आचार्य नमिसागरजी का जयपुर मैं निधन
आचार्य नमिसागरजी का जयपुर मैं निधन
जयपुर,4 अप्रेल। आचार्य महावीर कीर्ति महाराज की शिष्य परंपरा के बड़े आचार्य नमी सागर महाराज का शनिवार दोपहर एक बजेपार्श्वनाथ भवन में निधन हो गया।
आचार्य नमी सागर पार्श्वनाथ भवन में विराजमान थे। वे दिल्ली से विहार कर जयपुर पहुंचे थे। उनके देवलोक गमन की सूचना सेसम्पूर्ण जैन समाज में शोक की लहर फैल गई। उनके अंतिम दर्शन के लिए कोल्हापुर, पुणे, मुंबई, दिल्ली समेत कई बड़े शहरों सेजैन समाज बंधु जयपुर पहुंच रहे हैं।
देवप्रकाश खांडका ने बताया कि आचार्य श्री हमेशा की तरह ही शनिवार दोपहर 12 बजे भोजन ग्रहण करने के बाद ध्यान में बैठ गएथे। करीब एक बजे उन्होंने शरीर त्याग दिया। उन्होंने गणाचार्य कुन्तु सागर महाराज से आचार्य पद ग्रहण किया था। 46 साल कीउम्र में मुनि पद ग्रहण करने के बाद सम्पूर्ण भारत में विहार करते रहे। नमी सागर महाराज को 12 भाषाओं का ज्ञान था।
अपने जीवन काल में उन्होंने कई पुस्तकों का लेखन भी किया।
आचार्य श्री महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले के तमदलगे गांव के रहने वाले थे। गांव के लोगों ने तमदलगे रेलवे स्टेशन का नाम नीमीश्रीगावं करने की मांग मघ्य रेलवे से की थी। इस पर रेलवे विभाग की ओर जनवरी 2015 में गांव के सरपंच को पत्र लिखकर उनकीमांग पर विचार करने का आश्वासन दिया था।
डॉ.अमित जैन ने नमी सागर महाराज के देवलोक गमन को पूरे समाज के लिए अपूर्णीय क्षति बताया है।उन्होंने कहा कि नमी सागरजी महान जैन संतों की परंपरा से रहे जिन्होंने लाखों लोगों का जीवन परिवर्तन किया। उनके संपर्क में एक बार जो आया, उनका हीहो गया। उन्होंने धार्मिक संस्कारों की जो ध्वजा फहराई, उसके नीचे समाज को नई दिशा मिली।(Jain Information Center-Dwarka)
आचार्य नमी सागर पार्श्वनाथ भवन में विराजमान थे। वे दिल्ली से विहार कर जयपुर पहुंचे थे। उनके देवलोक गमन की सूचना सेसम्पूर्ण जैन समाज में शोक की लहर फैल गई। उनके अंतिम दर्शन के लिए कोल्हापुर, पुणे, मुंबई, दिल्ली समेत कई बड़े शहरों सेजैन समाज बंधु जयपुर पहुंच रहे हैं।
देवप्रकाश खांडका ने बताया कि आचार्य श्री हमेशा की तरह ही शनिवार दोपहर 12 बजे भोजन ग्रहण करने के बाद ध्यान में बैठ गएथे। करीब एक बजे उन्होंने शरीर त्याग दिया। उन्होंने गणाचार्य कुन्तु सागर महाराज से आचार्य पद ग्रहण किया था। 46 साल कीउम्र में मुनि पद ग्रहण करने के बाद सम्पूर्ण भारत में विहार करते रहे। नमी सागर महाराज को 12 भाषाओं का ज्ञान था।
अपने जीवन काल में उन्होंने कई पुस्तकों का लेखन भी किया।
आचार्य श्री महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले के तमदलगे गांव के रहने वाले थे। गांव के लोगों ने तमदलगे रेलवे स्टेशन का नाम नीमीश्रीगावं करने की मांग मघ्य रेलवे से की थी। इस पर रेलवे विभाग की ओर जनवरी 2015 में गांव के सरपंच को पत्र लिखकर उनकीमांग पर विचार करने का आश्वासन दिया था।
डॉ.अमित जैन ने नमी सागर महाराज के देवलोक गमन को पूरे समाज के लिए अपूर्णीय क्षति बताया है।उन्होंने कहा कि नमी सागरजी महान जैन संतों की परंपरा से रहे जिन्होंने लाखों लोगों का जीवन परिवर्तन किया। उनके संपर्क में एक बार जो आया, उनका हीहो गया। उन्होंने धार्मिक संस्कारों की जो ध्वजा फहराई, उसके नीचे समाज को नई दिशा मिली।(Jain Information Center-Dwarka)
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