वर्दीतल्या माणसाच्या नोंदी ' का भव्य-प्रकाशन

 पुलिस आयुक्त डॉ. सदानंद दाते द्वारा लिखित है किताब

🔳 सुभाष पांडेय,भाईंदर


भायंदर :-
 मीरा-भायंदर व वसई-विरार  पुलिस आयुक्त डॉ. सदानंद दाते द्वारा लिखित पुस्तक ' वर्दीतल्या माणसाच्या नोंदी ' इस 144  पृष्ठीय किताब का प्रकाशन पिछले दिनों संपन्न हुआ। पुस्तक की प्रस्तावना जूलियट फ्रांसिस रिबेरो ने लिखी है। देश के वयोवृद्ध सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी जूलियट रिबेरो को भारत-सरकार के तीसरे सर्वोच्च सम्मान, पुरस्कार ' पदम-विभूषण '  से भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा 1987 में सम्मानित किया जा चुका है। ' रिबेरो ' सन 1953 के भारतीय पुलिस सेवा के बैच के डेशिंग, इंटेलिजेंस , कर्तव्यनिष्ठ पुलिस अधिकारी रह चुके हैं। सन 1982 से 1986 के कार्यकाल के बीच ' मुम्बई पुलिस कमिश्नर ' भी रह चुके हैं। पंजाब में सन 1980 में उग्रवाद तेजी पर था तब जूलियट रिबेरो को पंजाब राज्य का डीजीपी बनाया गया था। पूरे पंजाब में चल रहे उग्रवाद पर जूलियट रिबेरो ने बहुत ही प्रामाणिक ढंग से पंजाब में ' सिख आतंकवादियों द्वारा खालिस्तान '  चलाये जा रहे ' आतंकी मुहिम ' को कंट्रोल किया था। बता दें कि, ' रिबेरो साहब ' गुजरात के डीजीपी भी रहे, ' केंद्रीय रिज़र्व पुलिस महानिदेशक ' का पदभार भी संभाला। ' बुलेट फ़ॉर बुलेट ' टेक्निक के द्वारा उन्होंने उग्रवाद पर काबू करने की कोशिश की। ऐसे ' ग्रेट पुलिस ऑफिसर ' जे.एफ. रिबेरो ने ' डॉ. सदानंद दाते पुलिस अधिकारियों में नभगण का तारा ' कहा। ' सत्य एवं न्याय ' पर सतत चलनेवाले डॉ. सदानंद दाते ' विशेष पोलिसिंग ' के साथ-साथ मानवता के कसौटी पर चलनेवाले एक ' सच्चे योद्धा ' हैं। 

ज्ञात हो कि, इस दुर्लभ एवं संग्रहणीय पुस्तक ' वर्दीतल्या माणसाच्या नोंदी ' पुस्तक की प्रथम संस्करण दिसम्बर 2021में प्रकाशित हुई है। ' पुस्तक प्रकाशन ' की जिम्मेदारी आनंद वाधवानी एवं सुहास कुलकर्णी ने बखूबी निभाई। इस संहिता के पुनीत कार्य मे गौरी कानेटकर, प्रीति छत्रे का उल्लेखनीय योगदान रहा। ' समकालीन प्रकाशन , पुणे ' द्वारा डॉ. सदानंद दाते द्वारा लिखित पुस्तक प्रकाश में लाया गया है। हेमंत पद्माकर जोशी, स्मिता टाइपसेटर, पुणे ने भी पुस्तक को आकार देने में ' बढ़िया प्रस्तुतिकरण ' किया है। 

