आत्मसिद्धि हैं हंसरत्न सूरीश्वरजी की तपस्या का उद्देश्य

180 उपवास का पारणा 11 सितंबर को

इसके साथ ही पूज्य आचार्यश्री विजय हंसरत्नसूरीश्वरजी महाराज छठी बार 180 उपवास कर रहे हैं और यह भी एक रिकॉर्ड है। 164 उपवास के बाद भी देव् गुरु की कृपा से साहेबजी की शाता बहुत अच्छी होती है


मुंबई:-
वैश्विक स्तर पर चल रही हिंसा और नास्तिकता को रोकने के लिए एक शुभ और दृढ़ संकल्प के साथ,जुहू स्कीम में चातुर्मास हेतु बिराजमान 56 वर्षीय दिव्य तपस्वी पूर्व आचार्य श्री विजय हंसरत्न सूरीश्वरजी महाराजा ने 180 दिन के उपवास की शुरुआत की है। छठी बार यह तप कर रहे हैं। उन्होंने जीवन में 108 मासक्षमण ( एक में 30 उपवास) तप की भावना है। इस समय उनका 94वां मासक्षमण चल रहा है। भगवन महावीर स्वाकी  के शासनकाल आचार्यश्री का यह विश्वविक्रम भी अनोखा व  निराला आत्मिक पराक्रम हैं। यह महाअनुष्ठान करने के बाद भी गुरु महाराज दिन में मुश्किल से दो ढाई घंटे नींद लेते हैं,व बाकी समय में वो आध्यात्मिक प्रवृतियों में व्यस्त रहते हैं। वे एकदम स्वस्थ रहते हैं। इतनी बड़ी तपस्या में भी जैनाचार्य बिना व्हीलचेयर या किसी प्रकार का भी सहारा लिए बिना पूरी स्फूर्ति व प्रसन्नता के साथ सेकड़ो कि.मी. का विहार करते हैं।उनकी तपस्या का पारणा 11 सितंबर को जुहू स्कीम रोड नंबर 6 पर स्थित जलाराम हॉल में हैं।    

तपस्याओं की तारीख 

दिव्य तपस्वी जैनाचार्य हंसरत्नासूरीश्वरजी ने 13 वर्ष की बाल्यावस्था में न्याय विशारद,वर्धमान तप की 108 ओली के आराधक परम पूज्य आचार्य श्री विजय भुवनभानु सूरीस्वरजी म.सा.के पास दीक्षा ली थी व उन्हें गुरु के रूप में स्वीकार किया था। आचार्य श्री विजय मुक्तिवल्लभ सूरीस्वरजी म.सा.के प्रशिष्य, 14 वर्ष के बालमुनि पूज्य रुपातीविजयजी की 30 उपवास की उग्र तपस्या देखकर मासक्षमण करने की प्रेरणा हुई, और उसके बाद  तो उन्होंने 8,16, 16, 30, 31, 32, 33, 33, 34, 35, 36, 37, 38, 39, 40, 42, 43, 44, 45, 46, 51, 52, 68, 77,91,95,108,122 व 123 दिन के उपवास की अप्रतिम तपस्या की थी।    

पहली बार 180 उपवास 


विक्रम संवत 2070 में उन्होंने मरीन ड्राइव में 120 उपवास का पारणा करने के बाद महोत्सव के दौरान ही 16 उपवास का पचखाण लेकर 180 उपवास पूर्ण किये थे। यह जानकारी देते हुए उनकी सेवा में हमेशा हाजिर रहते मुनि पद्मकलश विजयजी म.सा. ने बताया कि गुरु महाराज ने 180 उपवास की आराधना करने के बाद विक्रम संवत 2071 में भगवान महावीर स्वामी के शासन के 2500 वर्षों में पहली बार महाकठिन ऐसा गुणसंवत्सर तप की आराधना की थी।इसके बाद जुहू स्कीम संघ में आचार्य श्री ने 480 दिन में 407 उपवास की उग्र तपस्या की व दूसरीबार 180 उपवास कर लगभग एक लाख से ज्यादा की जन्मदनि के बीच अंधेरी स्पोर्ट्स क्लब में पारणा किया था। 

