जीवन को आराधना से सार्थक बनाएं :- यशोवर्म सूरीश्वरजी

मनुष्य जीवन क्षण भंगुर हैं :- 


अहमदाबाद :-
गिरधर नगर जैन संघ में आचार्य श्री विजय यशोवर्म सूरीश्वरजी महाराजा ने अपने प्रवचन में जीवन के क्षणभंगुरता पर गहन चिंतन प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि अनादिकाल से हमें मोहनीय कर्मों के आवरण ने बांध रखा है, और इसे दूर करने के लिए तत्त्वदृष्टि का जागरण आवश्यक है। इस संदर्भ में उन्होंने पूज्य दादा गुरुदेव श्री लब्धि सूरीश्वरजी महाराजा की वैराग्य रसमंजरी ग्रंथ का उल्लेख किया, जिसमें बताया गया है कि जैसे पानी में उत्पन्न बुलबुला क्षणभर में विलीन हो जाता है, वैसे ही मनुष्य का जीवन भी क्षणभंगुर है।

आचार्य श्री ने कहा, "देव के जीव भोगाधीन हैं, नरक के जीव दुःखाधीन, तिर्यंच के जीव पराधीन, लेकिन मनुष्य का जीव स्वाधीन है।" इस स्वाधीनता का महत्व बताते हुए उन्होंने कहा कि मनुष्य को अपनी आराधना करते हुए जीवन का सदुपयोग करना चाहिए, क्योंकि यह अवसर अनमोल है।उन्होंने कहा कि दुर्भाव मनुष्य को दुर्गति की ओर ले जाता है, जबकि सद्भाव सदगति का कारण बनता है। वासना को एक भटकती जाति की तरह बताया, जिसे विराम नहीं होता। उन्होंने परिग्रह के पाप से मुक्ति पाने का मार्ग भी सुझाया, जिसमें दान को सबसे महत्वपूर्ण बताया। लेकिन, उन्होंने स्पष्ट किया कि दान मान बढ़ाने के लिए नहीं, बल्कि मान को घटाने के लिए किया जाना चाहिए।

जीवन की अनिश्चितता का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि बाजार में घड़ी और मोबाइल की गारंटी मिलती है, लेकिन मनुष्य के आयुष्य की कोई गारंटी नहीं है। यहां तक कि माँ के गर्भ में भी बच्चे की मृत्यु हो सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि जैसे पंचांग में सूर्यास्त का समय आता है, वैसे ही जीवन का सूर्यास्त कब होगा, यह कोई नहीं जानता।अंत में उन्होंने कहा, "चाहे कितने भी देव आप पर प्रसन्न हो जाएं, लेकिन कोई भी देव आपके जीवन के एक क्षण को भी नहीं बढ़ा सकता।"आचार्य श्री के प्रवचन का मुख्य संदेश यह था कि मनुष्य का जीवन क्षणभंगुर है, और उसे अपनी स्वाधीनता का उपयोग करते हुए आराधना और सद्गुणों का विकास करना चाहिए।

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