आध्यात्मिक विकास का पर्व हैं चातुर्मास :- वर्धमान सागर

बावन जिनालय में हुआ प्रवेश


भायंदर :-
जैन धर्म में चातुर्मास एक महत्वपूर्ण अवधि है, जो  चार महीने तक चलती है। इस दौरान जैन साधु और साध्वियाँ एक ही स्थान पर रहते हैं और धार्मिक गतिविधियों में भाग लेते हैं व आयोजन करते हैं।

उपरोक्त विचार भायंदर (वेस्ट) में स्थित श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ बावन जिनालय जैन संघ में चातुर्मास हेतु बिराजमान राष्ट्रसंत आचार्य पद्मसागर सूरीश्वरजी म.सा.के पटधर,जापनिष्ठ समतानिधान,पंचम वर्षीतप आराधक,आचार्य श्री वर्धमानसागर सूरीश्वरजी म. सा.ने व्यक्त किये।गुरुदेव का चातुर्मास प्रवेश हाल ही में हुआ।उनके साथ गणिवर्य श्री कल्याणपद्म सागरजी म. सा.,मुनि यशपद्म सागरजी म.सा.,मुनि हृदयपद्म सागरजी म.सा.के अलावा श्री बुद्धिसागर सूरीश्वरजी समुदायवर्ती साध्वी तत्वगुणा श्रीजी म.सा. श्री कोटिगुणा श्रीजी आदि का भी प्रवेश हुआ।


धर्मसभा को संबोधित करते हुए वर्धमान सागरजी ने कहा कि  चातुर्मास के दौरान जैन साधु और साध्वियाँ एक ही स्थान पर रहते हैं और धार्मिक अनुशासन का पालन करते हैं। इससे उन्हें अपने आध्यात्मिक जीवन में सुधार करने और आत्म-संयम में वृद्धि करने में मदद मिलती है व चातुर्मास के दौरान जैन साधु और साध्वियाँ विभिन्न धार्मिक गतिविधियों में भाग लेते हैं, जैसे कि पूजा, पाठ, और ध्यान। इससे उन्हें स्वयं को व भक्तों को आध्यात्मिक जीवन में विकास करने और आत्म-ज्ञान प्राप्त करने में मदद मिलती है। चातुर्मास के दौरान जैन साधु और साध्वियाँ जैन समुदाय के साथ जुड़ते हैं और उन्हें धार्मिक मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। इससे जैन समुदाय के सदस्यों को अपने आध्यात्मिक जीवन में सुधार करने और जैन धर्म के सिद्धांतों को समझने में मदद मिलती है।उन्होंने बताया कि एक ही जगह पर रहकर प्राकर्तिक चक्र का सम्मान करते है।चातुर्मास आध्यात्मिक विकास, धार्मिक अनुशासन, और समुदाय के साथ जुड़ाव को बढ़ावा देती है। 








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