युग प्रवर्तक श्रमण शिरोमणिपरम पूज्य दादा गुरुदेव भण्डारी श्री पदमचन्द्र जी म. सा.
विनम्रता व सरलता की प्रतिमूर्ति थे
दक्षिण सूर्य डाॅ. वरुण मुनि जी म. सा. ' अमर शिष्य
सभी जीवों के सच्चे हितैषी,विनम्रता और सरलता की प्रतिमूर्ति, विवेकी एवं सच्चे सिद्धांतों के हिमायती गुरुदेव, भंडारी, उत्तर भारतीय प्रवर्तक श्री पद्मचंद्र जी महाराज का चरित्र चित्रण एक संक्षिप्त आलेख की सीमित पंक्तियों में कर पाना संभव नहीं। हरियाणा के एक छोटे से गाँव हलालपुर जिला सोनीपत में गुरुदेव का जन्म हुआ। विक्रम संवत् 1974 की विजया दशमी की शुभ वेला में सुश्रावक लाला गणेशीलालजी एवं धर्मशीला सुश्राविका सुखदेवी के गृह आँगन में एक पुत्र रत्न की आल्हादक किलकारी गूँज उठी, दशहरे को जन्मा बालक तो माता पिता ने देशराज नामकरण किया।बालक देशराज का पालन पोषण समुचित वातावरण और सम्यक संस्कारों के सिंचन के साथ होने लगा।
बालक देशराज ने अभी बाल्यावस्था की दहलीज सही ढंग से पार भी न की थी कि माता पिता की स्नेहिल छत्रछाया हट गयी, दोनों काल कवलित हो गए।
प्रज्ञा पुरुषोत्तम, युग प्रधान आचार्य सम्राट, ज्ञान योगी, ज्ञानावतार, साहिष्णुता की दिव्य मूर्ति श्री आत्माराम जी महाराज का दिव्य व अलौकिक पावन सांनिध्य मिला और उन्होंने देशराज को अपने शिष्य, शास्त्रज्ञ, विद्वान मुनिराज श्री हेमचंद्र जी को सौंप दिया । गुरुदेव हेमचंद्र जी ने उन्हें दीक्षा देकर भागवती जैनेश्वरि मार्ग पर बढ़ा ले चलने का निर्णय कर लिया।
यह दिवस था संवत् 1991 की माघ वदी पंचमी का।17 वर्षीय कुमार देशराज ने सद्गुरु चरण शरण में रहकर आजीवन गुरुकुल वास करने का महत्वपूर्ण निर्णय लिया और पूज्य गुरुदेव, पंडित रत्न श्री हेमचंद्र जी महाराज ने देशराज को दीक्षित करके उनका नामकरण पद्मचंद्र मुनि किया। और इस तरह एक नए नाम के साथ एक नई जीवन यात्रा का शुभारम्भ हुआ और आज हम उन्हें प्रातः स्मरणीय प्रवर्तक भंडारी श्री पद्मचंद्र जी महाराज के नाम से जानते पहचानते हैं।
संयम, अहिंसा, तप, जप और सेवा की पंचाग्नि तपस् से स्व और पर को प्रकाशित करते हुए मुनि पद्मचंद्र शीघ्र ही श्री संघ में अपनी महती भूमिका निभाने लगे।
मुनि श्री पद्मचंद्र जी का जागृत स्वविवेक, तीव्र अध्यवसाय, त्वरित निर्णय लेने की क्षमता और आम जन सहित विज्ञ श्रावकों और संतों से व्यवहार में कुशलता देखकर आप श्री को आचार्य श्री जी के प्रमुख परामर्शक बनाया गया। जिनकी ज्ञान रश्मियों से सम्पूर्ण जिनशासन प्रकाशित हो रहा था उनके प्रमुख परामर्शक बनकर गौरव के शिखरों पर आरोहण का आरम्भ हो गया।प्रमुख परामर्शक मुनिवर की ज्ञान के प्रति लालसा उच्च कोटि की थी, प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथों का विशाल भंडार आचार्य श्री जी के निमित्त से उस समय लुधियाना में उपलब्ध था। उस पूरे भंडार के रख रखाव के प्रति आपका उत्साह देखकर और साथ ही अन्य अनेक साधवोचित सद्गुणों के भंडार होने के कारण आचार्य श्री जी ने प्रेम से आपको " भंडारी जी महाराज " के अलंकरण से अलंकृत किया और इस भांति मुनि पद्मचंद्र जी बन गए भंडारी श्री पद्मचंद्र जी महाराज। पद और प्रतिष्ठा प्राप्ति के अनेकों छोटे बड़े अवसर इसके बाद भी आप श्री के जीवन में शताधिक बार आये परन्तु आचार्य श्री के द्वारा स्नेहिल सम्बोधन जो भंडारी शब्द के द्वारा दिया गया वह आपकी प्रमुख पहचान बन गया।बाद को जब आप प्रवर्तक पद पर विराजित हुए तब भी भंडारी जी महाराज का अर्थ प्रवर्तक श्री पद्मचंद्र मुनि ही था।
श्रमण संघ में उत्तर भारत के प्रवर्तक बनकर आपने श्री संघ को उन्नति के नए आयामों तक पहुंचाया और साथ ही शासन सेवा के नित नए प्रतिमान स्थापित किए। पंजाब यूनिवर्सिटी में जैन चेयर की स्थापना द्वारा जिन प्रवचन प्रभावना के मार्ग को प्रशस्त किया । अम्बाला में पी. के. आर. जैन सीनियर सेकेण्डरी हाईस्कूल,आचार्य आत्माराम जैन सीनियर सेकेण्डरी हाइस्कूल डेराबस्सी, आचार्य अमरसिंह जैन वाचनालय मानसा मंडी आदि शताधिक स्थलों पर शताधिक जन कल्याणकारी संस्थाओं की स्थापना आपकी ही प्रेरणा से की गयी।
पूज्य भंडारी प्रवर्तक गुरुदेव ने चौरासी वर्ष की आयु पाई जिसमें सड़सठ वर्ष का दीर्घ काल उन्होंने पवित्र संयम यात्रा को दिया।एक बालयोगी के रूप में ही जीवन का आरम्भ हो गया और महायोगी के रूप में इस संसार से प्रयाण किया।
पूज्य प्रवर्तक भंडारी श्री पद्मचंद्र जी महाराज सच्चे अर्थो में राष्ट्र संत थे, स्व पर कल्याण साधन में निरंतर लगे रहे। आजीवन अप्रमत्त योगी बनकर जीवन जीने वाले सद्गुरुदेव ने दिनांक 1मई 2001 को संथारा सहित पवित्र समाधिमरण को प्राप्त किया । आपकी दिव्य उपस्थिति आज भी श्रद्धापूर्ण हृदयों में सतत बनी हुई है।
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