जन जन की श्रद्धा के केंद्र जयंतसेन सूरीस्वरजी म.सा
पुण्यतिथि पर वशेष
विश्व वंदनीय त्रिस्तुतिक संघ नायक राष्ट्रसंत आचार्य श्री विजय जयंतसेन सूरीस्वरजी म.सा.
संकलन - बृजेश बोहरा /नागदा
परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य विजय जयंतसेन सूरीस्वरजी म.सा. जिनशासन का वह सूर्य हैं जिसकी चमक ने भारत ही नहीं अपितु पुरे विश्व में थी. उनके कार्यों ने जैनो में ही नहीं जैनेतर में भी अपनी अमिट छाप छोड़ी. उनके कार्यों को कुछ पन्नों में लिखना ऊंट के मुहं में जीरा के समान हैं.
🍁 जन्म : आपका जन्म थराद तहसील के पेपराल गांव में वि. स्. 1993 मगसर वदी 13, दिनाँक 11.12.1936, शुक्रवार की शुभ बेला में धरु कुल मे श्रेष्ठीवर्य स्वरूपचन्दजी के घर पुण्यवती माता पार्वतीदेवी की कुक्षी से हुआ था । आपका नाम पूनमचंद रखा गया l
🍁 दीक्षा : 16 वर्ष की युवा अवस्था में आपश्री को वैराग्य उच्च सीमा को छू गया और वि. स. 2010, माघ सुदी 4 को प. पूज्य आचार्यदेव श्री मद् यतीन्द्र सूरीश्वरजी म. सा. के वरद हस्ते आप दीक्षित हुए और आपका नाम मुनि जयन्तविजय रखा गया । कुछ ही वर्षो में आपके मधुर और शांत स्वभाव के कारण आपश्री " मधुकर " उपनाम से पहचाने जाने लगे l
🍁 उपाचार्य : वि. स. 2017 कार्तिक सुदी 15 को पूज्य आचार्य श्री यतीन्द्र सूरीश्वरजी म. सा,. ने मुनि श्री विद्या विजयजी को आचार्य एवं मुनि श्री जयंत विजयजी को उपाचार्य से अलंकृत किया l
🍁 आचार्यपद : वि. स. 2038 में कुलपाकजी तीर्थ की पावन धरा पर अखिल भारतीय त्रिस्तुतिक जैन संघ ने आपको "आचार्यपद" देने का निर्णय लिया । वि. स. 2040 माघ सुदी 13 दिनाँक 15. 02. 1984 के शुभ दिन श्री भांडवपुर तीर्थ पर सकल श्री संघ की उपस्थिति में "आचार्यपद" से अलंकृत कर आचार्य श्री विजय जयंतसेन सूरीश्वरजी म. सा. नाम घोषित किया गया l
🍁 राष्ट्रसन्त : वि. स. 2047 सन् 1991 जावरा में आपश्री को तत्कालीन उपराष्ट्रपति महामहिम डॉ. शंकरदयाल शर्मा ने "राष्ट्र सन्त" से अलंकृत किया l
🍁 लोकसंत : रतलाम चातुर्मास के अंतर्गत 18. 09.2016 को 36 कौम के सकल संघ ने सामूहिक रूप से गुरुदेव की धर्म प्रभावना को संज्ञान में लेकर "लोकसन्त" की पदवी से अलंकृत किया l
🍁 महाप्रयाण : वि.स. 2074 वैशाख वदी 5 दिनांक 16 अप्रैल 2017, (अग्नि संस्कार वदि सातम) को श्री भांडवपुर महातीर्थ से महाविदेह धाम की ओर विहार किया ।
🍁 एक संक्षिप्त् झलक आराध्य गुरुदेव के धर्म प्रभावना की
1) मुनि दीक्षा के 63 और आचार्य पदवी के 33 वर्षों का संयम जीवन
2) 16 वर्ष की आयु में संयम स्वीकार किया
3) करीब 236 जिनमंदिरों की प्राण प्रतिष्ठा
4) आपके सद्-उपदेश से लगभग 250 से ज्यादा गुरु मंदिरों का निर्माण
5) क़रीबन लाख किलोमीटर से ज्यादा का पद विहार कर लाखों आत्माओं को आत्म कल्याण का मार्गदर्शन किया.
