपति आचार्य श्री विजय नित्यानंद सूरीश्वरजी के हस्तदीक्षित सुयोग्य शिष्यरत्न - बहुमुखी प्रतिभा के धनी मुनि श्री मोक्षानंद विजयजी लेखन सुदक्ष एवं प्रभावक प्रवचनकार हैं। वे न केवल गच्छाधिपति जी के लेखन कार्य का वहन करते हैं बल्कि स्थान-स्थान पर युवाओं को प्रतिबोधित-संगठित करके जैनत्व से जोड़ते हैं। 

जन्म एवं दीक्षा : गुरुभूमि पंजाब की जंडियाला गुरु नगरी में 6 दिसंबर 1977 को श्रावक महेश कुमारजी की धर्मपत्नी श्राविका अभिलाषजी की कुक्षि से जिस पुण्यात्मा का जन्म हुआ, उनका नाम "यतेश" रखा गया जिन्हें सब प्यार से "चिंटू" कहकर भी पुकारते थे। परिवारिक जनों से बचपन से ही धर्म संस्कार प्राप्त करते हुए। यतेश व्यावहारिक शिक्षा में भी उपलब्धियां प्राप्त करते रहे। तरुण अवस्था में परिवार सहित आप लुधियाना (पंजाब) में आकर बसे। लुधियाना की पाठशाला में धार्मिक अभ्यास करते करते आप कई पाठशाला, शिविर, पूजनों आदि का सफल संचालन करने में समर्थ बन गए। युवावस्था से ही आपकी वक्तृत्व कला विशेष रही। कॉलेज के प्रथम दीक्षांत समारोह में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री  प्रकाश सिंह बादल तथा महेश इंद्रजीत सिंह ग्रेवाल के द्वारा सर्वश्रेष्ठ वक्ता के रूप में आप पुरस्कृत हुए। 

लुधियाना में सन् 1989 में परमार क्षत्रियोद्धारक आचार्य श्री विजय इन्द्रदिन्न सूरीश्वरजी के चातुर्मास में वैराग्य भाव के बीज प्रस्फुटित हुए जो सन् 1995 में आचार्य श्री विजय जनकचन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. तथा आ.श्री विजय नित्यानंद सूरीश्वर जी म.सा. के चातुर्मास में उनकी वैराग्य रस पोषक वाणी के प्रभाव से पुष्पित पल्लवित हो गए । अपनी संयम भावना की सुदृढ करते एवं परिवार की आज्ञा प्राप्त करने हेतु मुमुक्षु ने कई यत्न किये एवं उनकी दृढ़ मनोभावना को देखकर दीक्षा हेतु परिवार की आज्ञा प्राप्त हुई।

आचार्य श्री विजय नित्यानंद सूरीश्वर जी म.सा की शुभ निश्रा में लुधियाना में ही चतुर्विध संघ की सुविशाल उपस्थिति में 22 वर्षीय मुमुक्षु यतेश (चिंटू) की ऐतिहासिक दीक्षा सम्पन्न हुई एवं वे आचार्य श्रीजी के शिष्य मुनि श्री मोक्षानंद विजय जी म.सा. के नाम से विख्यात हैं।

जीवन निर्माण :- दीक्षा के सुदीर्घ वर्षों में आपने विनयपूर्वक अध्ययनशील बनकर गुरुदेव का गुणानुग्रहन किया। संस्कृत , व्याकरण तथा साहित्य आदि के विविध विषयों में आपका  अध्ययन रहा।आपकी प्रवचनशक्ति - वक्तृत्वशक्ति भी प्रभावशाली है जो श्रोताओं के हृदय में जटिल विषयों को सरल रूप में समझाने की कला रखती है। 

गच्छाधिपति गुरुदेव श्री के दाहिने हाथ के रूप में कार्यरत उनका समस्त पत्र व्यवहार भी मुनिश्री संभालते हैं। सन् 2016 में पालीताना में आयोजित तपागच्छ सम्मेलन में विजय वल्लभ सूरि समुदाय के गच्छाधिपति आचार्य विजय नित्यानंद सूरीश्वर जी म.सा. की आज्ञा से प्रत्येक कार्यवाही में सफल प्रतिनिधित्व कर गुरुदेव की वाणी और विचारों को मुखरित किया ।


