भायंदर को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलानेवाले ब्रह्मदेव पंडित

हुनर और लक्ष्य ने  दिलाया पद्मश्री 

बिहार निवासी पूरा परिवार है कलाकार 

दीपक आर.जैन /भायंदर 
भारत सरकार द्वारा सिरेमिक्स में उल्लेखनीय योगदान के लिए पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित ब्रह्मदेव पंडित आज किसी परिचय के मोहताज नहीं बल्कि उनके काम और कला ने भाईंदर को राष्ट्रीय अंतरर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलायी है.कहते है हुनर के साथ लक्ष्य हो तो व्यक्ति कुछ भी कर सकता हैं और इन्ही दो चीजों की बदौलत पंडित परिवार राष्ट्रीय नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश को गोरान्वित कर रहा हैं.मिट्टी को विविध बर्तनों का रूप देकर देश विदेश के कारीगरों को अपनी कला का लोहा मनवा कर बता दिया की बता दिया कि हम भी किसी से कम नहीं। यही वजह है कि चाइना,जापान जैसे कई देशों के कलाकारआज उनके सीरेमिक्स के इस हुनर को न सिर्फ देखने आते है बल्कि सीखने में भी गहरी रुचि रखते हैं.मात्र पंडितजी ही नहीं बल्कि परिवार के सभी सदस्य इस कला में माहिर है व अलग अलग तरीकों से मिट्टी को नया रूप देते है या यूं कहेकी इसके विशेषज्ञ हैं.चर्चाओं के दौरान वे अपनी मातृभूमि बिहार को नहीं भूलते, बिहार के नवादा जिले के छोटे से गांव बोहरमबाग में पले बडे पंडितजी के दादा मिट्टी के बर्तन बनाकर अंग्रेजों को देकर अनाज लेते थे.पिता राम पंडित को खेती का शौक था लेकिन ब्रह्मदेव को अपने नाम को सार्थक करना था और इसीलिए उन्होंने अपने दादा से मिले हुनर को ना सिर्फ आगे बढाया बल्कि मिट्टी को बर्तनों को अनेक रुप दिये या यूं कहे कि एक तरफ हिन्दुस्थानियों में अपना पैतृक व्यवसाय त्यागने की होड मची है तो दूसरी तरफ वे है कि अपने पैतृक व्यवसाय लोहा मनवाने में सफल रहे है और यह संस्कारों का ही असर है कि उनकी पत्नी देवकी पुत्र अभय, शैलेश खुशबू उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करते है और नये नये तौर पर तरीकों से इस कला में निखार लाने का प्रयास करते हैं. 
भाईंदर में पंडितजी के नाम से मशहूर ब्रह्मदेव पंडित का परिवार कलाकार के रूप में अंतरर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित हो चुका है। मिट्टी के बर्तनों को आधुनिक रूप देने में उन्हें महारत हासिल है.वे कहते है कि मिट्टी से बर्तन बनाने की कला को आज सम्मान की नजरों से देखा जाने लगा है जिसे वे अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि मानते है.उन्होंने इसे व्यवसाय के रूप में विश्‍वभर में ख्याति दिलाई हेै। अपने पारंपारिक व्यवसाय को शुरु करके शिखर छुने में सफलता हासिल की है और साबित कर दिया कि शिक्षा हर चीज में आडे नहीं आ सकती बल्कि जीवन में कुछ करने की ठान ले तो मंजिल दूर नहीं और मेहनती व्यक्तित्व भी राष्ट्रपति भवन पहुंचकर सम्मान हासिल कर सकता है. 
भाईंदर (पूर्व) में स्थित उनके कलाकार निवास में जाते ही कलापूर्ण माहौल का दर्शन होता है और गांव के मिट्टी की भीनी खुशबू महक उठती है। बनियान और पायजामा पहने पंडितजी एक कोने में पोटर व्हील पर मिट्टी को आकार देते हुए दिखाई देते है. 
बेलगाम स्थित खादीग्राम उद्योग  से इस कला की बारिकियां को सीखा और फिर मुंबई महानगर को अपनी कर्मभूमि बनाकर जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट में माडलिंग और स्कल्पचर बनाना सीखा तथा एल.आर. अजगांवकर से भी बांद्रा स्थित कला नगर में इस क्षेत्र में ज्ञान अर्जित किया। वे अजगांवकर को अपना गुरु मानते है.उन्होंने सोफिया कॉलेज में २७ वर्षोें तक विद्यार्थियों को सीरेमिक्स की शिक्षा दी. 
पंडितजी ज्यादातर समय अपने वर्कशॉप पर ही बिताना पसंद करते है.बोनजाई और इकिबाना  को सजाने की जापानी कला के लिए वे विख्यात है.जापान की सिरेमीक संस्थाओं के निमंत्रण पर वे कई बार जापान जाकर आये है और वही की तकनीक को सीखकर उन्होंने यहां पर भट्टी का निर्माण किया। हाल ही में निर्मित अंधेरी पूर्व में टी 2 टर्मिनस (अंतरर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट) पर उनका काम देश के नाम को चार चांद लगा रहा है.उनके योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें ‘शिल्पगुरु’ और 2013  में देश के सर्वोच्च सम्मान में से एक ऐसे 'पद्मश्री' पुरस्कार से नवाजा और मीरा-भाईंदर महानगरपालिका सहित देश की नामी गिरामी संस्थाएं उन्हें सम्मानित कर चुकी है.उनके पुत्र अभय व शैलेश की भी इसी क्षेत्र में काफी रुचि है.इस विकास यात्रा की सफलता में उनकी पत्नी देवकी पंडित ने अहम् भूमिका निभायी है जिन्हें ‘युथ फोरम’ ने प्रतिभा सम्मान से सम्मानित किया था,फोरम ने पंडितजी को 'मीरा भायंदर गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया था. हाल ही में उन्होंने चाईना का दौरा किया था। पंडीतजी चाहते है कि सरकार ज्यादा से ज्यादा कला को प्रोत्साहन देते रहे।सीमरोज़ा गैलरी में हाल ही में हुई प्रदर्शनी को शानदार प्रतिसाद मिला और सभी के कामों की बहुत सरहाना हुई.  
सिरेमिक्स पर गांधी का जीवन

