ज्ञानपूर्वक होनेवाली क्रिया से धर्म बनता है :- निपुणरत्न विजयजी
कषायमुक्त होने का उपाय गुरु ही बताते हैं,वाघेश्वरी पोल में प्रवचन
अहमदाबाद :- धर्म और अधर्म का भेद जानना आवश्यक है, क्योंकि बिना जाने किया गया प्रयास फलदायी नहीं बनता, कमाई न हो उसे हम व्यापार नहीं कहते, Fail होने पर उसे पढ़ाई नहीं कहते, वैसे जो दुर्गति में जाते न रोक सके, उसे धर्म नहीं कहते.
उपरोक्त विचार पू गच्छाधिपति श्री नित्यसेन सूरीश्वरजी म.सा. व आचार्य श्री विजय जयरत्न सूरीश्वरजी म.सा.के आज्ञानुवर्ती पुण्यसम्राट् गुरुदेव श्री के शिष्य समतागुणरसिक मुनिराज श्री निपुणरत्न विजयजी म.सा ने वाघेश्वरी पोल में आयोजित प्रवचनधारा में व्यक्त किये।ज्ञात हो मुनिराज का चातुर्मास अहमदाबाद में है।
धर्मसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि धर्म मात्र क्रियात्मक नहीं होता, ज्ञानपूर्वक होनेवाली क्रिया धर्म बनता है, वही धर्म दुर्गति से बचाता है, ज्ञान प्राप्ति के लिए गुरु की शरण में जाना है।मुनिराज ने बताया कि बाह्य रोग हमेशा नहीं होते, लेकिन कषाय आदि रोग हर पल पीड़ा देते हैं, कषायमुक्त होने का उपाय गुरु ही बताते हैं, उसके लिए ही उनकी शरण में जाना ही पड़ता है..
उन्होंने कहा कि समर्पितता के बिना गुरु कुछ नहीं कर सकते, जहां समर्पितता होती है, वहां अपेक्षा नहीं होती, उसके बाद एक ही भाव रहता है, कि ये मेरे गुरु है, वो भाव ही तारने में समर्थ है।
निपुणरत्न न कहा कि मोक्ष के लिए समभाव जरूरी है। समभाव जिसके पास हो, वो ही दे सकते हैं, अतः समभाव के लिए गुरु की शरण में जाना है, वो समभाव में रहते हैं और अपनी शरण में आनेवाले को समभाव का उपाय बताते हैं।
गुरु के दो कार्य हैं, हमें माफ करना और साफ करना, वो हमारी गलती सुधारकर माफ करते हैं, आलोचना देकर साफ करते हैं इसीलिए इस भव की गुरुभक्ति भवोभव सद्गुरु का योग करानेवाली होती है, इसलिए गुरुभक्ति परम आवश्यक है।पोल में श्री राजेन्द्रसूरि गुरु मंदिर में प्रवेश एवं प्रवचन हुआ, प्रवचन में दादा गुरुदेव श्री की महिमा का अद्भुत वर्णन किया।इस गुरुमंदिर का उदघाटन एवं दादा गुरुदेव के चित्र स्थापना वर्षों पूर्व पुण्यसम्राट् गुरुदेव श्री के हाथों से हुई थी।आप चातुर्मास पूर्व शहर के विभिन्न संघो में विहार करेंगे।
।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें