अहिंसा में निहित है विश्व की समस्याओं का समाधान अहिंसा विश्व धर्म
गांधी जयंती , अन्तर्राष्ट्रीयअहिंसा दिवस, 2 अक्टूबर 24 पर विशेष :
अहिंसा सिद्धांत को गांधीजी ने जनांदोलन बनाया :-
भारत एक धर्म प्रधान देश है। जिस तरह कुशल माली सुन्दर गुलदस्ता बनाते समय रंग-बिरंगे फूलों के द्वारा मनमोहक बनाता है। वैसे भारत में कई धर्म, जाति, सम्प्रदाय, पंथ आदि का यह गुलदस्ता हैं। गुलदस्ता का हर फूल धर्म, जाति, समाज, नागरिक है। तो अहिंसा उसकी गन्ध है। गन्ध अपने में ही रहे, यह तो नहीं हो सकता। उसे हवा में बिखर कर ही रहना है। वह दूर तक फैल जाती है। वैसे ही भारत की अहिंसा की गन्ध पूरे विश्व में बिखर गयी। इसी के कारण 2 अक्टूबर 'अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिन' के रुप में महात्मा गांधीजी के जन्म दिवस के दिन को 'संयुक्त राष्ट्र संघ' ने घोषित किया है।
अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस :
तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के अहिंसा सिद्धांत को गांधीजी ने जनांदोलन बनाया और देश को अंग्रेजी दासता से मुक्ति दिलाई। इसलिए गांधी जी के जन्म दिवस 2 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय अंहिसा दिवस के रूप में मनाया जाता है। 15 जून 2007 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में 2 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस स्थापित करने के लिए मतदान हुआ।महासभा में सभी सदस्यों ने 2 अक्टूबर को इस रूप में स्वीकार किया।अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस का उद्देश्य हमारी दुनिया में शांति, न्याय और स्थिरता को बढ़ावा देने में अहिंसा की महत्वपूर्ण भूमिका पर ध्यान केंद्रित करना है।
अहिंसा सबसे बड़ा शस्त्र :
गांधी जी मानते थे कि सत्य और अहिंसा के रास्ते पर चलकर सब कुछ हासिल किया जा सकता है। महात्मा गांधी एक ऐसे व्यक्तित्व थे ,जिनके विचारों ने पूरी दुनिया को शान्ति ,सद्भाव और अहिंसा का पाठ पढ़ाया | विश्व में ऐसे कई महान लोग हुए जो गांधीजी के विचारों से बेहद प्रभावित हुए। समाज की भावनाओं का आदर करते हुए भारत के आदर्श समाज की कल्पना करने वाले समाज सुधारक, राष्ट्रचिंतक एवं दार्शनिक महात्मा गाँधी जी के लिये अहिंसा सबसे बड़ा शस्त्र था।गांधीजी के अनुसार-अहिंसा वो मुख्य तत्व है जिसने सम्पूर्ण मानवता को प्रेम और आत्मशुद्धी की सहायता से कठिन से कठिन संकटों में सफलता पाने का संदेश दिया है।
आध्यात्मिक शक्ति की प्रतीक अहिंसा :
गांधीजी अहिंसा को सर्वोच्च नैतिक और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक मानते थे। उनके अनुसार तो अहिंसा केवल दर्शन नही है बल्की कार्य करने की पद्धति है, ह्रदय परिवर्तन का साधन है। गाँधी जी ने तो अहिंसा की भावना को सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक तीनों क्षेत्रों के लिये आवश्यक तत्व माना है। अहिंसा पर गांधी जी ने बड़ा सूक्ष्म विचार किया है। वे लिखते हैं, “अहिंसा की परिभाषा बड़ी कठिन है। अमुक काम हिंसा है या अहिंसा यह सवाल मेरे मन में कई बार उठा है। मैं समझता हूँ कि मन, वचन और शरीर से किसी को भी दुःख न पहुंचाना अहिंसा है। लेकिन इस पर अमल करना, देहधारी के लिए असंभव है।
सभी धर्मों का आधार अहिंसा :
अहिंसा को जैन, हिन्दू,बौद्ध, व अन्य धर्मों में मानवीय क्रियाओं का आधार माना गया है। अहिंसा की शिक्षा तो भारतीय संस्कृति की पहचान है। उपनिषदों में भी अहिंसा को विशेष महत्व दिया गया है। जैन धर्म में अहिंसा परमो धर्मः के रूप में एक महान धर्म माना गया है। अहिंसा की सबसे सूक्ष्म विवेचना जैनधर्म में कई गयी है। गांधी जी ने भी अहिंसा के रास्ते पर चलकर देश को स्वतंत्रता दिलाने में अपनी अहम भूमिका का निर्वाह किया।जगत में जितने भी तीर्थंकर, परमात्मा, ईश्वर, ऋषि-मुनि, महंत,महात्मा, माऊली, मौलवी आदि जितने भी संत साधू होकर गये, इन सभी ने यही बताया कि - अहिंसा परमो धर्मः, जीवाणं रक्खणं धम्मो।।
जीवों की रक्षा करना ही धर्म है (धर्मस्य मूलं दया...)
