महामहिम का मुकुट ओमप्रकाश माथुर के माथे पर

....मगर अब क्यूं जब बीजेपी को ऐसे नेताओं की जरूरत है?


म प्रकाश माथुर अच्छे घुड़सवार हैं, जी हां… घुडसवारी का शौकीन होना ही उनको संघ में ले आया। लगभग 5 दशक से सियासत के घोड़े दौड़ाने वाले और दौड़ते घोड़ों की लगाम अपने कब्जे में रखने वाले माथुर अब बीजेपी की सांगठनिक सियासत से निकलकर सिक्किम की गवर्नरी करेंगे। राष्ट्रपति कार्यालय से उनके लिए आदेश जारी हो गया है और पार्टी में बधाईयों का दौर जारी है। वैसे, इसे माथुर की सक्रिय राजनीति से सम्माजनक विदायी माना जा रहा है, तो यह भी माना जा रहा है कि एक तरह से यह उनका प्रमोशन नहीं पदावनति है। लेकिन माथुर की राजनीति को देखें, तो वे संगठन के सिपाही के तौर पर मशहूर रहे हैं, और नई पीढ़ी को आगे बढ़ाने में उन जैसा नेता राजस्थान की राजनीति में भैरोंसिंह शेखावत और अशोक गहलोत के अलावा और कोई दूसरा तो नहीं दिखा। वैसे माथुर का राजनीतिक कद इसी से नापा जा सकता है कि जब जब उनका जिक्र होता है, तो मुख्यमंत्री के स्तर से नीचे नहीं होता, यही उनकी सियासत का अब तक का हासिल है। माथुर के जीवन की सबसे खास बात यही है कि वेजातियों के जंजाल में उलझे  राजस्थान की उस राजनीति में शिखर पुरुष गिने जाते हैं, जहां जातियों की ताकत के बूते पर ही राजनीति की ताकत भी नापी जाती है। लेकिन माथुर की सियासी सूझबूझ का कमाल देखिये कि साढ़े 8 करोड़ की जनसंख्या वाले राजस्थान में उनकी जाति के कुल आधा फीसदी वोट भी नहीं है, फिर भी वे राजनीति के शिखर पर स्थापित होने में सफल रहे हैं, तो यह उनका राजनीतिक कौशल ही था।

देश में बहुत बड़े और राजस्थान में दिग्गज कहे जाने वाले बीजेपी नेता ओम प्रकाश माथुर मारवाड़ में पाली जिले के रहने वाले हैं और पार्टी में उन्हें उन चंद नेताओं में गिना जाता है, जो परदे के पीछे से संगठन को मजबूत करते रहे हैं। माथुर अपनी ओर से खुद कभी अगुआ नहीं बने, मगर  जवानी के जमाने में अपने कंधों पर खुद जावा मोटर साइकिल उठाकर उफनती नदी पार कर जाने वाले माथुर संगठन को सदा अपने माथे पर रखकर हर किसी के लिए कंधा बनते रहे। कभी वे गुजरात राज्य के  प्रभारी के तौर पर अपने संगठन कौशल से तब के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की बार - बार सत्ता लाने में सहायक बने तो बाद में, अब प्रधानमंत्री मोदी के सिपहासालार भी बने रहे। वे राजस्थान में पार्टी के अध्यक्ष सहित बीजेपी संगठन में कई पदों पर रह चुके हैं और उससे पहले संघ के प्रचारक हुआ करते थे तथा भैरोंसिंह शेखावत के जमाने से उनकी राजनीति के रणनीतिकार भी। माथुर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विश्वासपात्र और बेहद नजदीकी होने के कारण महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़ आदि में पार्टी के प्रभारी रहे, तो वहां भी बीजेपी की सत्ता लाने में सफल रहे। उससे पहले मध्य प्रदेश में भी 2002 में उमा भारती को मुख्यमंत्री बनाने के बाद उनको स्वीकार्यता दिलाने में माथुर की ही महत्वपूर्ण भूमिका रही।

दरअसल, माथुर ऐसे समय में सक्रिय सियासत से दूर जा रहे हैं, जब बीजेपी को उन जैसे सबसे तगड़े और कहीं भी, कभी ना हारनेवाले रणनीतिकार की सख्त जरूरत है। गुजरात तो ठीक है, लेकिन महाराष्ट्र, झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे लगभग दुर्गम प्रदेशों में भी प्रभारी के रूप में बीजेपी की सत्ता लाने में वे सफल रहे। माथुर के राजनीति में प्रवेश की कहानी 70 के दशक के शुरूआत की है,  आरएसएस का पथ संचलन था, उसमें चल रहा घोड़ा बिदक रहा था। किसी ने उनसे घोड़ा सम्हालने को कहा, क्योंकि कहने वाले उनकी घुड़सवारी की जादूगरी जानते थे। माथुर ने संघ का गणवेश पहना और बिदकते घोड़े को सम्हाला, बस उसी दिन से माथुर संघ के हो लिए। उसके बाद तो, माथुर ने कई प्रदेशों में कई सियासी घोड़ों की लगाम थामी, कईयों को घोड़ों की लगाम थामना सिखाया और कुछ बिदकते घोड़ों की लगाम काटकर उनको निर्जन वन में छोड़ भी दिया। लेकिन अब, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मजबूती के लिए बीजेपी की केंद्रीय राजनीति को प्रभावी रणनीतिकारों की सख्त जरूरत है, ऐसे में माथुर को सिक्किम का राज्यपाल बनाने की पीछे की राजनीति समझ से परे हैं।