यह पुस्तक पुलिस-विभाग के अधिकारियों एवं कर्मचारियों समेत जनता तथा पाठकों के लिए अति उपयोगी सिद्ध होगी। यह पुस्तक ' लोगों को सत्य एवं न्याय पथ पर चलने की प्रेरणा देती है । ' साथ ही ' भ्रष्टाचार से दूर होने की शिक्षा ' भी देती है। अनुक्रमणिका में 17  शीर्षकों में पुलिस दल में प्रवेश, शुरुवात के दिन, काम करने की लगन, वाचन एवं मनन, विरोधाभाष की स्थिति, ' जेड सिक्युरिटी ' के अंतर्गत, कनिष्ठ कर्मचारी-पुलिस दल की ताक़त, पुलिस की परीक्षा-उत्सव की गर्दी, तनाव अंतर्गत कार्य, 26 / 11 की कसौटी, ' फोर्स -वन ' की संरचना, व्यवस्था के अंतर्गत सहप्रवास, व्यवस्था के अंतरंग रहकर : संघर्ष एवं समन्वय , अपराध, अपराधी एवं पुलिस, संशोधन क्षेत्र में डुबकी, भ्रष्टाचार के साथ संघर्ष, माध्यम के साथ मिलजुलकर, क़ानूनराज मजबूत करने के लिए तत्पर विषयों पर ' धाराप्रवाह लेख ' लिखा गया है।  कुल मिलाकर पुस्तक प्रिय, संग्रहणीय, अनुकरणीय है। इस पुस्तक की कीमत मात्र 200/- रुपये है। पुस्तक प्राप्त करने संबंधी अधिक जानकारी हेतु ' समकालीन प्रकाशन 'के ' मोबाइल व्हाट्सअप नंबर ' 9370979287 पर ' अपना पूरा नाम एवं पता ' प्रेषित कर प्राप्त कर सकते हैं।  ' समकालीन प्रकाशन ' का पोस्टल पता है :- 8, अमित कॉम्पेक्स, 474, सदाशिव पेठ, पुणे 411 030, फोन :020-24470816 है तथा ईमेल पता है - samakaleen@gmail.com

गौरतलब है कि,  5 जून 1966 में जन्में सन 1990 के बैच के  कर्तव्यनिष्ठ ' नक्सली एवं मुम्बई आतंकी हमले के  ' ऑपरेशन विशेषज्ञ, लॉ एंड ऑर्डर हेतु सक्षम-पुलिस अधिकारी डॉ. दाते को कई बार राष्ट्रपति द्वारा ' सम्मानित एवं पुरस्कृत ' किया जा चुका है। उन्हें महाराष्ट्र-सरकार ने, पिछले वर्ष  ' मीरा-भायंदर व वसई-विरार पुलिस आयुक्तालय ' के लिए ' प्रथम पुलिस आयुक्त ' ( समकक्ष अडिशनल डीजी ) हेतु पोस्टिंग की थी। पुलिस आयुक्त डॉ. सदानंद दाते ने मीरा-भायंदर, वसई-विरार के समस्त पुलिस स्टेशनों का दौरा किया तथा ' क्राइम ग्राफ़ ' का जायज़ा लिया था। इस मौके पर थाणे ( ग्रामीण ) एवं पालघर जिला पुलिस के सभी भागों के विशिष्ठ पुलिस अधिकारी उपस्थित थे। मीरा-भायंदर , वसई-विरार की तेजी से बढ़ रही जनसंख्या, बढ़ते अपराध के चलते कई दशकों से ' मेट्रोपोलिटिन सिटी ' होने के चलते ग्रामीण पुलिस से ' शहरी पुलिसिकरण ' की मांग की जा रही थी। जोकि, साकार हुवा। अभी हाल ही में पुलिस-आयुक्तालय में पुलिस आयुक्त डॉ.सदानंद दाते ने एक ' प्रेस-कॉन्फ्रेंस ' लिया था। जिस ' प्रेस-कॉन्फ्रेंस ' के माध्यम से पत्रकारों को पुलिस द्वारा किये गए कार्यों का ' वार्षिक -अहवाल ' की जानकारी दी गई थी। 