अहिंसा का सामान्य अर्थ है 'हिंसा न करना'। इसका व्यापक अर्थ है - किसी भी प्राणी को तन, मन, कर्म, वचन और वाणी से कोई नुकसान न पहुंचाना। मन मे किसी का अहित न सोचना, किसी को कटुवाणी आदि के द्वार भी नुकसान न देना तथा कर्म से भी किसी भी अवस्था में, किसी भी प्राणी कि हिंसा न करना, यह अहिंसा है।नींव के बिना भवन खडा हो नही सकता, जड़ के बिना वृक्ष खड़ा रह नही सकता है। जिस वृक्ष की जड़े मजबूत होती है, वृक्ष उतना ही विकसित होता है और बादल के बिना बारिश नहीं हो सकती वैसे ही'अहिंसा' के बिना जीवन विकसित नहीं हो सकता।
दुःख का मूल कारण हिंसा :-
ऋषि-मुनियों ने दुःख का मूल कारण हिंसा बताया है -हिंसैव दुर्गतेर्द्वारं हि सैव दुरितार्णवः। हिंसैव नरकं घोरं हिंसैव गहनं तम।। हिंसा दुर्गतिका द्वार है। हिंसा पाप का समुद्र है। हिंसा घोर नरक है और हिंसा महा अंधकार है।हिंसा प्रसूतानि सर्वदुःखानि।जिस तरह माता बालक को जन्म देती है। वैसे समस्त दुःख को जन्म देनेवाली हिंसा है।अहिंसा की महानता को किसी जाति, धर्म और सम्प्रदाय या किसी विशेष व्यक्ति नाम के साथ अथवा देश और काल की सीमाओं से जकड़ा नही जा सकता। 'अहिंसा विश्व धर्म' है याने प्राणी मात्र का धर्म है। जिस प्रकार घाट पर जाकर पानी पीने से सभी प्राणी की प्यास बुझती है उसी प्रकार अहिंसा धर्म में भी वही शक्ति है। जो आत्मा इसे धारण करेगी वही आत्मा परमात्मा बन सकती हैं।
अहिंसा से जीवन शुद्धि :-
अहिंसा से जीवन शुद्धी होती है। अहिंसा से ही आत्मकल्याण का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। धर्म का सारा ढांचा अहिंसा पर आधारित है। इसलिए कहा जाता है कि, धर्म का प्रमुख तत्व 'अहिंसा' है। अहिंसा कहां है? - 'आत्मवत्सर्वभूतेषु'।जैसी मेरी आत्मा है। वैसे प्रत्येक संसारी जीवों की आत्मा है। जिसको यह समझ में आया, उसने अहिंसा को समझ लिया। जिस प्रकार का व्यवहार हम नही चाहते हैं कि दूसरे हमारे प्रति करे, वैसा व्यवहार हम भी उनके प्रति न करे। इसे धर्म कहते हैं।कई लोग अपना परिचय देते समय जैन, हिन्दु, वैष्णव, इस्लाम, बौद्ध, सिख आदि कहकर धर्म की ,सम्प्रदायों की दीवारें/सीमाएं खीच देते हैं। इसलिए भगवान महावीरादि तीर्थंकरोंने कहा कि, धर्म उसको कहना 'आत्मवत्-सर्वभूतेषु।' 'जिओ और जीने दो' - हमें जीने की इच्छा है, वैसे समाने वाले को भी जीने की इच्छा है।
मांस को कृषि दर्जा देना संस्कृति का अपमान :-
मांस उत्पादन मामले में 'कृषि' शब्द का इस्तेमाल किया जा रहा है। मांस को कृषि दर्जा देकर संस्कृति को बड़ा धोका दे रहे हैं। बूचड़खाने खेत नहीं है। भारत सरकारने उन्हें कृषि के अन्तर्गत रख कर 'वधिक' और 'कृषक' दोनों को एक दर्जा देकर घोर अन्याय कर रही है, हमारे देश की अहिंसा, शांति, दया आदि शक्तियाँ क्षीण की जा रही हैं।