6) 200 से अधिक भव्यात्माओं को दीक्षा प्रदान की
7) अनेक तीर्थों के छ:रि पालित संघ, नव्वाणु यात्राएँ, उपधान तप, सतत् नवकार मंत्र आराधना तप आदि सम्पन्न करवायी
8) परिवार में द्वय आचार्य श्री सहित 243 साधु-साध्वी वृन्द आपके दिव्य आशीर्वाद से देशभर में धर्म की उत्कृष्ट प्रभावना कर रहे है।
9) 19 फरवरी 2017 को वीरभूमि थराद नगर में 24 मुमुक्षुओं की सामूहिक दिक्षा (आत्मोद्धार ) हुई
10) गुरु श्री यतीन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. की आज्ञानुसार अखिल भारतीय श्री राजेन्द्र जैन नवयुवक-महिला- परिषद को पोषित-पल्लवित कर सम्पूर्ण भारत मे शाखायें स्थापित की। तरुण परिषद की स्थापना की।
आज सम्पूर्ण भारत मे परिषद परिवार की लगभग 250 शाखाओं से जुड़कर हजारों कार्यकर्ता देश- समाज-धर्म के क्षेत्र में अपनी सेवाएं दे रहे है।परिषद के माध्यम से धार्मिक पाठशालाये,स्कूल ,कॉलेज, हास्पिटल,भारत के कई इलाकों में स्थापित और संचालित है। अनेको सत्कार्य हो रहे है.
🍁 गुरुदेव की धर्म प्रभावना इतनी सबल और सतत् है, जो पिछले 63वर्षों से गंगा की बहती धारा की तरह निरन्तर बह रही है । सिर्फ और सिर्फ एक ही लक्ष्य मेरा जिनशासन जयवन्त रहे : सवि जीव करूँ शासन रसी" ऐसे प्रभु समान गुरुभगवंत की तृतीय पुण्य स्मरण पर कोटि कोटि वंदना.
(लेखक श्रीसंघ व परिषद् के राष्ट्रीय प्रचार मंत्री व मिडीया प्रभारी हैं)
विश्व वंदनीय त्रिस्तुतिक संघ नायक राष्ट्रसंत आचार्य श्री विजय जयंतसेन सूरीस्वरजी म.सा.
संकलन - बृजेश बोहरा /नागदा
परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य विजय जयंतसेन सूरीस्वरजी म.सा. जिनशासन का वह सूर्य हैं जिसकी चमक ने भारत ही नहीं अपितु पुरे विश्व में थी. उनके कार्यों ने जैनो में ही नहीं जैनेतर में भी अपनी अमिट छाप छोड़ी. उनके कार्यों को कुछ पन्नों में लिखना ऊंट के मुहं में जीरा के समान हैं.
🍁 जन्म : आपका जन्म थराद तहसील के पेपराल गांव में वि. स्. 1993 मगसर वदी 13, दिनाँक 11.12.1936, शुक्रवार की शुभ बेला में धरु कुल मे श्रेष्ठीवर्य स्वरूपचन्दजी के घर पुण्यवती माता पार्वतीदेवी की कुक्षी से हुआ था । आपका नाम पूनमचंद रखा गया l
🍁 दीक्षा : 16 वर्ष की युवा अवस्था में आपश्री को वैराग्य उच्च सीमा को छू गया और वि. स. 2010, माघ सुदी 4 को प. पूज्य आचार्यदेव श्री मद् यतीन्द्र सूरीश्वरजी म. सा. के वरद हस्ते आप दीक्षित हुए और आपका नाम मुनि जयन्तविजय रखा गया । कुछ ही वर्षो में आपके मधुर और शांत स्वभाव के कारण आपश्री " मधुकर " उपनाम से पहचाने जाने लगे l
🍁 उपाचार्य : वि. स. 2017 कार्तिक सुदी 15 को पूज्य आचार्य श्री यतीन्द्र सूरीश्वरजी म. सा,. ने मुनि श्री विद्या विजयजी को आचार्य एवं मुनि श्री जयंत विजयजी को उपाचार्य से अलंकृत किया l