युवक मंडलों का गठन :
मुनि श्री मोक्षानंद विजय जी म.सा. ने सम्पूर्ण उत्तरी भारत के विभिन्न प्रांतों और नगरों की युवा ऊर्जा को संगठित करके श्री विजय वल्लभ जैन युवक महासंघ उत्तरी भारत, की स्थापना की तो विचरण करते हुए जहां जहां भी गए वहां पर युवक मंडलों की स्थापना करते गए । दादर , बीकानेर, शिरवने - नवी मुंबई ,  कोलकाता , चेन्नई , पुणे, ठाणा,समाना , सुनाम , मवाना, सूरतगढ़, फाजिल्का , मुरादाबाद,भायंदर आदि कई क्षेत्रों में युवक मंडलों की स्थापना कर युवा ऊर्जा को जिनशासनसेवा तथा समाजकल्याण के विविध उपक्रमों से जोड़ने का अनुमोदनीय कार्य किया।उनके द्वारा स्थापित सभी मंडल आज भी संघ समाज के प्रति सक्रिय कार्य करते हुए सेवाएं प्रदान कर रहे हैं ।

प्रबुद्ध लेखक :- पूज्य मुनिश्रीजी प्रबुद्ध लेखक हैं।अपनी कलम के माध्यम से गुरु वल्लभ की भक्ति को शब्ददेह देते हुए गुरु वल्लभ अष्ट प्रकारी पूजा, गुरु वल्लभ पच्चीसी, गुरु वल्लभ वन्दनावली आदि सुंदर संगीतमय रचनाएं की हैं। इसके अतिरिक्त आशु कवि के रूप में अनेक कविताओं व गीतों की भी रचना की है।आपको गायन की भी रुचि है।आपके भजनों पर श्रोता झूमने नाचने के लिए विवश हो जाते हैं । श्री आत्मानंद जैन महासभा, उत्तरी भारत का मुखपत्र - विजयानंद पत्रिका भी आपके मार्गदर्शन में गतिमान है । जनक जीवन प्रकाश ग्रंथ आपके सफल सम्पादन से मुमुक्षुओं के लिए प्रकाश स्तंभ बन गया ।आपने गुरुदेव पर वर्तमान वल्लभ का सुंदर लेखन किया हैं।

कर्मठ कार्यसेवी : गुरु वल्लभ के 50वें स्वर्गारोहण वर्ष , गच्छाधिपति जी के 50वें दीक्षा वर्ष , समुदाय वडिल आचार्य श्रीमद् विजय वसंत सूरीश्वर जी महाराज के 50वें वर्षीतप वर्ष प्रसंगों पर आयोजित राष्ट्रीय आयोजनों में आपकी भूमिका अग्रणी रही। गुरु वल्लभ के सार्ध जन्म शताब्दी महामहोत्सव जो कि दादर , वडोदरा और विजय वल्लभ साधना केंद्र जैतपुरा में बड़े विराट स्तर पर मनाया गया उनको भी सफल बनाने में  आपने खूब मेहनत की । 


तपस्या के उपक्रम में आप ने लगातार 50 एकासना एक बार , 60 एकासना एक बार, लगातार अढ़ाई साल एकासना एक बार नव्वानु यात्रा एक बार , चोविहार छठ करके शत्रुंजय की सात यात्रा एक बार , दो वर्षीतप ( सन् 2017-18 एवं 2021-22), वर्धमान तप की 10 ओली की आराधना की है, श्री बीस स्थानक तप की आराधना उपवास से इत्यादि तप किये हैं। ।

आपने दीक्षा ग्रहण करने के बाद हर वर्ष लंबे लंबे विहार करते हुए पूज्य गच्छाधिपति गुरुदेव के साथ लगभग पूरा भारत भ्रमण किया है । 25 वर्षों में आपने करीब 55000 किलो मीटर से अधिक की पद यात्रा कर ली है । पूज्य मुनिश्री का संयम जीवन निर्मल, निरतिचार, निर्बाध रहे, यही मंगल भावना है।


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