राजस्थान के पाली जिले में फालना कस्बे के पास छोटे से गांव बेड़ल में 2 जनवरी 1952 को जन्मे माथुर ने राजस्थान विश्वविद्यालय से बीए किया और 1971 में जुड़कर बाद में आरएसएस के प्रचारक रहे। फिर उसी के जरिए प्रदेश में पार्टी के संगठन महासचिव भी रहे, बाद में प्रचारकी को राम राम कहकर उसी प्रदेश में पार्टी के अध्यक्ष बने, तो संघ को कुछ अच्छा नहीं लगा। क्योंकि संघ परिवार की निगाह में यह प्रचारक होने की परंपरा की पवित्र पालना नहीं थी। लेकिन बाद में तो वे अपने समर्पण और कमाल की रणनीतिक सूझबूझ से एक के बाद एक प्रदेशों में पार्टी की सत्ता लाने में सहायक भी बने, तो संघ भी सब कुछ भुलाकर उनको स्वीकार करने को मजबूर हुआ और फिर वे बीजेपी में राष्ट्रीय महासचिव और उपाध्यक्ष भी बने। राजस्थान से राज्यसभा सांसद भी चुने गए और पार्टी के नेता के तौर पर मुख्यमंत्री पद के लिए भी उनका नाम हर बार लिया जाने लगा। प्रधानमंत्री मोदी के बेहद करीबी हैं, लेकिन अपने दम पर अपनी राजनीतिक ताकत कायम करनेवाले माथुर अपनी पहचान को केवल संगठन के समर्पित कार्यकर्ता के रूप में पसंद करते हैं।

देश ने देखा है कि माथुर सदा से पूरे दमखम के साथ राजनीति करने वाले नेता रहे हैं। राजनीति में ठसक से अपनी हर बात कहने वाले माथुर की खासियत यह है कि वे मजबूत तथ्यों के आधार पर अपनी बात रखते हैं, और तथ्य चाहे सामने वाले को पसंद आए ना आए, वे उन तथ्यों के जरिए ही नतीजे देने में विश्वास रखते हैं। इसी क्षमता के बल पर ओम प्रकाश माथुर अब तक बीजेपी में ऐसे कई राज्यों की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं, जहां पार्टी संकट में होती है, फिर भी वे सत्ता ले आते हैं। नई पीढ़ी को आगे बढ़ानेवाले नेता के रूप में विख्यात माथुर अपने कई समर्थकों को विधायक, सांसद, मंत्री और यहां तक कि मुख्यमंत्री भी बनाने में सफल रहे, लेकिन खुद ने कभी भी कुछ बनने की अपनी ओर से कोई खास कोशिश नहीं की। माथुर पूरी तरह से संघ की विचारधारा में निष्ठा रखनेवाले मूल रूप से संगठन के व्यक्ति हैं और नवरात्रि में केवल जल पीकर निराहार उपवास रखते हैं। गोड़वाड़ इलाके में उनका डेढ़ सौ एकड़ का कृषि फार्म है, जहां आधुनिक तकनीक से खेती होती हैं। सार्वजनिक और निजी दोनों ही जिंदगियों में, बेहद सादगी पसंद माथुर खाने में दाल रोटी उनकी पहली पसंद है। दिखावा उनको कतई पसंद नहीं और नकली लोगों से दूर रहना उनकी पहली पसंद है।

राजस्थान की राजनीति में माथुर का सदा से दबदबा रहा है। वसुंधरा राजे के पराक्रमी राजनीतिक युग के दौर में भी उनका नाम कई बार राजस्थान के मुख्यमंत्री पद के लिए भी चर्चा में रहा और हाल ही में राजस्थान में जब बीजेपी बहुमत में आई तो भी हर किसी की जुबान पर जो संभावित नाम चर्चा में रहे, उनमें भी ओम प्रकाश माथुर का नाम सबसे ऊपर था। अब, जब माथुर को सिक्किम का राज्यपाल बना दिया गया है, तो कईयों ने निश्चित रूप से राहत की सांस ली होगी, क्योंकि मुख्यमंत्री पद के लिए हर बार उन्हीं का नाम सबसे आगे आता रहा है। राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने उन्हें बधाई देते हुए सोशल मीडिया साइट ‘एक्स’ पर लिखा कि महामहिम राष्ट्रपति महोदया श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी द्वारा श्री ओमप्रकाश माथुर जी को सिक्किम राज्य का महामहिम राज्यपाल नियुक्त किए जाने पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। इसी तरह से उन्हें प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ ने भी बधाई दी, जिनका टिकट कटवाने का कलंक भी माथुर के माथे पर मढ़ने की कोशिशें हुईं। लेकिन अब माथुर के माथे पर महामहिम होने का मुकुट भी है और राजनीति की विराट विरासत का विश्वास भी।

राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार)

टिप्पणियाँ

  1. श्रीमान ओमजी भाई साहेब से मेरा बहुत पुराना नाता हैं और मेरे प्रेरणा स्रोत रहे हैं।
    सुरेश कटारिया

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