ज्ञान और तप:साधना का अद्भुत संगम है- डॉ. निर्मला बरड़िया

लाडनूं की बेटी पूरी दुनिया में छाने के बाद भी अपनी संस्कृति और आध्यात्मिक साधना के पथ पर रही अडिग


लाडनूं। (शरद जैन सुधांशु, लाडनूं) :-
 अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक महिला डा. निर्मला बरड़िया की विलक्षण आध्यात्मिक साधना, तीन मासखमण और 11 वर्षीतप हैं उनकी उपलब्धियां, ज्ञान और तप: साधना का अद्भुत संगम है डॉ. निर्मला बरड़िया

आधुनिक विज्ञान के उच्च शिखर पर पहुंचने और अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति अर्जित करने के बावजूद अपनी संस्कृति, धर्म-परम्पराओं और मान्यताओं के साथ आध्यात्मिक विरासत को आत्मसात् करने की एक विलक्षण मिसाल लाडनूं की बेटी डा. निर्मला बरड़िया ने पेश की है। निर्मला बरड़िया यहां के मालचंद बरड़िया की पुत्री और समाजसेवी भागचंद बरड़िया की भतीजी है। उनका वर्तमान में तीसरी 'मास-खमण' तपस्या चल रही है। इसमें वे लगातार एक महीने तक कोई आहार ग्रहण नहीं करती, केवल जल ग्रहण करके आध्यात्मिक साधना में लीन रहती हैं। इस प्रकार ज्ञान और तप: साधना का अद्भुत संगम है डॉ. निर्मला बरड़िया। साथ ही समाज सेवा और सामाजिक कार्यों के लिए सहयोग करने में भी उनकी भावना उच्च हैं और इस तरह सहयोग करने में वे अमेरिका हो या भारत सभी जगह सक्रिय व अग्रणी रहीं हैं। 

विभिन्न देशों में वैज्ञानिक के रूप में किया कार्य

वे अब तक दुनिया भर में ढाई लाख किलोमीटर से अधिक की अन्तर्राष्ट्रीय यात्राएं कर चुकी हैं। वे व्यावसायिक दृष्टि से माइक्रोबायोलॉजिस्ट होने के साथ बायोकेमिस्ट, मॉलिक्यूलर, बायोलॉजिस्ट, जेनेटिक इंजीनियर के रूप में प्रशिक्षित हैं। उन्होंने 25 वर्ष से अधिक समय तक भारत, इंग्लैंड, दक्षिण कोरिया, अमेरिका और जापान में वैज्ञानिक के रूप में काम किया है। 15 वर्षों से अधिक समय तक कई प्रतिष्ठित उच्च-प्रभाव वाले अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक पत्रिकाओं के लिए उन्होंने मानद पांडुलिपि समीक्षक के रूप में भी कार्य किया है। 30 से अधिक देशों में रह कर एवं वहां के लोगों के साथ मिलकर उन्होंने काम किया।

डा. बरड़िया के अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के वैज्ञानिक शोध कार्य

डा. निर्मला बरड़िया ने वैश्विक स्तर पर वैज्ञानिक शोधों में भी ख्याति अर्जित की है। भारत, दक्षिण कोरिया, हांगकांग, सीरिया, ब्रिटेन, जर्मनी, नीदरलैंड, अमेरिका आदि से प्रकाशित प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक शोध पत्रिकाओं में उनके वैज्ञानिक शोध कार्य प्रकाशित हुए हैं। उनके शोध कार्य को सबसे उच्च प्रभाव वाले कई अन्य शोधों में अन्तर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक पत्रिकाओं में उद्धृत किया जा चुका। उन्होंने अपना शोध कार्य दो दर्जन राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक सम्मेलनों में प्रस्तुत किया है। 