ज्ञात हो कि, वसई-विरार, नालासोपारा में दिन-दहाड़े मर्डर, चोरी, रॉबरी, बलात्कार, गैंगस्टर, चाल-माफिया एवं भू-माफिया का आतंक, ' टाडा-मकोका के ख़तरनाक आरोपियों ' के चलते ' निर्भय जन मंच ' के महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष एवं जनता दल (सेकुलर) के महासचिव मनवेल तुसकानो सन 1995 लगभग 25 सालों से ' पृथक पुलिस आयुक्तालय ' की मांग कर रहे हैं। उन्होंने ' महाराष्ट्र-सरकार एवं शासन ' से पिछले 18 वर्षों से ' पाठपुरावा ' किया है। बावजूद, इसके महाराष्ट्र-सरकार, शासन, गृह-विभाग ने ध्यान नही दिया। जब  थाणे के ' नागलाबन्दर ' के किनारे स्थित खाड़ी रास्ते आये ' आर.डी. एक्स . ' को पुलिस ने ज़ब्त किया तो सरकार, शासन की नींद उड़ी और ' मुम्बई में बम-विस्फोटों की ह्रदयविदारक घटना ' को ध्यान में रखते हुवे  इस संदर्भ में जब महाराष्ट्र पुलिस के पूर्व पुलिस महानिदेशक अरविंद इनामदार ने दौरा किया तो ' सागरी आयुक्तालय ' से संबंधित सविस्तार सरकार , शासन को अपनी रिपोर्ट सौंपी । सरकार, शासन ने ' मीरा-भायंदर, वसई-विरार '  में नए पुलिस आयुक्तालय हेतु ' फ़ाइल कार्य ' सुचारू रूप से शुरू कर दिया। मीरा-भायंदर से भी जब नए ' पुलिस शहरी आयुक्तालय ' की मांग शुरू हुई तो ' राजनैतिक पार्टियों की होड़ ' में सरकार को नए पुलिस आयुक्तालय के लिए ' राजपत्र ' निकालना पड़ा। ' सागरी पुलिस आयुक्तालय ' संक्षेप नाम को बदलकर आखिरकार " मीरा-भायंदर व वसई-विरार पुलिस आयुक्तालय " लंबे-चौड़े नाम से पुलिस आयुक्तालय की विधीवत रूप से घोषणा कर दी। उधर पालघर के सांसद राजेन्द्र गावित ने इस ' नए पुलिस आयुक्तालय ' को वसई-विरार में करने की मांग की है। वहीं दूसरी तरफ़ मीरा-भाईंदर की कर्मठ महापौर ज्योत्स्ना हसनाले का कहना है कि ,  शहर के ' डी. पी.प्लॉन ' में  पुलिस आयुक्तालय के लिए एक जमीन को आरक्षित रखा है। जब तक वहां पर ' पुलिस आयुक्तालय ' हेतु नए इमारत का निर्माण कार्य नहीं हो जाता, तब तक अस्थायी रूप से " मीरा-भायंदर व वसई-विरार पुलिस आयुक्तालय " मीरारोड के रामनगर में ही रहेगा। 

उल्लेखनीय है कि, " मीरा-भायंदर व वसई-विरार " के नवनियुक्त पुलिस आयुक्त डॉ. सदानंद दाते सन 1990 बैच के पुलिस अधिकारी हैं। डॉ. दाते मुम्बई पुलिस के ' क्राइम ब्रांच ' के चीफ़ एवं ' लॉ एंड ऑर्डर ' के जॉइंट सी. पी. रहे हैं।  26 /11 मुम्बई में ' पाकिस्तानी आतंकवादी ' हमलों का मुँहतोड़ जवाब देनेवाले सक्षम, निर्भिक, कर्तव्यदक्ष पुलिस अधिकारी रहे हैं। जो सबसे पहले मुम्बई में ' आतंकवादी हमलों का सामना करनेवाले पुलिस अधिकारी ' थे। जो ' कामा अस्पताल ' में अपने दल-बल के साथ घुसे एवं ' मुम्बई एटीएस ' के जन्मदाता तथा ' प्रतिनियुक्ति पद ' पर भी थे। डॉ. सदानंद दाते सीबीआई में अधीक्षक व महानिरीक्षक बतौर जिम्मेदार पद पर रहे। सन 2006 से 2008 में ' आर्थिक उदय शास्त्र ' शाखा सहायक पुलिस आयुक्त पद पर कार्यरत रह चुके हैं। सन 2009 ' महात्मा गांधी शांतता गौरव पुरस्कार ' मिला है। सन 2005 में ' राष्ट्रपति पुलिस पदक ' प्राप्त हुवा। सन 2009 में राष्ट्रपति के हस्तों ' पुलिस पदक बहुमान '। ' एम.कॉम. ' की डिग्री हासिल की। ' मुम्बई पुलिस दल ' में एडिशनल पुलिस कमिश्नर बतौर उल्लेखनीय कार्य किये। ' आर्थिक गुन्हे संबंधी प्रबंधन ' हेतु पुणे विद्यापीठ से ' पी.एच. डी. ' की उपाधि ग्रहण की। सन 2005-2006 में अमेरिका में ' व्हॉइट कॉलर क्रिमिनल ' ( पंढ़रापेशा समाजातील गुन्हेगारांची मानसिकता ) ' फूल ब्राईट ' विषय पर शिष्यवृत्ति ग्रहण की। डॉ. दाते ' मिनेसोटा विश्वविद्यालय ' में भाग लेकर ' हक़्क़ी फेलोशिप ' कार्यक्रम के तहत जहां उन्होंने संयुक्त राज्य में ' सफेदपोश और संगठित अपराध से निपटने हेतु ' सैद्धांतिक एवं व्यवहारिक पहलुओं का अध्ययन किया। भारत लौटने के उपरांत उन्हें अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (* आर्थिक अपराध शाखा ) के रूप में नियुक्त किया गया था। 