🍁 आचार्यपद : वि. स. 2038 में कुलपाकजी तीर्थ की पावन धरा पर अखिल भारतीय त्रिस्तुतिक जैन संघ ने आपको "आचार्यपद" देने का निर्णय लिया । वि. स. 2040 माघ सुदी 13 दिनाँक 15. 02. 1984 के शुभ दिन श्री भांडवपुर तीर्थ पर सकल श्री संघ की उपस्थिति में "आचार्यपद" से अलंकृत कर आचार्य श्री विजय जयंतसेन सूरीश्वरजी म. सा. नाम घोषित किया गया l
🍁 राष्ट्रसन्त : वि. स. 2047 सन् 1991 जावरा में आपश्री को तत्कालीन उपराष्ट्रपति महामहिम डॉ. शंकरदयाल शर्मा ने "राष्ट्र सन्त" से अलंकृत किया l
🍁 लोकसंत : रतलाम चातुर्मास के अंतर्गत 18. 09.2016 को 36 कौम के सकल संघ ने सामूहिक रूप से गुरुदेव की धर्म प्रभावना को संज्ञान में लेकर "लोकसन्त" की पदवी से अलंकृत किया l
🍁 महाप्रयाण : वि.स. 2074 वैशाख वदी 5 दिनांक 16 अप्रैल 2017, (अग्नि संस्कार वदि सातम) को श्री भांडवपुर महातीर्थ से महाविदेह धाम की ओर विहार किया ।
🍁 एक संक्षिप्त् झलक आराध्य गुरुदेव के धर्म प्रभावना की
1) मुनि दीक्षा के 63 और आचार्य पदवी के 33 वर्षों का संयम जीवन
2) 16 वर्ष की आयु में संयम स्वीकार किया
3) करीब 236 जिनमंदिरों की प्राण प्रतिष्ठा
4) आपके सद्-उपदेश से लगभग 250 से ज्यादा गुरु मंदिरों का निर्माण
5) क़रीबन लाख किलोमीटर से ज्यादा का पद विहार कर लाखों आत्माओं को आत्म कल्याण का मार्गदर्शन किया.
6) 200 से अधिक भव्यात्माओं को दीक्षा प्रदान की
7) अनेक तीर्थों के छ:रि पालित संघ, नव्वाणु यात्राएँ, उपधान तप, सतत् नवकार मंत्र आराधना तप आदि सम्पन्न करवायी
8) परिवार में द्वय आचार्य श्री सहित 243 साधु-साध्वी वृन्द आपके दिव्य आशीर्वाद से देशभर में धर्म की उत्कृष्ट प्रभावना कर रहे है।
9) 19 फरवरी 2017 को वीरभूमि थराद नगर में 24 मुमुक्षुओं की सामूहिक दिक्षा (आत्मोद्धार ) हुई
10) गुरु श्री यतीन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. की आज्ञानुसार अखिल भारतीय श्री राजेन्द्र जैन नवयुवक-महिला- परिषद को पोषित-पल्लवित कर सम्पूर्ण भारत मे शाखायें स्थापित की। तरुण परिषद की स्थापना की।
आज सम्पूर्ण भारत मे परिषद परिवार की लगभग 250 शाखाओं से जुड़कर हजारों कार्यकर्ता देश- समाज-धर्म के क्षेत्र में अपनी सेवाएं दे रहे है।परिषद के माध्यम से धार्मिक पाठशालाये,स्कूल ,कॉलेज, हास्पिटल,भारत के कई इलाकों में स्थापित और संचालित है। अनेको सत्कार्य हो रहे है.
🍁 गुरुदेव की धर्म प्रभावना इतनी सबल और सतत् है, जो पिछले 63वर्षों से गंगा की बहती धारा की तरह निरन्तर बह रही है । सिर्फ और सिर्फ एक ही लक्ष्य मेरा जिनशासन जयवन्त रहे : सवि जीव करूँ शासन रसी" ऐसे प्रभु समान गुरुभगवंत की तृतीय पुण्य स्मरण पर कोटि कोटि वंदना.
(लेखक श्रीसंघ व परिषद् के राष्ट्रीय प्रचार मंत्री व मिडीया प्रभारी हैं)
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