उन्होंने 7500 दिनों में 4400 दिन उपवास कर आध्यात्मिक रिकॉर्ड बनाया हैं।पदमकलश आगे बताते हैं की गुरुदेव ने अब तक 490 दिन में 408 उपवास दो बार,दो बार वर्षीतप,पांच बार 180 उपवास के अलावा 108, 95, 91, 90,  77,68,64,62.52,51,46,45,44,43,42,40,39,38,37,36,35,34,33उपवास 5 बार,32 उपवास दो बार,31 उपवास 6  बार, ३० उपवास तथा दो बार 16 उपवास किये हैं। इतनी बड़ी तपस्या के बाद भी 166 किलोमीटर का विहार प्रसन्नता के साथ किया।ऐसे विहार के तो बहुत रिकॉर्ड हैं। उन्होंने आचार्य पदवी के बाद होती सूरीमंत्र की पांच पीठिका की साधना के दौरान आगे पीछे अठ्ठम सहित 90 दिन के उपवास किये थे। 180 उपवास की तीसरी तपस्या श्री सांगली जैन संघ में की थी। उस समय भी उपवास में ही 443कि.मी.का विहार कर देवलाली से सांगली पहुंचे थे। लॉकडाउन के दौरान राजप्रतिबोधक पूज्य आचार्य श्री विजय रत्नसुंदर सूरीश्वरजी म.सा. की आज्ञा से भायखला में 95 उपवास का पारणा किया व उसके 29 दिन बाद ही 180 उपवास का तप शुरू कर दिया। यह उपवास उन्होंने कोरोना वायरस के कोप से मानव जाती को मुक्त करवाने के संकल्प के साथ किये थे। 180 उपवास के समय एक श्रावक को धर्मलाभ देने के लिये 26 माला चढ़कर गए थे। विक्रम संवत 2076 में उन्होंने 180 उपवास का पारणा श्री बोरीवली जैन संघ में आचार्य श्री भुवनभानु सूरीशश्वरजी समुदाय के वर्तमान गच्छाधिपति आचार्य श्री विजय राजेंद्र सूरीश्वरजी म.सा. की उपस्थिति में किया था। पांचवी बार 180 उपवास रोज 12 घंटे सुरिमंत्र जाप सहित उग्र तप के साथ 2077 में वालकेश्वर स्थित श्री बाबू अमीचंद पन्नालाल जैन संघ में किया और अब 6ठीं बार का पारणा 11 सितंबर को जुहू स्कीम रोड नंबर 6 पर स्थित जलाराम हॉल में हैं।पद्मकलश ने बताया की उनके गुरु श्री भुवनभानु सूरीशश्वरजी म.सा. के 108 ओली के अनुमोदनार्थ 108 मासक्षमण करने की भावना हैं। अभी 94वां मासक्षमण चल रहा हैं। 

आत्मसिद्धि हैं मुख्य उद्देश्य     

पद्मकलश ने आगे बताया की वो सिर्फ अपनी आत्मा की सिद्धि के लिये तपस्या करते हैं। हमारे श्रावक गुरुदेव की इस तपस्या को आज के विज्ञानं तबीबी के सामने चुनौती के सामान मानते हैं,लेकिन आचार्य श्री सिर्फ अपनी आत्मा के कल्याण,उनके आत्मा की शुद्धि के लिये कर रहे हैं।लेकिन उनका एक ही संकल्प हैं कि उनके तप के माध्यम से भगवन महावीर का संदेश दुनिया को मिले और विश्व शांति की स्थापना हो। सभी जीवों को शांति व समाधि मिले यही उनका संकल्प हैं।     







     

  



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