बता दें कि प्राप्त पुलिस रिकॉर्डों के अनुसार , मुम्बई में 26 /11 को हमला ' पाकिस्तान प्रशिक्षित आतंकवादी ' 1) आबू सोहेल, 2) हाफ़िज़ हरबाद उर्द अब्दुल रेहमान (बड़ा), 3) नाझिर उर्फ़ आबू उमर , 4) जावेद उर्फ़ आबू अली (टोली-पाकिस्तानी पाकिस्तानी), जोकि, ताज होटल में एन. एस. जी. कमांडो कार्रवाई में मारे गए 5) बाबर इमरान उर्फ़ आबू आकाशा, 6) नाशीर उर्फ़ आबू उमर (टोली-पाकिस्तानी आतंकवादी) नरीमन हाऊस इमारत में एन. एस. जी. कमांडो के कार्रवाई में मारे गए थे। 7) इस्माईल खान (टोली-पाकिस्तानी आतंकवादी ) गिरगांव चौपाटी पुलिस कार्रवाई में मारे गए। 8) फ़ज़ाद उल्ला, 9) अब्दुल रेहमान (छोटा) टोली-पाकिस्तानी आतंकवादी ओबरॉय होटल में एन. एस. जी.कार्रवाई में मारे गये थे। जबकि, कसाब को पुलिस कांस्टेबल तुकाराम ओंबले ने रंगे हाथ पकड़ लिया था। लेकिन , आतंकवादी अज़मल कसाब को जिंदा पकडनेवाले तुकाराम ओंबले  आतंकवादी अज़मल कसाब ' द्वारा अंधाधुंध फायरिंग ' में तुकाराम ओंबले  शहीद हो गए थे। 

मुम्बई में ' पाकिस्तानी आतंकवादियों ' द्वारा कारस्तानी जारी था। इसी बीच मुम्बई पुलिस के जांबाज आईपीएस पुलिस ऑफिसर डॉ. सदानंद दाते उस समय घर पर खाना खाकर आराम करने जा रहे थे तब उन्हें सह-पुलिस आयुक्त के.एल प्रसाद का फोन आया और ' कामा अस्पताल ' के पास ' पोजिशन ' संभालने के लिए कहा गया। वे ' मलबार हिल पुलिस स्टेशन ' पहुंचे । जहां उन्हें ' एके 47 ' एवं ' बुलेटप्रूफ़ जैकेट ' की जरूरत थी। लेकिन, उन्हें मात्र ' 2 कार्बाइन ' ही उपलब्ध हो पाए। मलबार हिल से दल-बल के साथ पारसी डेरी फ़ार्म, मेट्रो सिनेमा जंक्शन से सीधे ' कामा अस्पताल ' पर मोर्चा संभाला- था।  वहां जाकर पता चला कुछ आतंकवादी ' कामा अस्पताल ' में 4 थे महले पर हैं। अस्पताल के वॉचमैन से लिफ़्ट से 6 वें महले पर चलने को कहा। ' कामा अस्पताल ' में डॉ. सदानंद दाते अपने पुलिस दल के सद्स्यों को ' ब्रीफिंग ' दी, साथ ही ' बुलेटप्रूफ जैकेट '  समेत ' शस्त्र चलाने के आदेश, ' आतंकवादियों ने इस बीच कई ' हैंड ग्रेनेड ' हमले किये। डॉ. सदानंद दाते समेत कई पुलिसवाले चोटिल हो गये। हाथ, पाँव, सिर, सीने पर गहरे जख्मों से खून बह रहा था। ' ज़ख्मी पुलिसवालों ' को त्वरित मेडिकल की जरूरत थी। बावजूद, उन " ख़तरनाक /पाकिस्तानी आतंकवादियों " का सामना करते रहे, मुठभेड़ जारी रही। लगभग 50 मिनट तक एके 47 से फायरिंग, हैंड ग्रेनेड फेंकने का सिलसिला जारी रहा। इसमें एक ' पाकिस्तानी आतंकवादी ' अबू इस्माईल को डॉ. दाते ने गोली मारी थी। ' कंट्रोल रूम ' को वायरलेस सेट द्वारा ' ऑपरेशन की जानकारी ' दी जा रही और ' अतिरिक पुलिस बल ' को भी मंगाया गया था। डॉ. दाते अपने ' पुलिसिया टीम ' के साथ डंटकर खड़े रहे। 

