मुनिराज डॉ लाभेश विजयजी का चातुर्मास पुना में

15 जुलाई को होगा भव्य प्रवेश


पुना :-
अभिधान राजेन्द्र कोष के रचियता प्रभु श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरिश्वरजी म. सा. के समुदायवर्ती पंन्यास प्रवर श्री लोकेन्द्र विजयजी म. सा. के शिष्यरत्न ज्योतिषरत्न मुनिराज डॉ. मुनिराज श्री लाभेश विजयजी म. सा.का चातुर्मास पुना में हो रहा है।

 श्री जैन श्वेतांबर दादाबाडी टेम्पल ट्रस्ट के तत्वावधान में सोमवार 15 जुलाई को भव्य चातुर्मास प्रवेश होगा।इस अवसर पर मुनिराज श्री ललितेशर विजयजी म.सा.का भी प्रवेश होगा।चातुर्मास में सुबह 9.15 से 10.15 तक नित्य प्रवचन,सामूहिक प्रतिक्रमण,स्नात्रपूजन,पौषध,ध्यान सामूहिक आयंबिल अठ्ठाई मासक्षमण,21 जुलाई 2024 गुरु पूर्णिमा महोत्सव,26 जुलाई से 23 अगस्त तक शत्रुंजय महातप,आसोज सुदि नवपदजी ओली आराधना,2 अगस्त से 4 अगस्त तक श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान के सामूहिक अठ्ठम तप की आराधना,हर पुनम को प्रभुजी का महाअभिषेक प्रभाविक महामांगलिक प्रति रविवार सुबह 9.30 बजे,ॐ ह्रीं अर्ह के 4 महिने लगातार सामूहिक जाप,11 अगस्त से 19 अगस्त तक सामूहिक नवकार मंत्र की आराधना 9 एकासणे,31 अगस्त से 7 सितंबर 2024 तक पर्वाधिराज पर्व पर्युषण सह सामूहिक क्षमापना का भव्यातिभव्य आयोजन होंगे।

डॉ लाभेश विजयजी ने कहा कि यह प्रकृति का घटनाक्रम चलते रहता है।यह प्रकृति रानी भी बड़ी अजब गजब है।इसके परिधान परिवर्तित होते रहते हैं, और इसी परिवर्तन के दौर में गर्मी आती है, ठंड आती है, और आता है चौमासा जैन शाखा में आषाढी चौमासा को महिमा मंडित किया गया है।उन्होंने बताया कि इस चातुर्मास का महत्व लौकिक जगत में है तो आध्यात्मिक जगत में भी है, क्योंकि इसी अवधि में बार-बार बादलों का योग बनता है, पानी की वृद्धि होती है। जो लौकिक समृद्धि का आधार है। लोकोत्तर जगत में इस अवधि में गुरु का योग बनता है जो आध्यात्मिक समृद्धि का आधार है। लोकोत्तर जगत में इस अवधि में गुरु का योग बनता है जो आध्यात्मिक समृद्धि का आधार है। इस चातुर्मास में लौकिक सृष्टि और आध्यात्मिक सृष्टि भी बदलती है।

मुनिराज ने कहा कि साधुचर्या का एक शब्द है चातुर्मास (वर्षायोग) जिसे साधु विधिपूर्वक एक स्थान पर बिताते है। चातुर्मास का संयोग हमारी मनःस्थिति में भरे विभिन्न प्रदुषणों को समाप्त करके साथ ही दृष्प्रवृत्तियों को सत्य वृत्तियों में बदलने का कार्य करता है, जिसके दिशा-दर्शन के फलस्वरूप सभी लोगों में धर्म का भाव होता है। मानव शरीर को धर्माचरण में लगाकर जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।

चातुर्मास के 4 महिने तक एक क्षेत्र मर्यादा में स्थायी रूप से निर्वासीत रहते हुए जैन दर्शन अनुसार मौन साधना, ध्यान, तपस्या, अवलोकन की प्रकिया, सामायिक, प्रतिक्रमण, स्वाध्याय, जय, संस्कार शिविर, धार्मिक उ‌द्बोधन (प्रवचन) में हर व्यक्ति के मनमंदिर में तीर्थंकरों एवं सिद्धपुरुषों की जीवनी से अवगत कराने की प्रक्रिया इस पुरे वर्षावास के अंतर्गत निरंतर गतिमान रहती है।संघ ने चातुर्मास में प्रवेश व चार माह गुरु भगवंतों के दर्शन वंदन की अपील भारतभर के संघो से की है।


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