राम कथा जैन दृष्टिकोण

रामकथाः जैन दृष्टिकोण

 
डाॅ0 शुद्धात्मप्रकाश जैन -
भारतीय परम्परा में रामायण को एक मिथक के रूप में जाना जाता है, जिसका अर्थ है- पौराणिक आख्यान, प्रचलित कथानक, किसी वस्तु, व्यक्ति अथवा स्थान के सम्बन्ध में कही जाने वाली पुरातन बातें। भारतीय साहित्य के इतिहास में रामायण को आदिकाव्य भी माना गया है। कुल मिलाकर इतना कहा जा सकता है कि रामकथा एक ऐसी कथा है, जो वास्तव में हर युग में मानवमन में छाई रही है। हजारों कवियों, साहित्यकारों और इतिहासकारों ने इस पर लेखनी चलाई है।
जैनधर्म में भी रामकथा अनेक ग्रन्थ लिखे गये हैं, जिनमें सबसे प्राचीन पुराण संस्कृत में रविषेण कृत पद्मपुराण, प्राकृत में विमलसूरि कृत पउमचरियं (पद्मचरित) और अपभ्रंश में स्वयंभूकृत ‘पउमचरिउ’ हैं। प्रस्तुत आलेख में जैनरामायण और अन्य विभिन्न रामायणों के मध्य पाई जाने वाली विसंगतियों की चर्चा की जा रही है, जिससे पाठकों के ज्ञान में वृद्धि हो सके।
अभी हाल ही में राष्ट्रीय चैनल दूरदर्शन पर रामानन्द सागर द्वारा निर्मित रामायण का प्रसारण समाप्त हुआ है। इसके अन्तिम एपिसोड में बताया गया कि सीता भूमि में समा गई। वैसे भी किसी के बारे में अण्डरग्राउण्ड होने का सीधा सा अर्थ यह है कि वह अज्ञातवास में चला गया है, जिसके बारे में लोगों को कुछ भी जानकारी  नहीं होती है। जैन रामायण के अनुसार सीता जगतजनों की दृष्टि में अण्डरग्राउण्ड भले हो गई हो, किन्तु जैनधर्म के ज्ञाता सर्वज्ञदेव की वाणी के अनुसार वे वर्तमान महाराष्ट्र प्रान्त के नासिक के पास मांगीतुंगी पर्वत पर ध्यानस्थ हो गई। और घोर तपश्चरण करके दिगम्बर जैनधर्म के अनुसार 16वें स्वर्ग और श्वेताम्बर जैनधर्म के अनुसार 12वें स्वर्ग (जो कि एक ही स्वर्ग है, मात्र संख्या का मतभेद है) के प्रतीन्द्ररूप में नूतन जन्म प्राप्त किया। सीता का जन्म न तो हल की नोंक से हुआ था और न ही वह भूमि में समाहित हुई थी।
जैन रामायण के अनुसार एक दिन सीता ने दो स्वप्न देखे। प्रथम में शुभ और द्वितीय में अशुभ फल जानकर सीता जिनमंदिरों की वन्दना करती है। इधर प्रजा के प्रमुख लोग श्रीरामचन्द्रजी से सीता विषयक लोकनिन्दा का वर्णन करते हैं, जिससे राम का हृदय खिन्न हो जाता है। रामचन्द्रजी लक्ष्मण को बुलाकर सीता के अपवाद का समाचार बताते हैं। लक्ष्मण उन्हें सीता के शील की प्रशंसा करते हुए समझाते हैं, परन्तु राम लोकापवाद के भय से सीता का परित्याग करते हुए उन्हें गंगा नदी के पार अटवी में सेनापति के द्वारा भेज देते हैं।सेनापति वापस आकर राम को सीता का सन्देश देते हैं- ‘‘जिस तरह लोकापवाद के भय से आपने मुझे छोड़ा, उस तरह जिनधर्म को नहीं छोड़ देना।’’
श्रीराम ने भी जैनधर्मानुसार दीक्षित होकर मांगीतुंगी पर्वत पर तप किया और मुक्ति को प्राप्त हुए। ज्ञातव्य है कि मांगीतुंगी पर्वत के दो शिखर हैं, एक का नाम मांगी और दूसरी का नाम तुंगी है। मांगी शिखर पर सीता ने तपस्या की और तुंगी शिखर पर राम, हनुमान, सुग्रीव आदि ने तपश्चरण करके मुक्ति को प्राप्त किया।
जैनधर्म में श्रीराम का नाम पद्म प्राप्त हुआ है और उनके जीवन चरित को जैनधर्म के पद्मपुराण (जो कि हिन्दूधर्म के पद्मपुराण से भिन्न है) में जैन रामायण के तौर पर प्रतिपादित किया गया है, जो कि रविषेणाचार्य द्वारा विरचित है।