बिहार सरकार द्वारा चंपारण की शताब्दी के उपलक्ष में विशाल बापू सभागार का निर्माण किया गया हैं. इस सभागार में मुंबई के जाने माने कलाकार पद्मश्री ब्रह्मदेव ने पंडित गांधीजी के जीवन को सिरेमिक्स पर उतारा हैं. इस  सभागार  व कलाकृति का उद्घाटन बिहार के मुख्यमंत्री नितीशकुमार ने किया. उन्होंने पंडित के कामों की सरहाना की व मुलाकात के दौरान पंडितजी को बिहार के लिए समय देने को कहा.   
पद्मश्री ब्रह्मदेव पंडित द्वारा बापू  सभागार में निर्मित इस सिरेमिक आर्ट पर  महात्मा गांधी के विभिन्न छवियों की रचना उन उपकरणो के साथ है जिसका उपयोग वे अपने रोजमर्रा के जीवन मे करते थे. जैसे चरखा,घड़ी,पेन,भागवत गीता, चश्मा,ट्रैन आदि.इन चित्रों में उन व्यक्तियों को भी दिखाया गया है जिनका गांधीजी के जीवन पर बहुत प्रभाव था. इनमे विनोबा भावे,गोपाल कृष्ण गोखले रवीन्द्रनाथ टैगोर आदि है.
वर्ष 1917 में बिहार के जमीदार राजकुमार शुक्ला ने गांधीजी को स्थानीय किसानों की मदद के लिए बिहार के चंपारण बुलाया.यहां किसान इंडिगो फार्मिंग करने के लिए मजबूर थे.यहां आकर गांधीजी ने किसानों की समस्याओं को सुना और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बहुत बड़ा असहयोग व अहिंसात्मक आंदोलन शुरू किया जिसमें बिहार के हर वर्ग ने हिस्सा लिया.कहा जाता हैं कि यह आंदोलन ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ भारत की स्वतंत्रता के लिये अंतिम आंदोलन का नेतृत्व करता था.
गांधीजी को वैसे भी बिहार से विशेष लगाव था.डॉ राजेन्द्र प्रसाद व राजकुमार शुक्ला से उनकी मित्रता जग जाहिर है.लोकनेता जयप्रकाश नारायण भी गांधीजी से बहुत प्रभावित थे.उन्होंने कवा कोल नावडा में सोखो देवरा आश्रम बनाया.इस आश्रम में उन्होंने पूरी तरह से गांधीजी की जीवन शैली को अपनाया.बापू  सभागार में बना यह चित्रण बताता है कि वह चंपारण ही था जिसने मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा बनाया.
मीरा भायंदर की विधायक गीता भरत जैन ने पंडितजी के नए काम की सराहना की व कहा कि आनेवाली पीढ़ी के लिए यह बहुत उपयोगी होगा.उन्होंने कहा कि वे प्रयास करेगी की इस कला को मीरा- भायंदर में और आगे कैसे बढ़ाया जाए.युथ फोरम के अध्यक्ष दीपक आर.जैन व उपाध्यक्ष अतुल गोयल ने कहा कि इस कला को बढ़ावा देने हेतू राज्य सरकार या मीरा भायंदर महानगरपालिका ने उन्हें जगह उपलब्ध करानी चाहिए.जैन ने कहा कि मनपा के नाट्यगृह में उनकी गैलरी का निर्माण किया जाना चाहिये.              
  