इसी कारण प्राकृतिक आपदायें बढ़ती जा रही हैं। सुजडल (रुसा में पिछले दिनों भूस्खलन और प्राकृतिक आपदा पर हुए एक सम्मेलन में भारत से गए तीन वैज्ञानिकों ने एक शोधपत्र पढ़ा। डॉ. मदन मोहन बजाज, डॉ. इब्राहीम और डॉ. विजयरजसिंह के तैयार किए शोधपत्र के आधार पर कहा कि - भारत में पिछले दिनो आए तीन बड़े भूकंपो में आइस्टीन पैन वेब्ज (इपीडब्ल्यू) या नोटीप्शन वेब्ज कारण रही है। कत्लखानों में जब जानवरों को काटा जाता है, उसके पहले कई दिनों तक उनको भूखा रखा जाता है और कमजोर किया जाता है। फिर उसके ऊपर 70 डिग्री सेंटीग्रेट गर्म पानी की बौछार डाली जाती है। उससे उनका शरीर फूलना शुरू हो जाता है। तब गाय और भैंस तडपने और चिल्लाने लगते हैं, तब जीवित स्थिति में उनकी खाल को उतारा जाता है और खून को भी इकट्ठा किया जाता है। फिर धीरे धीरे गर्दन काटी जाती है। दुनिया के करीब ५० लाख छोटे बड़े कत्लखानों में प्रतिदिन ५० लाख करोडमेगावॅट की मारक क्षमतावाली शोक तरंगे या इपीडब्ल्यू पैदा होती है। उन पशुओंकी अव्यक्त कराह, फरफराहट, तडप वातावरण में भय, चिंता और कतल होते समय उनकी जो चीत्कार निकलती है, उनके शरीर से जो स्ट्रेस हारमोन निकलते हैं और उनकी जो शोक वेब निकलती है वो पूरी दुनिया को तरंगित कर देती है, कम्पायमान कर देती है। उत्सीसे प्राकृतिक उत्पात जैसे अतिवृष्टि, अनावृष्टि, बाढ़, भूकंप, पानी का स्तर नीचे जाना, ज्वालामुखी के विस्फोट जैसे संकट आते हैं। इस अध्ययन के मुताबिक एक कत्लखाने से जिस में औसतन पचास जानवरों को मारा जाता है १०४० मेगावॅट ऊर्जा फैलनेवाली इपीडब्ल्यू पैदा होती है। इसीसे विस्फोटमय वातावरण बनता हैं।
आधुनिक विज्ञान ने ये सिद्ध किया है कि, मरते समय जानवर हो या इन्सान अगर उसको क्रूरता से मारा जाता है तो उसके शरीर से निकलनेवाली जो चीख-पुकार है उसकी वायब्रेशन में जो निगेटीव वेब्ज (ऊर्जा) निकलती हैं वो पूरे वातावरण को बुरी तरह से प्रभावित करती है और उससे सभी मनुष्यों पर नकारात्मक प्रभाव पडता है, इससे मनुष्य में हिंसा करने की प्रवृत्ति बढ़ती है जो अत्याचार और पाप पूरी दुनिया में बढ़ा रही है।
हिंसा से प्राकृतिक सन्तुलन बिगड़ा :-
हिंसा से प्राकृतिक सन्तुलन गड़बड़ा रहा है। समुद्र से मछली और अन्य जीव पकड़कर खाने से समुद्र के नीचे की जमीन का संतुलन डावाडोल होता जा रहा है। इंडोनेशिया में जब सुनामी लहर उठी तो जपान, चीन, इंडोनेशिया और मलेशिया को पार करती हुई भारत के पूर्व तट तक घुस गई। सुनामी के इस तुफान में कई संख्यामें आदमी मरे, जीव जंतु नहीं।
भूमि हिंसा - कीटनाशक और रासायनिक खाद्य का प्रयोग करने से सब्जी फल और अनाज के द्वारा शरीर में विषाक्त पदार्थों के कारण धड़कन कम होना, आंतों में दुष्प्रभाव याददाश्त कम होना तत्काल प्रभाव सामने आते हैं इसके लगातार प्रयोग से कैंसर जैसी घातक बीमारी हो सकती है और प्रजनन पर प्रतिकूल प्रभाव हो सकते हैं।देश में मांसाहार और व्यसनों के कारण देश का स्वास्थ्य बिगड़ता जा रहा है। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि शरीर देश की संपत्ति है। उसका सदुपयोग करना चाहिए, दुरुपयोग नही होना चाहिए। विश्व स्वास्थ्य संघटन (W.H.O) के बुलेटिन में लिखा है, एकबार मांस खाने के बाद 160 प्रकार की बीमारियाँ उस व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर लेती हैं। एक अंश मांस पर ३3 करोड किटाणू होते हैं।
