विश्व स्तर पर बढ़ता ग्राफोलॉजी का काम

हस्ताक्षर विज्ञान विशेषज्ञ का पीएचडी कर सकते है
 श्रीप्रकाश केशरदेव जालुका 
(लेखक हस्ताक्षर विज्ञान विशेषज्ञ है ) 
ग्राफ़ोलॉजी अर्थात हस्ताक्षर विज्ञान आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत ही तेजी से बढ़ रहा है। हस्ताक्षर विज्ञान वैसे तो हजारों साल पुराना है, हमारे भारत देश में भी सुलेख पर हमेशा ध्यान दिया जाता था, किंतु ग्राफ़ोलॉजी की शुरुआत लगभग  300 साल पहले इटली में हुई और धीरे धीरे पूरे यूरोप और फिर विश्व पटल पर लोग इसके बारे में जानने लगे और अनेक प्रकार की रिसर्च करने लगे ।आज अनेक विश्वविद्यालयों में इस विषय पर पीएचडी की जा सकती है।

जब भी हम कुछ लिखना सीखते हैं तो यह हमारे चेतन मन की क्रिया होती है ,किंतु जब धीरे-धीरे हम जब सीख लेते हैं और लिखते हैं तो फिर उसके लिए हमें अधिक सोचना नहीं पड़ता क्योंकि यह हमारे अवचेतन मन से होने वाली क्रिया होती है । यह ठीक वैसे ही होता है जैसे गाड़ी चलाना सीखते समय हम अति सावधानी पूर्वक से गाड़ी चलाते हैं किंतु जब हम उस में निपुण हो जाते हैं तो हमें ध्यान नहीं रखना पड़ता हम अपने अवचेतन मन से ही ड्राइविंग कर रहे होते हैं।
जब हम बार बार एक ही प्रकार से लिखते हैं तो हमारे अवचेतन मन में कुछ पेटर्न्स बन जाते हैं। उन पेटर्न्स के जरिए ही हमारे विचार उत्पन्न होते हैं ,विचार हमारे शब्दों में परिवर्तित हो जाते हैं , शब्द जो है वह हमारी क्रियाओं को प्रभावित करते हैं और जिस तरह के हम क्रियाएं करते हैं वही हमारी आदतें बन जाती हैं , आदतें हमारे चरित्र का निर्माण करती है और चरित्र है जो हमें हमारी नियति बनाता है। अतः अगर हमें हमारी नियति बदलना है तो हमें हमारे विचारों पर काम करना पड़ेगा, यह ठीक उसी तरह से हैं जिस तरह से अगर हमें अच्छे फल चाहिए तो हमें वृक्ष की  टहनियों पर नहीं जड़ों पर काम करना पड़ेगा।
अब तक जो भी हम लिखते थे वह अनजाने में लिखते थे जिसकी वजह से हमारा एक विचारों का पैटर्न बन चुका था। किंतु हम अब इसे समझ कर एवं जानबूझकर नए तरीके से लिखेंगे तो हमारे विचार भी नए होंगे और उसी प्रकार से हमारी नियति भी।
हमारे लिखने का संबंध सीधा हमारे अवचेतन मन से है कोई भी चीज लिखते वक्त बरतने वाली सावधानियां निम्न प्रकार से है।
जब भी हम लिखें तो हमारी लिखने की दिशा सदैव बढ़ते हुए ऊपरी क्रम में रहनी चाहिए इससे हमारा उत्साह और ऊर्जा बना रहता है हमारी सोच सकारात्मक रहती है।
हमें स्वच्छ और सुंदर लिखने का प्रयास करना चाहिए उसी प्रकार हमारे विचार भी स्वच्छ एवं सुंदर रहेंगे।
अक्षरों, शब्दों एवं रेखाओं के बीच का स्थान सम एवं सुव्यवस्थित होना चाहिए। यह हमारे विचार एवं लोगों के साथ हमारे संबंध और हमारी किसी भी चीज को सुव्यवस्थित करने की क्षमता को बढ़ाता है।
अक्षरों का आकार आदर्श व सम होना चाहिए ,छोटे - बड़े अक्षर हमारे विचारों में असमानता दर्शाते हैं।

हस्ताक्षर विज्ञान में बिंदु का उपयोग अति महत्वपूर्ण है । आई (i)के ऊपर लगने वाला बिंदु हमारी एकाग्रता को दर्शाता है। अगर हम आई के ठीक ऊपर बिंदु लगाते हैं ,तो हमारी एकाग्रता बहुत अच्छी है किंतु अगर बार-बार कोई आई के ऊपर बिंदु लगाना भूल जाता है इसका अर्थ है, उस  व्यक्ति का ध्यान भटका हुआ है और उसे एकाग्र चित्त होने मैं परेशानी हो रही है। अतः अगर हमें अपना ध्यान एकाग्र करना है तो हमें आई एवं जे (i &j) पर लगने वाले बिंदु को बड़े ध्यान से सही स्थान पर लगाना चाहिए।
ठीक इसी प्रकार टी (t)के ऊपर लगने वाले क्रॉसबार का भी बहुत महत्व है टी पर लगने वाला क्रॉसबार अगर व्यक्ति बहुत नीचा लगाता है इसका अर्थ है कि व्यक्ति के पास जीवन के लक्ष्य या तो है ही नहीं या बहुत कम है अतः टी  पर लगने  वाला  क्रासबार हमें ऊंचा और उस एकदम ठीक से आगे तक लगाना चाहिए।
जब भी हम हमारे हस्ताक्षर यानी सही करें वह हमें निम्नलिखित बातों पर अवश्य ध्यान देना चाहिए।
हमारे हस्ताक्षर सदैव बढ़ते हुए ऊपरी क्रम में होने चाहिए।
हस्ताक्षर स्वच्छ एवं सुंदर होने चाहिए।
हस्ताक्षर में किसी भी प्रकार की बिंदू अर्थात फुल स्टॉप नहीं होना चाहिए।
हस्ताक्षर में स्वयं के नाम का पहला अक्षर एवं अपने सरनेम का पहला अक्षर अन्य अक्षरों से थोड़ा बड़ा होना चाहिए।
अपने नाम के अक्षर पर अथवा हस्ताक्षर में करने के बाद उसके चारों और गोला नहीं बनाना चाहिए।
दोस्तों इस लेख के जरिए आप लोगों को हस्ताक्षर विज्ञान अर्थात ग्राफ़ोलॉजी के बारे में थोड़ी जानकारी देने का प्रयास किया है और आशा करता हूं कि आपको यह प्रयास पसंद आए। हस्ताक्षर विज्ञान अपने आप में एक अथाह सागर है जिसमें जितनी गहराई तक जाया जाए उसने आश्चर्यजनक परिणाम मिलते हैं। अतः आप लोगों से निवेदन है कि यह जानकारी केवल आप लोगों को इस विज्ञान का परिचय करवाने के लिए है इस लेख के आधार पर आप किसी व्यक्ति का विश्लेषण ना करें ।

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