प्राप्त जानकारी के अनुसार आईपीएस सदानंद दाते की पहली पोस्टिंग 1993 में रत्नागिरी के चिपलून में हुई। इससे पहले ' एकाडमिक पोस्टिंग ' पर रहे।  भंडारा में पुलिस अधीक्षक पद पर थे तब पुलिस भर्ती के लिए उस समय के आमदार, खासदार, पालकमंत्री का जिले के ग़रीब, क़ाबिल नोजवानों के पुलिस भर्ती के लिए बड़े ' सिफारिश पत्र' आते थे। बावजूद, क़ाबिल लोगों को ही बतौर पुलिस कॉन्स्टेबल भर्ती किया था। मुम्बई के धारावी में मुस्लिम के दो गुटों में आपसी झड़प के चलते दंगा, आगजनी से इलाको को बचाना, शांति-व्यवस्था बनाये रखने में उन्होंने बहोत बढ़िया कार्य किया था । उस समय पुलिस -स्टेशन के बाहर ' बेकाबू भीड़ ' को संभालने का सुकार्य ' क़ाबिल पुलिस ऑफिसर ' डॉ. सदानंद दाते ने किया था। इसी तरह गुजरात के भावनगर में जब डॉ. सदानंद दाते सीबीआई में थे एक ' सीक्रेट ऑपरेशन ' के तहत स्टेट बैंक के जनरल मैनेजर की अम्बेसेडर गाड़ी का इस्तेमाल किया था। उस अम्बेसेडर गाड़ी के ड्रायवर से डॉ दाते ने पूछा कि, यह गाड़ी पुरानी लगती है। गाड़ी के ड्रायवर ने बताया कि यह अम्बेसेडर गाड़ी 70,000 सत्तर हज़ार किलोमीटर चली है। फिर भी गाड़ी इतनी परफ़ेक्ट, साफ़-सुथरी, ' गाड़ी के अंदर का इंटीरियर ' इतना बढ़िया कैसे है ? इस पर उस ड्राइवर ने जवाब दिया, साहब इस गाड़ी से मेरी रोजी-रोटी चलती है। इस कार को बड़े ही हिफाज़त से रखता हूँ। मुझे मिलने वाले ' पगार का कुछ हिस्सा ' इस गाड़ी पर जरूर खर्चा करता हूँ। साहब लोगों का क्या है, वो तो आते-जाते रहते हैं। लेकिन, यह गाड़ी मेरे पास रहती है। मैं इस पर अपने ' निजी पगार ' का हिस्सा हर महीने जरूर खर्च कर इस गाड़ी को परफेक्ट रखता हूँ।  

