वीरायतन की संस्थापिका आचार्य चंदनाजी को पद्मश्री
महाराष्ट्र की बेटी ने बिहार को बनाया कर्मभूमि
जैन साध्वी को पहलीबार मिला यह पुरस्कार
यह सम्मान सिर्फ जैन समाज या धर्म का नही बल्कि मानव सेवा में विश्वास रखनेवालों का सम्मान हैं।उन्होंने भगवान महावीर के 'जीयो और जीने दो' को अपने कामों से सही अर्थों में सार्थक किया है।आप नारी शक्ति का प्रतीक हैं।उन सभी महिलाओं के लिए उदहारण हैं जो कुछ करना चाहती है।पुरस्कार मिलने पर आपको बधाई व कोटि कोटि वंदन।आप दीर्धायु हो यही प्रभु के चरणों मे मंगल कामना।
दीपक आर जैन,
शांति वल्लभ टाइम्स
बिहार :- राजगीर विरायतन में पिछले 53 सालों मानव सेवा में जुटी जैन साध्वी आचार्य चंदनाजी को उनके कार्यों के लिए देश के सरवोच्चसम्मन में एक पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। यह समस्त जैन समाज के लिये गौरव की बात हैं।वे पहली जैन साध्वी हैं जिन्हें यह पुरस्कार दिया जाएगा। मूल रूप से महाराष्ट्र के अहमदनगर की हैं। आचार्य चंदनाजी कहती हैं कि बिहार उनकी कर्मभूमि है। बता दें कि पद्म श्री पुरस्कार भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में शामिल हैं,और यह पुरस्कार भारत सरकार द्वारा प्रतिवर्ष भारतीय नागरिकों को उनके असाधारण कार्यों के लिए प्रदान किया जाता हैं।
राजगीर वीरायतन की संस्थापक आचार्यश्री चंदना जी महाराज का पद्मश्री अवार्ड के लिए चयन किया गया है। चंदना जी अपनी इच्छाशक्ति से कई ऐसे कार्य कर चु़की हैं जिनसे इतिहास के पन्नों में उनका नाम दर्ज हो गया है।
वे जैन धर्म में आचार्य पद प्राप्त करने वाली प्रथम साध्वी हैं। दिव्य व्यक्तित्व की स्वामिनी 84 वर्षीया चंदनाजी लगभग 53 वर्षों से लोगों की सेवा कर रही हैं। 1972 में राजगीर में अपना मानवीय कार्य शुरू किया। उन्होंने राजगीर में वीरायतन की स्थापना पूज्य गुरुदेव उपाध्याय अमर मुनिजी महाराज की प्रेरणा से की। वीरायतन की 1974 में स्थापना के बाद नेत्ररोगियों की चिकित्सा सेवा में जुट गईं।
महाराष्ट्र की शकुंतला ऐसे बन गईं आचार्य चंदना
जब भारत अंग्रेजी हुकूमत का दंश झेल रहा था, तब 26 जनवरी 1937 महाराष्ट्र के जिला पुणे के चस्कामन गांव के एक भील परिवार में इनका जन्म हुआ। माता प्रेम कुंवर कटारिया व पिता माणिकचंद कटारिया ने कल्पना भी नहीं की होगी कि उनके घर एक दिव्य व्यक्तित्व का जन्म हुआ है, जो भविष्य में अपने दिव्य प्रकाश पुंज से उनका ही नहीं बल्कि विश्व समुदाय में नाम रोशन करेगा। उन्होंने इनका नाम शकुंतला रखा। पराधीन व स्वाधीन भारत की हवा में सांस लेने का अनुभव किशोरी शकुंतला को हुआ। मन ने मानव सेवा का रास्ता चुना। तब स्वयं को समाज के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने तीसरी कक्षा तक औपचारिक शिक्षा ग्रहण की।
14 वर्ष की आयु में ली जैन धर्म की दीक्षा
शकुंतला के नाना ने उन्हें जैन साध्वी सुमति कुंवर के अधीन दीक्षा लेने के लिए मना लिया। चौदह वर्ष की आयु में उन्होंने जैन दीक्षा ली और साध्वी चंदना बन गईं। उन्होंने जैन धर्मग्रंथों, जीवन के अर्थ और उद्देश्य और विभिन्न धर्मों का अध्ययन करने के लिए 12 वर्षों का मौन व्रत किया। इसके बाद तो मानों बड़ी-बड़ी डिग्रियां उनका इंतजार करने लगी। उन्होंने भारतीय विद्या भवन, मुंबई से दर्शनाचार्य की उपाधि प्राप्त की, पराग से साहित्य रत्न, और पाथर्डी धार्मिक परीक्षा बोर्ड से मास्टर डिग्री ली। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से नव्य न्याय और व्याकरण के विषयों में शास्त्री की उपाधि प्राप्त की।
वीरायतन स्थित नेत्र ज्योति सेवा मंदिरम में अब तक लाखों नेत्र रोगियों के अंधेरे जीवन को इंद्रधनुषी रंग की रोशनी मिली है। बीते 8 जून 2017 से पालिताणा व गुजरात में वीरायतन शिक्षा के क्षेत्र के तहत उक्त स्थानों पर तीर्थंकर महावीर विद्या मंदिर विद्यालय की शुरुआत कर चुकी हैं।
जहां नारी का सम्मान वहीं रहती सुसंस्कृति
जहां नारी सम्मान होता है, वहीं सुसंस्कृति, आदर, संतोष, गुण विद्यमान होता है। राजगीर की धरती पर 49 वर्ष पूर्व कुछ साध्वियां पहुंच कर अगर बिहार के इतिहास में एक बेहतर अध्याय जोड़ सकती हैं तो बिहार की जनता इस सत्कर्म में मिलजुलकर बिहार का सर्वांगीण विकास करने का प्रयास क्यों नहीं कर सकती है। सम्मिलित प्रयास से कम समय में काम कर बिहार के अलावा देश को स्वर्ग बना सकते हैं।
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