जैनधर्म के अनुसार 63 शलाका पुरुषों में से लक्ष्मण और रावण नारायण और प्रतिनारायण होने से नरक में गये हैं। रावण भी धर्मनिष्ठ था, उसकी प्रतिज्ञा थी कि किसी भी स्त्री को उसकी इच्छा के बिना स्वीकार नहीं करूंगा, लेकिन मान के कारण वह भी नरक चला गया, लेकिन जैनधर्मानुसार वह भी भविष्य का तीर्थंकर बनेगा रावण दुराचारी नहीं था, वरन् धार्मिक एवं व्रती पुरुष था। सीता की सुन्दरता पर मोहित रावण उसका अपहरण अवश्य किया, किन्तु सीता की इच्छा के विरुद्ध उस पर कभी बलात्कार करने की इच्छा नहीं की। वह सीता को लौटा देना चाहता था, किन्तु लोग कायर न समझ ले, इस भय से नहीं लौटाया। उसने मन में निश्चय किया कि युद्ध में राम और लक्ष्मण को जीतकर परम वैभव के साथ सीता को वापस करूंगा। इसमें उसकी कीर्ति में कलंक नहीं लगेगा और यश भी उज्ज्वल हो जायेगा।
दूरदर्शन पर प्रसारित रामायण, जो वाल्मीकि आदि अनेक रामायणों के आधार पर निर्मित की गई थी, में हनुमान आदि को वानरवंशी और रावण आदि को राक्षसवंशी बताया गया था, किन्तु जैनधर्मानुसार वे दोनों ही मानववंशी विद्याधर थे, जो आकाश में गमन कर सकते थे। ये दोनों वंश दैत्य और पशु नहीं थे, बल्कि मानव जाति के ही वंश विशेष थे। रावणों के सींग और वानरों के पूंछ नहीं थी। रावण भी दश सिर वाला नहीं था, किन्तु उसके गले के हार में उसके नौ प्रतिबिम्ब दृश्यमान होने के कारण उसे दशानन कहा जाने लगा। हनुमान का जन्म हनुरुहपुर में होने के कारण उनका नाम हनुमान रखा गया था। वे तो परम सुन्दर कामदेव रूपवान् विद्याधर जाति के मनुष्य ही थे।
जैन रामायण के रूप में विख्यात पद्मपुराण में वर्णित है कि राजा राम की देवांगनाओं के समान आठ हजार स्त्रियां थीं, उनमें से प्रथम सीता सहित प्रभावती, रतिनिभा और श्रीदामा यह चारों महादेवियां प्रमुख थीं। लक्ष्मण की आठ प्रमुख स्त्रियां थीं- विशल्या, रूपवती, वनमाला, कल्याणमाला, रतिमाला जितपद्मा, भगवती और मनोरमा। लक्ष्मण के 250 पुत्र बताये गये हैं।
और अन्त में, जो सबसे आश्चर्यजनक अन्तर जैन रामायण और हिन्दू रामायण में पाया जाता है, वह है- रावण का वध श्रीराम ने नहीं किया, अपितु उनके लघु भ्राता लक्ष्मण ने किया था। ऐसा प्रतीत होता है कि लक्ष्मण अपने अग्रज श्रीराम को इसका श्रेय देना चाहते थे, इस कारण तब से श्रीराम को ही रावण हन्ता कहा जाता है। दूरदर्शन पर प्रसारित रामायण में भी लक्ष्मण, सुग्रीव और हनुमान कई बार यह कहते हुए दिखाए गये कि वे चाहें तो रावण का काम आसानी से तमाम कर सकते हैं, किन्तु उन्होंने धैर्य के साथ इस काम को इसलिए टाल दिया, जिससे कि इसका श्रेय श्रीराम को ही मिल सके।
जैनधर्म के अनुसार नारायण ही प्रतिनारायण का वध करता है और नारायण के अग्रज ही बलभद्र होते हैं, तदनुसार श्रीराम एक बलभद्र थे, लक्ष्मण नारायण और रावण प्रतिनारायण था। दस दिनों तक लक्ष्मण और रावण- दोनों में भीषण युद्ध होता है। अन्त में क्रोधी रावण लक्ष्मण पर चक्ररत्न चलाता है, चक्र लक्ष्मण की तीन दक्षिणाएं देकर उसके हाथ में आ जाता है। समस्त राजागण लक्ष्मण के चक्ररत्न प्राप्त होते ही उन्हें आठवां नारायण और राम को आठवां बलभद्र स्वीकारते हैं। तभी लक्ष्मण सीता को वापस करने को कहते हैं, लेकिन रावण के इंकार करने पर चक्ररत्न चलाकर रावण को मार देते हैं। नारायण और प्रतिनारायण सदा ही नरकगामी होते हैं, तदनुसार वे दोनों ही वर्तमान में नरक में अवस्थित हैं।
 
जैन रामायण के अनुसार रावण का जीवन सत्यव्रत के प्रभाव से मनुष्य भव प्राप्त करके भविष्य के तीर्थंकर होंगे। सीता का जीव उक्त तीर्थंकर का ऋद्धिधारी ‘श्रीमान’ नामक प्रथम गणधर होगा। लक्ष्मण का जीव भविष्य में तीर्थंकर और चक्रवर्ती पद को प्राप्त कर निर्वाण प्राप्त करेगा।
 
इसप्रकार यहां संक्षेप में ही कुछ प्रकाश डाला गया है। विशेष जिज्ञासुओं को पद्मपुराण का अध्ययन करना चाहिए। इसके शान्तभाव से अध्ययन करने से निश्चय ही सातिशय पुण्य का संचय होता है।
 
(लेखक के . जे. सोमैया जैन अध्ययन केन्द्र, सोमैया विद्याविहार विश्वविद्यालय, मुम्बई के निदेशक हैं.)

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