इसी तरह कई जीवन के रोचक प्रसंग कर्तव्यनिष्ठ आईपीएस पुलिस अधिकारी डॉक्टर सदानंद दाते की जीवन मे आये। जब वे पांचवी कक्षा में पढ़ रहे थे तब उनकी घर की परिस्थिति अच्छी नहीं थी। ' दस बाई दस ' के कमरे में रहते थे। पिता का भी उनके बचपन के समय निधन हो गया था। जब वे 8 वीं कक्षा में पढ़ रहे थे। तब माता ने कष्ट करके डॉ. सदानंद दाते को पढ़ाया। दाते ने बचपन मे सकाळ, केसरी, तरुण भारत आदि समाचार-पत्रों का घर-घर जाकर वितरण किया है यह कार्य कई सालों तक अनवरत चलता रहा। पुणे में ' शिवाजी नगर पुलिस लाइन ' है जहां पर पुलिस कॉन्स्टेबल के घरों में भी पेपर-अख़बार पहुंचाए। साथ ही गरीब, माध्यम वर्ग, धनाढ्यों के यहां भी समाचार पत्र वितरण करने पर अलग अनुभव हुवा और जीवन मे कुछ बड़ा सुकार्य करने की ठानी। चपरासी से लेकर, पूजा करने का काम, लायब्रेरी की देखभाल भी करते रहे।  ' देश और समाज ' के लिए उल्लेखनीय योगदान में अपनी  भूमिका निभाने की सोची और ' एम.कॉम. ' करते हुवे ' यूपीएससी ' के इंतेहान पास किये। 6 दिसंबर 1992 को ' बाबरी मस्जिद ' विध्वंस के बाद अमरावती में कर्फ़्यू के माहौल में काम किया। ' नागपुरी गेट पुलिस स्टेशन ' में दंगा करनेवालों से मोर्चा लिया। उन्होंने अपने सहकर्मियों पुलिसवालों की जानमाल की रक्षा करते हुए ' असामाजिक तत्वों ' को पकड़ा। जो दंगा में तलवार, छुरी , डंडे आदि घातक हथियार लेकर भाग ले रहे थे। डॉ. सदानंद दाते जब भंडारा में बतौर पुलिस अधीक्षक के पोस्ट पर थे तब 4 नक्सलवादियों को ' एन्टी नक्सल ऑपरेशन ' के तहत मार गिराया था तथा मध्यप्रदेश के जंगल से 2 नक्सलवादियों को जिंदा पकड़ा था। 

नक्सलवादी शिवाजी तुमरेड्डी व उसकी पत्नी ने ' एके 47 एवं 303 वेपन ' के साथ सदानंद दाते के सामने सरेंडर किया था। तब दाएं ने उनको ' फर्जी इंकॉउंटर ' में नहीं मारा और ' आत्मसमर्पण के बदले शासन से कहकर कुछ सज़ा में कमी करने का ' रिपोर्ट दिया था। इसी तरह जिजगर गांव में ' नक्सल दलम ' के लोगों को खाना नहीं देने का। ऐसी अपील गाँववालों से पुलिस अधिकारी डॉ. सदानंद दाते ' एक पुलिस ऑफिसर ' होने के नाते की थी। गाँव वालों ने डॉ. दाते के आव्हान को माना। उस समय ' नक्सलियों से सामना ' गाँव की सबसे बुजुर्ग महिला ने किया और ' अब गांव से खाना नहीं मिलेगा। ' ऐसा ' निर्भीकता से मोर्चा ' लिया। बुजुर्ग महिला ने कहा ' पहले मुझे मारो, फिर गांव में किसी को हाथ लगाने। ' उस समय नक्सलवादियों को गहरा झटका लगा था। वे उल्टे पाँव वापस चले गए थे। वर्धा जिला के साकोली गांव में ' नक्सल प्रॉब्लम ' को निपटाया। 21 अक्टूबर को " नेशनल पुलिस डे " होता है उस कार्यक्रम को जनता बहोत कम अटेंड करती है। जिससे पुलिसवालों को दुःख होता है, उनका मनोबल कम होता है। आख़िर वर्दी के अंदर पुलिस भी तो हमारी-तुम्हारी तरह एक साधारण इंसान ही तो है। साल भर में लगभग 900 से 1000 पुलिस अधिकारी, कर्मचारी शहीद होते हैं। जांबाज, सरल, कर्तव्यनिष्ठ आईपीएस पुलिस अधिकारी डॉ. सदानंद दाते ' मुम्बई के रिटायर्ड पुलिस अधिकारी दीपक जोग ' साहब का " वरिष्ठ मार्गदर्शन " के तहत अपने ' पुलिसिया जीवन ' मे अनुकरण करते हैं। जिसमें गुन्हे-शोध, लॉ एंड ऑर्डर, व्हाईट कॉलर क्रिमिनल्स, राजकीय दबाब, चांगली तपास अधिकारी, ग्रेट पुलिस अधिकारी संबंधी अपने ' पोलिसिंग जीवन ' में अनुकरण करते हैं।

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