अनाथों की नाथ थी सिंधुताई :- सुमन अग्रवाल

माई का निधन समाज के लिए अपूरणीय क्षति 


ठाणे :-  
पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित 73 वर्षीया प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता व मानवतावाद-नारीवाद की मसीहा सिंधुताई सपकाल का निधन समाजसेवा क्षेत्र के लिए बड़ी क्षति हैं।उनका स्थान भर पाना बहुत मुश्किल होगा।उपरोक्त विचार वूमंस राइट्स एक्टिविस्ट सुमन आर अग्रवाल ने उनके निधन पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए व्यक्त किये। 

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की सदस्य व अखिल भारतीय अग्रवाल सम्मेलन की राष्ट्रीय सचिव अग्रवाल ने स्व.सिंधुताई के समूचे जीवन को कड़ी संघर्ष गाथा और पावन सामाजिक अनुष्ठान बताते हुए कहा कि उनका देहांत समाज व राष्ट्र के लिए अपूरणीय क्षति है। अपनी पूरी जिंदगी अनाथ-बेसहारों की सेवा में गुजार देने वाली सिंधुताई ने लगभग 1500 अनाथ बच्चों को गोद लिया था, इसलिए उन्हें सभी आदर से माई कहा करते थे। उन्हें 1500 बच्चों की मां भी कहा जाता है। वे अपने परिवार में 382 दामाद, 49 बहुएं, 1 हजार से ज्यादा पोते-पोतियां बताया करती थीं। इतने बड़े परिवार को संभालने वाली सिंधुताई सपकाल की जीवन-कथा इतनी भाव विभोर कर देने वाली है कि सुनकर आंखें नम हो जाती हैं। 14 नवंबर 1948 को महाराष्ट्र के वर्धा में जन्मीं सिंधुताई सपकाल ने शुरू से ही भेदभाव का भीषण दंश झेला। अपने अविस्मरणीय सामाजिक योगदान के चलते प्रतिष्ठित अहिल्याबाई होलकर पुरस्कार और दत्तक माता पुरस्कार समेत कुल 273 राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों  नवाजी गईं सिंधुताई के जीवन पर आधारित मराठी में एक फिल्म भी बनी है। 

उल्लेखनीय है कि बचपन में लड़की होने की वजह से उन्हें हिकारत की नजर से स्थानीय बोली में चिंदी यानि कपड़े का फटा हुआ टुकड़ा कहकर बुलाया जाता था। सिंधुताई पढ़ना चाहतीं थीं, लेकिन उनकी मां को यह मंजूर नहीं था। हालांकि पिता ने पढ़ाने की कोशिश की, पर चौथी क्लास तक ही उनकी शिक्षा पूरी हो पाई। बावजूद इसके सिंधुताई के दिल में लोगों की मदद और सच को सच कहने का अदम्य जज्बा था। मात्र 10 साल की उम्र में 30 साल के पुरुष से ब्याह दी गईं सिंधुताई ने मजदूरी के पैसे न देने वाले मुखिया की शिकायत जिलाधिकारी से कर दी थी। लिहाजा,पति ने सिंधुताई को घर से निकाल दिया। तब वे गर्भवती थीं और घर की छत छिन जाने के बाद वे अपने मायके गईं, पर उन्होंने भी नहीं अपनाया। खैर, दुखों के लाख झंझावात सहने के बावजूद सिंधुताई ने हार नहीं मानी और रेलवे स्टेशन पर भजन-कीर्तन गाकर भीख मांगी व अपना गुजारा किया।

भीख मांगते बच्चों को देखकर उन्हें दया आती थी। सो उन्होंने इन अनाथ-बेसहारा बच्चों को अपनाया, पढ़ाया-लिखाया, उम्दा करिअर दिया। महिला सुरक्षा के तमाम दावों वाले इस देश में एक दौर सिंधुताई पर ऐसा भी आया, जब अपनी बेटी समेत खुद को सुरक्षित रखने के लिए उन्हें श्मशान में रहना पड़ा। सुमन अग्रवाल ने ममता की साक्षात मूर्ति सिंधुताई के ' जिओ और जीने दो ' के मूलमंत्र को आत्मसात कर सभी से उनके बताए आदर्श-पथ पर चलने की अपील की है, यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। 


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