भायंदर निवासी ' नॉन करप्ट ' सोशल वर्कर व ' मोस्ट सीनियर जर्नलिस्ट ' संजय पाटील

अनेक समस्याओं के खिलाफ किया आंदोलन

 सुभाष पांडेय


भायंदर। ' गंदी राजनीति ' से कोशों दूर रहनेवाले , ' नॉन करप्ट-सोशल वर्कर ' व ' मोस्ट-सीनियर जर्नलिस्ट ' भायंदर निवासी संजय पाटील ' उच्च शिक्षित, शालीन बहुमुखी प्रतिभा ' के धनी हैं। बहोत ही साधारण किस्म के ' उम्दा इंसान ' विरले ही मिलते हैं। उसमें से ही एक ' भूमिपुत्र संजय कृष्णा पाटील ' हैं। 

गौरतलब है कि अगर , ' भूमिपुत्र संजय पाटील ' जैसे कीमती, अनमोल, ' हीरा इंसान ' के संदर्भ में कुछ न लिखें तो यह ' पत्रकारिता पेशे ' के साथ बेमानी होगी। ' असाधारण व्यक्तित्व संजय पाटील ' को कौन नहीं जानता ? उनके संदर्भ में चार लाइन लिखना ' सूरज को दीपक दिखाने के बराबर है। ' आज के समय मे ' अच्छे इंसान ' मिलना बहुत ही मुश्किल है। साथ ही ' एक साफ-सुथरा कॉपरेटिव सोशल-वर्कर ' इतना ही नहीं सन 1985 से मुम्बई से प्रकाशित होनेवाले " Afternoon "  समाचार-पत्र में बतौर ' एडिटिंग-डिपार्टमेंट ' में ' पेज-डिजाइनर ' रहे। लगभग, 34 साल " Afternoon समाचार-पत्र " में अपनी असीम सेवाएं दी हैं। बड़ी ही ईमानदारी, बुद्धिमत्ता के साथ अख़बार के काम का बड़ी ही ज़िम्मेदारी के साथ निर्वाह किया। मूलतः महाराष्ट्र के जिला रायगढ़ अलीबाग के निवासी संजय पाटील का जन्म सन 1962 में हुवा। प्रारंभिक, माध्यमिक, सेकेंडरी, हॉयर सेकेंडरी के बाद ग्रेजवेशन तक का ' शिक्षा का सफ़र ' चलता रहा। आपकी रुचियां किताबें पढ़ना, संगीत-सुनना, व्यायाम, पर्यटन, सहयोग की भावना से की जानेवाली ' निःस्वार्थ समाजसेवा ' रही है। ' पेज डिजायनर ' को उस समय सम्मान के साथ ' आर्टिस्ट ' भी कहा जाने का प्रचलन रहा है। समाचारों को किस पेज पर बिठाना, उनका संयोजन करना, ' सम्पादन करना ' पत्रकारिता क्षेत्र में एक बहुत बड़ी कला है। प्रायः एक बार ही ख़बर को देखते ही यह अनुमान लगा लिया जाता है कि, ख़बर किस पेज पर छपेगी। कितने कॉलम में छपेगी। ' चित्र-सम्पादन ' भी इसी का मुख्य भाग है। एक चित्र , बोलते-चित्र होते हैं। एक चित्र  हज़ार समाचारों के बराबर होता है। ' युवा आधार प्रतिस्ठान ' NGO से जुड़े रहे हैं। भायंदर में सन 1980 से सक्रिय हैं। वो भी निःस्वार्थ भाव से। न ही नाम के लिए, न सत्ता के लिए, न पैसा के लिए। कोई भूख ही नहीं थी ऐसी। समाधानी, संतोषी, सहयोगी, विनम्र, मृदुभाषी, ऊंचा व्यक्तित्व, सरलता, सहजता तो आपमें कूट-कूट कर भरी हुई है। उस समय के ' महाराष्ट्र के सरकार में मंत्री ' नामदार गणेश रामचंद्र नाईक, पूर्व सांसद डॉ. संजीव गणेश नाईक, थाणे जिला शिवसेना प्रमुख धर्मवीर स्वर्गीय