220 वर्षों से भी ज्यादा समय से भायंदर का नाईक परिवार निभा रहा अनोखी परंपरा
नई गणेश मूर्ति का होता हैं अगले साल विसर्जन
भायंदर :- शहर के प्रतिष्ठित नाईक परिवार के घर में गणपति का आगमन तो हर साल होता है, लेकिन पूजा एक साल बाद होती है। भायंदर पश्चिम में स्टेशन रोड पर स्थित चंद्रकांत निवास में नाईक परिवार पिछले 220 साल से यह अनोखी परंपरा निभाता आ रहा है। परिवार के छोटे बेटे एंड सचिन नाईक ने बताया कि हर साल गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की नई मूर्ति लाई जाती है और इसी दिन घर में रखी पुरानी मूर्ति की पूजा शुरू होती है, जो पूरे 10 दिन चलती है और उसका विसर्जन अनंत चतुर्दशी के दिन कर दिया जाता है। इसके बाद नई मूर्ति साल भर उसी जगह पर रखी रहती है लेकिन उसकी पूजा नहीं की जाती है। उसकी बगल में दाहिने सूंड वाली सिद्धिविनायक की छोटी सी मूर्ति है, जिसका हर महीने की संकष्टी चतुर्थी को जलाभिषेक किया जाता है। सचिन बताते हैं कि शुरू से ही उनके यहां इको फ्रेंडली (सांडू मिट्टी) की मूर्ति ही आती है और सज्जा लकड़ी की होती है।
औरंगाबाद से मुंबई आया था नाईक परिवार
दरअसल इस घर के गणेश उत्सव की कहानी ऐतिहासिक व अनूठी है। परिवार के बड़े बेटे योगेश नाईक बताते हैं कि उनके पूर्वज रणछोड़ नाईक चिमाजी अप्पा की सेना में नाईक (निगरानी रखने वाला) थे। 1839 में जब बाजीराव पेशवा के छोटे भाई चिमाजी पुर्तगालियों से वसई किले को जीतने आए, तब उनको भी अपने साथ ले आए। वैसे उनका परिवार मूलतः औरंगाबाद के पैठण में सावरखेड गांव के निवासी है और उनकी मूल जाति देवघर ब्राह्मण है। सेना में नाईक पद उनके सरनेम से हमेशा के लिए जुड़ गया। किले जीतने के बाद चीमाजी अप्पा तो लौट गए, लेकिन उनके पूर्वज रणछोड़ नाईक यहीं रह गए। उन्हें मीरा रोड, शिवार गार्डन के सामने ब्रह्रादेव मंदिर में पूजा की जिम्मेदारी सौंप और भायंदर, नवघर, मुर्धा, राई, खारी गांव की यजमानी दी गई थी। इसके अलावा कुछ जमीन भी इनाम में मिली थी। योगेश और सचिन रणछोड़ नाईक की आठवीं पीढ़ी है।
पुत्र प्राप्ति की पूरी हुई थी मन्नत
परिवार के बड़े बेटे योगेश नाईक बताते हैं कि रणछोड़ नाईक के प्रपोत्र अनंत गणेश नाईक को सिर्फ बेटियां थीं। उन्होंने भगवान गणेश से पुत्र की मन्नत मांगी और वह पूरी हो गई। बाद में कभी भी पीठ नहीं दिखाने का संकल्प लिया था। इसीलिए गणपति की एक मूर्ति पूरे घर में रखी जाती है। वर्ष 1804 में पहली बार घर में गणपति की स्थापना हुई थी। पिछले 220 सालों से यह परंपरा चली आ रही है।
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