मांसाहारी की आयु कम होती है। इसके बारे में जॉन हरैद साहब Advance Hygiene में लिखते हैं।भारत अहिंसा प्रधान देश हैं। जहां भगवान रामचन्द्र, महावीर आदि महान पुरुषों ने अहिंसा का संदेश देकर हम लोगों पर बहुत बड़ा उपकार किया और इस देश के अहिंसक भविष्य का निर्धारण किया लेकिन देश का दुर्भाग्य है कि जहाँ दूध की नदी बहती थी, उसी पवित्र वसुंधरा पर खून की नदी बहती जा रही हैं। कत्लखानों से खूनी सडान की बदबू से वातावरण दुर्गन्धित होता जा रहा है।अहिंसा इस जगत की व्यवस्था है जो किसी का नाश नहीं करना चाहती। जड़ता और जड़वाद से भी उसको बैर नहीं वह तो सबको अपना अपना स्थान बना देती है। इसीलिए ऋषि मुनियों ने वसुधैव कुटुंबकम् यह विश्व शांति का सूत्र दिया और बताया"आत्मन: प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्"जिस प्रकार का व्यवहार हम नहीं चाहते कि दूसरे हमारे प्रति करें वैसा व्यवहार हम भी उनके प्रति ना करें।"अहिंसा का मूल लक्ष्य विश्व शांति"।
अहिंसा से विश्व शांति :-
गांधीजी का अटूट विश्वास था कि, अन्याय और अत्याचार का मुकाबला हिंसा से नही बल्की प्रेम, दया, करुणा, त्याग और सत्य से किया जा सकता है। अहिंसा सिर्फ एक उपदेश नही है बल्कि जीवन का क्रियात्मक सिद्धांत है। विश्वशांति, सामाजिक व्यवस्था तथा व्यक्तिगत जीवन संघठन के लिये एक ब्रह्मास्त्र है जिसका प्रयोग परिस्थिती जन्य है एवं आज की प्रासंगिता भी है। दरअसल सर्वधर्म सम्भाव की जीती जागती तस्वीर समझे जाने वाले गांधी जी मानते थे कि हिंसा की बात चाहे किसी भी स्तर पर क्यों न की जाए, परन्तु वास्तविकता यही है कि हिंसा किसी भी समस्या का सम्पूर्ण एवं स्थायी समाधान कतई नहीं है। जिस प्रकार आज के दौर में आतंकवाद व हिंसा विश्व स्तर पर अपने चरम पर दिखाई दे रही है तथा चारों ओर गांधी के आदर्शों की प्रासंगिकता की चर्चा छिड़ी हुई है, ठीक उसी प्रकार गांधीजी भी अहिंसा की बात उस समय करते थे जबकि हिंसा अपने चरम पर होती थी।गांधीजी शरीर के दुबले-पतले लेकिन आत्मा के महान, शरीर पर कपड़े के नाम पर एक धोती लेकिन दिल के धनी, अपनी बात पर अड़ने वाले परंतु अहिंसा के पुजारी, उनके इन्हीं गुणों के कारण भारत के साथ-साथ पूरा संसार उनके समक्ष नतमस्तक हो गया।गांधीवाद, अहिंसा और सत्याग्रह पर टिका है जो चार उपसिद्धांतों सत्य, प्रेम, अनुशासन एवं न्याय पर आधारित है, जिनकी उपादेयता एवं प्रासंगिकता, वैश्वीकरण के वर्तमान हिंसक दौर में और बढ़ जाती है।
गांधीजी के विचार आज अधिक प्रासंगिक :
आज हम गांधी जयंती, पर ‘महात्मा गांधी की जय’ का नारा तो लगाते हैं, लेकिन उनके द्वारा बताये गए सिद्धांतों पर चलना नहीं चाहते। शायद यही वजह है कि आज का मानव पहले से ज्यादा परेशान दिखाई देता है। आज हर तरफ असत्य, हिंसा, फरेब का बोलबाला है। अगर आज गांधी जी हम लोगों के बीच जीवित होते तो आज के भारत की दशा देखकर उन्हें बेहद निराशा होती। ऐसे समय में जब पूरे विश्व में हिंसा का बोलबाला है, राष्ट्र आपस में उलझ रहे हैं, मानवता खतरे में है, गरीबी, भूखमरी और कुपोषण लोगों को लील रहा है तो गांधी के विचार प्रासंगिक हो जाते हैं. अब विश्व महसूस भी करने लगा है कि गांधी के बताए रास्ते पर चलकर ही विश्व को हिंसा, द्वेष और प्रतिहिंसा से बचाया जा सकता है। गांधी जी के विचार विश्व के लिए इसलिए भी प्रासंगिक हैं कि उन विचारों को उन्होंने स्वयं अपने आचरण में ढालकर सिद्ध किया।
प्रेषक :
-डॉ. सुनील जैन संचय, ललितपुर
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