बाबा आमटे ने बढ़ायी समाजसेवा के प्रति रूचि

लड़कियों के लिए निशुल्क स्कूल शुरू करना चाहते हैं प्रमोद तिवारी 
भायंदर- व्यक्ति कभी आपके पास हो तो पता नहीं चलता की वो क्या है और क्या करता हैं. अनायास एक ही बिल्डिंग में रहनेवाले परंतु कभी उनके कामों से परिचित नहीं थे. अनायास ही एक कार्यकर्ता में उनसे मुलाकात हुई और पता चला की वे पिछले 25 सालों से देश की विभिन्न संस्थाओं के साथ जुड़कर कइयों की मदद कर रहे हैं.जी हां हम बात कर रहे हैं पर्दे के पीछे रहकर काम करनेवाले सफल व्यवसायी व् समाजसेवी प्रमोद तिवारी की. वे कहते हैं की मनुष्य एक सामाजिक जीव है। समाज ही उसका कर्मक्षेत्र है। अतः उसे स्वयं को समाज के लिए उपयोगी बनाना पड़ता है। वास्तव में परोपकारऔर सहानुभूति पर ही समाज स्थापित है। बहुत लोग ऐसे हैं जो अपने स्वार्थ का त्याग करके ही समाज को स्थिर रखते हैं।
यदि ऐसा न हो तो सबकी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो सकती।प्रमोद कहते हैं की प्रसिद्द समाजसेवक बाबा आमटे से मिलने के बाद जरूरतमंद लोगों के लिए काम करने हेतु दुगनी हो गयी. उनके कार्यों को जानने के बाद समाज के लिए काम करने का जज्बा बढ़ता ही चला गया. 

जौनपुर जिले के प्रमोद तिवारी का जन्म मुंबई में हुआ है.उनका जीवन संघर्षपूर्ण रहा. पिता ब्रजभूषण तिवारी स्कूल में शिक्षक थे। उन्हें पत्रकारिता का काफी शोक था लेकिन पिता के कहने पर उन्होंने सस्मिता (वरली) से डिप्लोमा इन इंजिनीयरिंग किया. नौकरी के दौरान ही वे अपने ऑफिस में कार्यरत लोगों की मदद करते थे. 1999 तक नौकरी करने के बाद उन्होंने खुद का व्यवसाय  शुरू किया. अपना व्यवसाय शुरू करने के पीछे वे कहते हैं की वे ज्यादा से ज्यादा लोगों की मदद करना चाहते थे इसीलिए काम शुरू किया. 

वर्ष 2002 में सेवा भाव के उद्देश्य से साई स्मृति संस्था से जुड़े जो आध्यात्मिक के साथ साथ सामाजिक सेवा में भी अग्रसर हैं. इसी संस्था के माध्यम से वे महाराष्ट्र व्यापारी पेठ,दादर गए और वहां बाबा आमटे की संस्था का काम देख समाज के ज्यादा से ज्यादा जरूरतमंद लोगो तक पहुंचने का सिलसिला शुरू हुआ जो आज भी जारी हैं. प्रमोद महारोगी सेवा समिति,गूंज,स्नेहालय,सेनेरीटोन हेल्थ मिशन,महान ट्रस्ट,जीवन तीर्थ,युथ फोरम,बाबा आमटे बहुउद्देशीय संस्था जैसी तीस से ज्यादा संस्थाओं से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं. 2008 में अपने परिचित के कहने पर बिहार के बाढ़ पीड़ितों के लिए एकदिन में 25 हजार साड़ियों का इंतजाम करवाकर उसे भिजवाया था जिसे वो कभी नहीं भूल सकते. वर्तमान में कोरोना वाररियर्स से लेकर जरूरतमंद परिवारों को स्वयं मदद कर रहे हैं और करवा भी रहे हैं. 
समय समय पर लोगों को सहयोग करना आज भी जारी हैं. वे कहते हैं की जिस समाज ने हमे दिया उसे  वापस करना हमारा दायित्व हैं. उनके इन कामों में पेशे से शिक्षक उनकी पत्नी गीता तिवारी का पूरा साथ और सहयोग मिलता हैं. वे कहते हैं की ईश्वर का आशीर्वाद रहा तो किस विश्वविद्यालय की  तर्ज पर लड़कियों के लिए स्कूल शुरू करना चाहते हैं जिसमे  वे निशुल्क शिक्षा दे सके.आज के समय में शिक्षा का बहुत महत्त्व हैं,और आनेवाला समय शिक्षित लोगों का होगा.       




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