मीरा-भायंदर में नालों की सफाई में भ्रष्टाचार !

हर साल एक ही कंपनी नाम बदलकर हथिया लेती है निविदा 
जनप्रतिनिधि- अधिकारी और ठेकेदार कंपनी के गठजोड़ पर सवाल 
 
निर्धारित मजदूरी से आधी मजदूरी दी जाती है सफाई कामगारों को 
 
करोड़ों रुपए खर्च के बावजूद मानसून में डूबता है शहर 
 
पानी में बह जाते हैं करदाताओं के पैसे
दीपक आर जैन 
भायंदर, मीरा भायंदर  मनपा का नाम आते ही जेहन में  भ्रष्टाचार की तस्वीर उभर आती है.  या यूं कहें,  भ्रष्टाचार और मीरा- भायंदर  मनपा का नाता गहरा है. समय-समय पर  यहां  कोई न कोई  घोटाला सामने आया है. वर्तमान में नालों की सफाई  के लिए  मंजूर  निविदा  की  भारी भरकम राशि स्थाई समिति द्वारा  मंजूर किए जाने पर सवाल उठ रहे हैं. सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि हर साल  एक ही कंपनी नाम बदलकर निविदा हथिया रही है.निविदा हथियाने वाली कंपनी को जिस शर्त पर मंजूरी दी जाती है उस शर्त का पालन कंपनी नहीं करती है.सफाई मजदूरों का भीषण शोषण ठेकेदार द्वारा किया जाता है.सफाई कामगारों को प्रति कामगार मजदूरी की आधी मजदूरी दी जाती है. ऐसे में नेता-अधिकारी और ठेकेदार के गठजोड़ पर सवाल उठना लाजमी है. सवाल इसलिए भी उठता है कि हर साल मीरा- भायंदर मनपा द्वारा क्षेत्र के नालों की सफाई मानसून से पूर्व कराई जाती है लेकिन मानसून के समय शहर डूबता जरूर है और जनता के करोड़ोंं रुपए पानी में बह जाते हैं.
 
निविदा राशि में भारी भरकम इजाफा
हर साल लगभग 150 कच्चे- पक्के नालों की सफाई मनपा द्वारा बारिश के पूर्व कराई जाती हैं. कुछ वर्षोंं पूर्व इसके लिए 1.50 करोड़ रुपये खर्च किये जाते थे. पिछले वर्ष 2 करोड़ 65 लाख रुपये खर्च किये गए तो इस वर्ष 3 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है. विशेष बात यह कि शासन से मिलने वाले अनुदान से अनेक बड़े नालों को बंद कर दिया गया है. इसके चलते इस साल खर्च में कटौती की उम्मीद थी. नाला सफाई के खर्चे में करीब दोगुना बढ़ोतरी होने से इसमें भ्रष्टाचार होने की आशंका से नकारा नहीं जा सकता . 
निविदा पर उठे सवाल
नालों की सफाई के लिए स्थाई समिति द्वारा मंजूर निविदा पर सवाल उठ रहे हैं.ठेकेदार को मशीनरी के लिए मंजूर की गयी दरें अपेक्षाकृत अधिक है. मशीनरी के लिए घंटे के हिसाब से पैसे दिए जाते हैं. परन्तु इस सामग्री को कितनी देर उपयोग में लिया जाता है इस पर मात्र किसी अधिकारी का ध्यान नहीं होता है,अर्थात जानबूझकर नजरअंदाज किया जाता है. इसमें ठेकेदार सहित नेताओं और अधिकारियों के आर्थिक लाभ का आरोप लगाया जा रहा है. 
 
सफाई मजदूरों का शोषण
नालों की सफाई के लिए काम करने वाले मजदूरों को न्यूनतम वेतन 1182 /रुपये तय किया गया है. लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि ठेकेदार द्वारा प्रति मजदूर 400 से 500 रुपये दिए जा रहे हैं.इससे स्पष्ट हैं कि मजदूरों का आर्थिक शोषण किया जा रहा है. ठेकेदार द्वारा मजदूरों का शोषण किया जा रहा है लेकिन मनपा प्रशासन जानबूझकर इस ओर ध्यान नहीं दे रहा है. नाला सफाई के लिए करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी शहर के कई इलाके बारिश में डूब जाते हैं. मतलब नालोंं की सफाई पर किया जा रहा खर्च बेकार जा रहा है. नाला सफाई में  भ्रष्टाचार को  इस बात से भी  बल मिल रहा है कि हर साल एक ही ठेकेदार को नाला सफाई का काम दिया जाता है. यह ठेकेदार मात्र हर साल कंपनी का नाम बदलकर लेता है. इसमें कई अधिकारियों के हित लाभ होने की जानकारी सूत्रों से मिली है.
तो बच सकते हैं मनपा के पैसे
शहर के वार्ड स्वच्छ करने के लिए व कचरा उठाने के लिए स्वंतंत्र ठेकेदार की नियुक्ति की गयी है. यह ठेकेदार छोटे बड़े नालों की भी सफाई करते हैं. बारिश पूर्व इन्ही ठेकेदारों से अगर सफाई करवा ली जाए तो पालिका को बड़ी बचत हो सकती है. मात्र ऐसा न करके हर साल नए टेंडर निकले जाने पर आश्चर्य व्यक्त किया जा रहा है. कांग्रेस के वरिष्ठ नगरसेवक  अनिल सावंत ने  इस पर तीव्र नाराजगी व्यक्त की है. टेंडर को जल्दबाजी में मंजूरी दी गयी है. इस पर प्रशासन का बिल्कुल ध्यान नहीं हैं. नालों की सफाई के  स्वतंत्र जांच एजेंसी से जांंच कराने और  गलत पाए जाने पर भुगतान नहीं करने की मांग सावंत ने की है. 
उपायुक्त पानपट्टे की सफाई
इस संबंध में बात करने पर मनपा आरोग्य विभाग के उपायुक्त संभाजी पानपट्टे ने कहा कि ठेका नियमानुसार मंजूर किया गया है. इसमें किसी प्रकार की अनियमितता न हो इस पर पूरा ध्यान दिया जा रहा है. अभी तक 40 प्रतिशत नाला सफाई का काम पूर्ण हो चुका है और 15 जून तक नाला सफाई का काम पूरा कर लिया जायेगा.
जांच की मांग 
सामाजिक सांस्कृतिक संगठन के उपाध्यक्ष राकेश अग्रवाल ने राज्य्पाल भगतसिंह कोशियारी व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखकर इसके जांच की मांग कर इस टेंडर को तुरंत निरस्त करने की मांग की हैं. 
 
 

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