बहु खुशबू को बनाया कलाकार  
 
रांची शहर से बारहवीं की परीक्षा के बाद खुशबू का विवाह पंडितजी के बडे पुत्र अभय पंडित से हो गया और कला की शौकीन खुशबू इस कला में रच बस गई जिसका श्रेय अपने ससुरजी को देती है.वे कहती है कि उन्हें शुरु से ही चित्रकला करने में गहरी रुचि थी और इस कला को पंडितजी ने पहचाना और आगे की परीक्षाएं उसे दिलवायी.२००९ में  राखू स्मोक(बारीक कारीगरी) के मास्टर डेवीड रोबर्ट से लंदन में ट्रेनिंग ली.उनके कार्य को अब काफी पसंद किया जा रहा है.इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर भी उनके काम की डिमांड है.वे इस कला में और नई नई चीजे करने को उत्सुक हैं.

पारम्परिक कला विरासत को आगे बढ़ाता अनंत

आज के बच्चे जहां इंटरनेट और डिजिटल में व्यस्त रहते है तो दूसरी और नन्हा अनंत अपने दादा पद्मश्री ब्रह्मदेव पंडित से विरासत में मिली पारम्परिक कला को आगे बढ़ाने में पूरी रूचि दिखा रहा हैं.कहते हैं पूत के पांव पालने में ही मालूम पड जाते हैं की आगे चलकर वह क्या बनेगा और इसी बात को चरितार्थ किया हैं अनंत ने. वह भी अपने दादा की तरह मिट्टी को बर्तनों को आधुनिक रूप देने की कला में पारंगत हासिल करने की और अग्रसर हैं.

भायंदर समीप उत्तन स्थित नामचीन श्री राम रत्ना इंटरनेशनल स्कूल का विद्द्यार्थी हैं. उसे बचपन से ही चित्रकला का शोक हैं और इसमें उसे अबतक कई पुरुस्कार मिल चुके हैं.चित्रलकला प्रतियोगिता में उसका चयन राष्ट्रीय स्तर पर हुआ था लेकिन कुछ कारण की वजह से वह जा नही सका था.अनंत अब चित्रकला के साथ साथ विरासत में मिली मिट्टी की कला के प्रति भी रूचि लेने लगा हैं. वह अपने परिवार की तरह ही चाक पर मिट्टी के बर्तन बनाने लगा है.अनंत कहता हैं कि आनेवाले दस साल में वह अपनेआप को  सिरामिक आर्टिस्ट के रूप में देखना चाहता हैं. वह कहता है की विरासत में मिली इस कला को वह आगे लेकर जाना चाहता हैं व पारम्पारिक कुम्हार कला को जीवंत रखना चाहता हैं.उसके बर्तनों की प्रदर्शनी सिमरोजा आर्ट गेलेरी में लगी थी जिसमे उसके काम की सभी ने सरहाना की थी. ब्रह्मदेव पंडित कहते है की मुझे बड़ी ख़ुशी हैं की जहां आज अगली पीढ़ी अपने विरासत को आगे बढ़ने में हिचकिचा रहा हैं तो उनके परिवार की चौथी पीढ़ी आगे बढ़ाने में बहुत उत्सुक हैं. वे कहते है की वे अनंत को भी मिट्टी को आधुनिक रूप देनेवाली कला में और आगे बढ़ायेगे. अनंत के पिता अभय और मां खुशबू का समावेश भी देश के नामी सिरेमिक्स के कलाकारों में होता हैं. अनंत 25 वे केशव सृष्टि महोत्सव में वेशभूषा में प्रथम स्थान पर आया था. मेंबर्स ऑफ़ इंटरनेशनल एसोसिएशन की और से आयोजित प्रतियोगिता में भी उसने भाग लिया था.  इस कला के साथ साथ उसे कराटे व फूटबाल में भी रूचि हैं.अनंत कहता हैं की वह इस कला के माध्यम से देश विदेश में नाम कमायेगा.लॉकडाउन के दौरान 500 से ज्यादा बर्तन बनाकर इस कला को और बारीकी से जानने का प्रयास किया. आपको जानकर आश्चर्य होगा की वो आज भी टीवी नहीं देखता हैं.  
   

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