बोलो जय कसरियानाथ री... एक बार फिर से…

मंदिर किसका लेकर क्या फिर विवाद होगा केसरियाजी को लेकर?

सिद्धराज लोढ़ा


मुंबई।
केसरियाजी मंदिर एक बार फिर से विवाद में आ सकता है। सुप्रीम कोर्ट के फैसला इस विवाद की जड़ बनेगा। सबसे पहला विवाद तो स्थानीय आदिवासियों न जैन समाज के बीच संभव है, लेकिन अगर वह सुलझ गया, तो विवाद श्वेतांबरों व दिगंबरों के बीच हो सकता है, क्योंकि मंदिर प्रबंधन पर जैन समाज के किस समुदाय का कब्जा हो, यह विवाद सदियों से चल रह है। लेकिन राजस्थान सरकार की तिजोरी भरनेवाले इस मंदिर का प्रबंधन सरकार आसानी से छोड़ देगी, यह भी सबसे बड़ा सवाल है।  

केसरियाजी मेवाड़ में जैन धर्म का प्रमुख तीर्थ है। हर साल फाल्गुन सुद अष्टमी को यहां मेला लगता है। केसरियाजी मंदिर में पांचों अंगुलियों से मूर्ति की केसर से पूजा होती है, जिससे भगवान ऋषभदेव की काले रंग की मूर्ति केसरिया रंग की दिखती है, इसी कारण इस तीर्थ स्थल को केसरियाजी के नाम से जाना जाता है। वैसे, यहां के स्थानीय लोग इसे कालिया बाबा भी कहते हैं और मारवाड़ में तो ‘कालिया बाबा रो परचो भारी जी ओ...’ के गीत भी गाए जाते हैं। 

विख्यात जैन तीर्थ देलवाड़ा और राणकपुर के समकक्ष संगमरमर पर बेहद आकर्षक, भव्य और कलात्मक कीरागरी से समृद्ध 52 सुंदर स्तंभवाले इस मंदिर का निर्माण 8वीं शताब्दी का माना जाता है।  जैन परंपरा में नंदीश्वर द्वीप के 52 मंदिरों के प्रतीक के रूप में, 52 शिखरवाले इस मंदिर का निर्माण हुआ था।

करीब तीन दशक पहले मारवाड़ से भी बहुत बड़ी संख्या में दर्शनार्थी साल में कई कई बार केसरियाजी के दर्शन के लिए जाते थे, लेकिन विवाद में आने के बाद लोगों का जाना कम हो गया और ज्यादातर लोग नाकोड़ा जी जाने लगे। जबकि पहले विवाह करके सबसे पहले केसरियाजी के दर्शन करने ही जाना ही मारवाड़ व गोड़वाड़ की सामाजिक परंपरा का हिस्सा माना जाता था।    

केसरियाजी मंदिर शुरू से ही विवाद में रहा है। दरअसल मंदिर का सारा प्रबंधन मेवाड़ राजपरिवार का था, लेकिन सन 1935 में एक फैसले में महाराणा भूपाल सिंह ने आदेश दिया था कि जो संप्रदाय अधिक धन देता है मंदिर पर पहली पूजा का अधिकार उसी का होगा। इस फैसले से दिगंबर, श्वेतांबर, सनातनी और भील समुदाय सभी संतुष्ट हुए। लेकिन बाद में भी रह रह कर विवाद होते रहे। सन 1974 में इसके जैन मंदिर या हिंदू मंदिर होने पर विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने समस्त तथ्यों, मंदिर की बनावट व इतिहास पर विचार करने के बाद फैसला दिया कि यह एक श्वेतांबर जैन मंदिर है। आजादी के बाद संविधान लागू होने पर मंदिर के प्रबंधन का अधिकार मेवाड़ स्टेट से सरकार ने ले लिया था इसलिए इस मंदिर के प्रबंधन पर जैनों का अधिकार नहीं रहा। इससे पहले भी इसी तरह के कई विवादों व हिंसक घटनाओं का गवाह भी ऋषभदेव मंदिर रहा है। 

सही मायने में देखें तो इस मंदिर पर अधिकार जमाने की कोशिश में हिंदू एवं जैन समुदाय के लोगों में तनाव होता रहा है एवं एक बार फिर 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने जैन समुदाय के बारे में फैसला दिया तो स्थानीय भीलों ने उसका जोरदार विरोध किया था एवं बड़े पैमाने पर हिंसा भी हुई थी। इससे पहले भी मेवाड़ के महाराणा फतेह सिंह के काल में भी मंदिर में विवाद छिड़ा तक श्वेतांबरों ने कहा कि मंदिर पर पूजा का प्रबंध उनका है, लेकिन दिगंबर विरोध करने लगे दोनों ही समुदायों में अपने-अपने तरीके के पूजा करने पर विवाद के कारण दोनों समुदाय में मारपीट हुई और मंदिर में भगदड़ के बाद 2 श्रद्धालुओं की मौत भी हुई थी। अब सुप्रीम कोर्ट द्वारा इसे जैन मंदिर बताने के बाद फिर से विवाद पैदा हो सकता है।

(लेखक शताब्दी गौरव के संपादक हैं)

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