आनंद दिघे जी, ' मीरा-भायंदर नगरपरिषद ' के उस समय के ' नगराध्यक्ष स्वर्गीय डॉ. प्रफ्फुल काशीनाथ पाटील ' के साथ मिलकर ' शहर की ज्वलंत समस्याओं से जनता को उबारने का सार्थक प्रयास किया। ' टैंकर माफियाओं के ख़िलाफ़ मोर्चा खोला। भायंदर में पानी लाने के लिए अथक प्रयास ' ग्राऊंड लेबल ' पर किया। खासकर भायंदर पूर्व के क्षेत्र में पानी की बहुत किल्लत थी। अगुवा भले ही कोई भी रहा हो। लेकिन, संजय पाटील ने अपने जेब का पैसा , समय खर्च कर शहर की विभिन्न समस्याओं को सतत निपटाने का उल्लेखनीय प्रयास करते रहे। उनका अच्छा खासा संबद्ध सभी राजनीतिक पार्टियों, शासन-प्रशासन, सरकार में बैठे बड़े-बड़े नेताओं, सचिवों, बाबुओं से रहा। लेकिन, मुद्दा एक ही रहा वो ' जनहित ' का रहा। सामाजिक- सांस्कृतिक, शैक्षणिक, आध्यात्मिक क्षेत्रों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते रहे हैं। भायंदर से मराठी साप्ताहिक ' आजचा रक्षक ' के प्रकाशक -संपादक , प्रखर पत्रकार स्वर्गीय अरविंद पाटील से विशेष जुड़ाव रहा। अंततः दोस्ती-रिश्तेदारी में भी बदल गई। एक बार भायंदर में ' मुम्बई बृहनमुंबई माहानगरपालिका 'में तोड़ूदस्ते के अधिकारी उस समय मुम्बई मनपा में उपायुक्त गो.रा.खैरनार को भायंदर आमंत्रित कर उन्हें 5000/- ( पांच हज़ार रुपया ) , शॉल, श्रीफ़ल, प्रशस्ति-पत्र देकर सम्मानित-गौरवान्वित किया। भायंदर में पिछले 30 वर्षों से अधिक पुराने-चिर परिचितों में असंख्य लोग रहे । लेकिन, नपा के प्रथम नगराध्यक्ष गिल्बर्ट जॉन मेंडोंसा, मीरा-भायंदर के शिवसेना प्रमुख वासुभाई नम्बियार, ' मुम्बई दूरदर्शन ' के ' राजपत्रित पत्रकार ' एवं वर्षों ' महाराष्ट्र टाइम्स ' में भी ' पत्रकारिता ' करनेवाले मिलिंद नरहरि लिमये, स्वर्गीय जनार्दन बाबूराव घंघाले, युवा नेता ध्रुवकिशोर पाटील, महिला नेता निर्मला माखीजा, आदि लोगों के साथ मिलकर सराहनीय काम किया। अभिन्न मित्रों में मराठी दैनिक ' सामना ' के उस समय स्टॉफर / सम्पादकीय विभाग में इंचार्ज राजेन्द्र रामचंद्र कांबले के साथ मिलकर पत्रकारिता, समाजसेवा सहज भाव से की है। पानी के पाइपलाईन  शहरों में सुचारू रूप से डलवाने से लेकर गार्डनों के आरक्षण में भी अहम भूमिका निभाई। ' Afternoon ' में 34 वर्षों तक पत्रकारिता करने के बाद भायंदर पूर्व में ही निवास एवं ' निजी व्यवसाय ' कर अपना जीविकोपार्जन पर रहे हैं। आज भी वैसे हैं जैसे भायंदर में 40 साल पहले थे। बदन पर एक भी दाग नहीं। ' खुद को बचाकर ' साफ-सुथरी पत्रकारिता, जनसेवा करते रहे हैं। यही भूमिपुत्र, पत्रकार-मित्र संजय पाटील की विशेषता है।

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