डा. निर्मला बरड़िया की आध्यात्मिक यात्रा

विश्व स्तर की प्रख्यात वैज्ञानिक होने के साथ ही वे तप-साधना और आध्यात्मिक मार्ग पर भी उनकी यात्रा अपूर्व है। उनकी आध्यात्मिक उपलब्धियों में 75 उपवास, 6 बेला, 5 तेला, 3 माह का एकांतर तप उपवास, 1 अठाईस तप, 10 वर्षीतप-10 कर चुकी और अब 11वां वर्षीतप 11 मई से शुरू है। उनके 2 मासखमण पूरे हो चुके , जिनमें 31 दिन का 2021 में और 28 दिनों का 2022 में किया था। अब वे तीसरा मासखमण 2024 में कर रही हैं, जिनके 29 दिन व्यतीत हो चुके हैं। इनके अलावा डा. बरड़िया पिछले कई वर्षों से सोमवार, गुरुवार, शुक्रवार का व्रत-उपवास लगातार रख रही हैं। इस प्रकार ज्ञान और तप: साधना का अद्भुत संगम है डॉ. निर्मला बरड़िया।

उनके सामाजिक सहयोग

डा. निर्मला बरड़िया वैज्ञानिक व आध्यात्मिक पथ पर निरंतर अग्रसर रहने के साथ ही समाज सेवा और सामाजिक सहयोग के लिए भी सदैव तत्पर रहती रही है। उन्होंने वॉलमार्ट के माध्यम से रेड क्रॉस सोसाइटी यूएसए में वर्ष- 2005-2007, 2009-2010 और 2015-2017 में सेवाएं दीं। नारायण सेवा संस्थान, उदयपुर में 1-पोलियो ऑपरेशन व 1 व्हीलचेयर प्रति वर्ष का सहयोग 2019 से लगातार अब तक कर रही हैं। हर छह महीने या एक वर्ष तक वर्ल्ड विजन, चेन्नई में एक बच्चे के भरण-पोषण का जिम्मा वर्ष 2021 से अब तक लगातार संभाल रही हैं। अपना घर आश्रम, भरतपुर को अगस्त 2021 से अब तक लगातार मासिक आधार पर ईंटें और निर्माण सामग्री की आपूर्ति का जिम्मा ले रखा है। इन सबके अलावा अन्य सामुदायिक सेवाओं में स्वेच्छा से शिरडी साईंबाबा मंदिर लोधी रोड नई दिल्ली में उन्होंने 1998-2000 के दौरान में कुष्ठ रोगी समुदाय (कुष्ठ रोग से पीड़ित लोगों) को व्यक्तिगत रूप से चाय और ब्रेड (सप्ताह में कम से कम 2-3 बार) परोसी। बेगम ब्रिज मेरठ यूपी के मंदिर टेरेसा होम 'प्रेम निवास' में वर्ष 2000-2002 में मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से विकलांग रोगियों की प्रतिदिन 3-4 घंटे व्यक्तिगत रूप से सेवा की गई। 

होनहार बीरबान के होत चिकने पात

डा. निर्मला बरड़िया ने अपनी विलक्षण प्रतिभा का परिचय बचपन से ही देना शुरू कर दिया था। अपनी शिक्षा के दौरान उन्होंने 1980 में 10वीं कक्षा (हाई स्कूल) में ही जीवविज्ञान में विशिष्टता के साथ और अंग्रेजी में भी विशिष्टता के साथ उत्तीर्ण किया। वे  1986 में एमएससी गोल्ड मेडलिस्ट और यूनिवर्सिटी-टॉपर रही। साथ ही मेरठ जिले  यूपी के 35 कॉलेजों में भी टॉपर रही। उन्होंने 1986 में ही पहले प्रयास में ही आईएएस की प्रारंभिक) परीक्षा उत्तीर्ण की। 1991 में वे पूसा इंस्टीट्यूट नई दिल्ली से पीएचडी में गोल्ड मेडलिस्ट रही। उन्होंने 60 क्रेडिट कोर्स पूरे किए और जीपीए 4.00/4.00 हासिल किया। एआरएस 1990-91 बैच में लिखित, माइक्रोबायोलॉजी अनुभाग में अखिल भारतीय टॉपर रही।

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