एक दवा निराली 15 सेकंड की ताली











दीपक आर.जैन
अरुण ऋषि 'स्वर्गीय 'द्वारा स्थापित आयुष्यमान भव ट्रस्ट दुनिया का पहला ऐसा ट्रस्ट हैं जो सिर्फ लोगों का विश्वास एकत्रित करता है,धन नहीं.पिछले कुछ वर्षों मैं इस संस्थान द्वारा संपूर्ण भारत में 1000 से ज्यादा शिविर आयोजित किये जा चुके हैं. आज के समय में जितनी भी खोजें हो रही हैं वह सिर्फ रुपयों के द्वारा,रुपयों के लिये तथा रुपये वालों के लिए ही हैं. परन्तु हम यह भूल गये कि हमारी चालीस प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीती हैं. यदि हम उनके सुखी या निरोगी होने की खोज नहीं की तो वह 60 प्रतिशत लोगों को भी सुखी नहीं रहने देगी. हमारे ट्रस्ट ने जितनी भी खोजे की हैं उसके द्वारा गरीब से गरीब व्यक्ति झोपडी में तथा बड़े से बड़ा व्यक्ति महलों मैं सहजता से कर हमारे वेद मंत्र 'सर्वे भवंतु सुखिन; सर्वे सन्तु निरामया ' (सब सुखी हो ,सब निरोगी हो) की कल्पना को साकार कर सकते हैं. रामराज्य की पुनः स्थापना हो सकती हैं तथा भारत जगदगुरु के स्थान पर स्थापित हो सकता हैं.
 ताली के माध्यम से दुनिया को स्वस्थ रहने के गुर सीखा रहे अरुण ऋषि एक दवा निराली 15 सेकंड की ताली के माध्यम से स्वस्थ जीवन की टिप्स देते हैं. उपनाम स्वर्गीय से उनका तात्पर्य भारतभूमि को स्वर्ग और इसमें रहनेवाला हर नागरिक स्वर्ग की अनुभूति करे,ऐसा देश बनाना हैं. 30 अक्टूबर को महाकाल की नगरी उज्जैन में जन्मे अरुण ऋषि का नाम गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड के लिए प्रस्तावित किया गया हैं. वे ऐसे प्रथम गृहस्थ उद्योगपति हैं जिन्होंने १९७९ से अबतक 10 वस्तुओं का उपभोग नहीं लिया गया हैं जिसमे टूथब्रश,टूथपेस्ट,चाय-कॉफ़ी,शेविंग क्रीम,साबुन,शेम्पू,सौंदर्य प्रसाधन,चॉक्लेट,कृत्रिम शीतल पेय,पान गुटखा,धूम्रपान,मदिरापान और दवाओं का समावेश हैं. वे विभिन्न संस्थानों,स्कूल,कॉलेज व सरकारी प्रतिष्ठानों के अलावा देश विदेश मैं ताली पर वर्कशॉप करते हैं. ताली की वजह से उन्होंने दुनियाभर में अपनी विशिस्ट पहचान बनाई हैं. वे कहते हैं मेरी यह यात्रा देश,समाज,परिवार एवं व्यक्तित्व परिवर्तन का एक आंदोलन हैं. विभिन्न विषयों पर दीपक आर जैन ने उज्जैन में उनसे की मुलाकात का प्रस्तुत हैं पहला भाग

ये माना कि गुल को
गुलशन न कर सकेंगें हम,
पर कर सकेंगें जरूर कुछ कांटें कम गुजरेँगेँ
जिस राह से भी हम 
ताली क्या है ?
चाबी जिस प्रकार ताले की होती है उसी प्रकार हमारे हाथों द्वारा बजायी गई ताली एक प्रकार की मास्टर चाबी है जो प्रत्येक प्रकार के रोगों से मनुष्य मात्र को रोग मुक्त करा सकती है तथा आजीवन निरोगी रख सकती है हमारे यहाँ कहा जाता है कि - एक साधे सब सधे, सब साधे सब जाये। यदि विश्व का प्रत्येक मानव इस ताली को साध लें तो इस धरा पर से सहज रूप से रोगों को समाप्त किया जा सकता है। एक्युप्रेशर के सिद्धान्तों के अनुसार संपूर्ण शरीर को संचालित करने के पॉइन्ट से मनुष्य के हाथों अौर पैर के तलवों में होते है। जब भी हमें दर्द हो उन बिन्दुअों को दबाकर हम दर्द से मुक्ति पा सकते है, परन्तु हमारे कबीरदास जी कह गये है कि -
दुःख में सुमिरन सब करें, सुख में करें न कोया जो सुख में सुमिरन करें, तो दुःख काहे को होय/
एक्युप्रेशर विज्ञान को समझने के लिए मानव मात्र को पढ़ा - लिखा होना अत्यंत आवश्यक है जबकि हमारी ताली बजाने व पत्थर से पैरों को रगड़ने के लिए किसी पढ़ाई की आवश्यकता नहीं है।
यही बात हम किन्नरों के साथ भी देख सकते है कि वे दिनभर तालिया ठोकते रहते है जिसके कारण उनका स्वास्थ्य तथा डीलडोल आम आदमी की तुलना में काफी ठीक होता है। इसका मतलब यह कतई नहीं है कि हम दिनभर तालियाँ ठोकते रहे कारण - अति सर्वत्र वज्यति।
ताली बजाते समय आप पाएंगे कि आपके शरीर का तापक्रम बढ़ने लगता है, जिसके कारण कोलेस्ट्रोल पिघलता है तथा हमारे अगूंठे के नीचे जो गादी के समान स्थान है वह बार-बार दबने के कारण उसमें उपस्थित रक्त की थैलियाँ रक्त को विपरित दिशा में संचालित करती है,  जिस प्रकार नालियों को साफ करने के लिए हम विपरित दिशा में पानी की धार मारते है उसी प्रकार की यह क्रिया होने से रक्त धमनियों में यदि कोई रुकावट होती है तो वह साफ हो जाती है, धमनियों का व्यास बढ़ जाता है जिसमें ह्रदय को आराम मिलता है तथा ताली वादन से पूरे शरीर में कंपन होने लगता है, जिस कारण शरीर की व्याधियाँ बाहर हो जाती है। ताली वादन से शरीर में वात, पित्त अौर कफ का संतुलन बना रहता है जिससे मानव आजीवन निरोगी रह सकता है।
ताली वादन तथा पत्थर से पैरों के तलवों को रगड़ने से सहज कोई व्याव्याम हो ही नहीं सकता, कारण हम जब भी कोई व्यायाम या श्रम करते हैं तो अन्ततः हम या तो हमारे हाथों के या पैरों के तलवों के पॉइन्टस पर ही दबाब बनाते है, यदि हम कोई व्यायाम या शारीरिक श्रम नहीं कर रहे हो तो कम से कम ताली बजाकर तथा पत्थर से तलवों को रगड़कर वह काम कर लें जो अत्यंत सहज है।
आज के समय में जितनी भी खोजें हो रही है वह रूपयों के लिए रूपये वालों के लिए ही हो रही है परंतु हम यह भूल गए है कि हमारी 40प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन व्यापन कर रही है यदि हमने उनके निरोगी होने की या सुखी होने की कामना नहीं की तो वह हमें भी सुखी नहीं रहने देगी। परंतु हमारे संस्थान में जितनी भी खोजें की है वह गरीब आदमी झोपड़ी में तथा बडे से बड़ा आदमी महल में सहजता से कर हमारे वेदों की संकल्पना - सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाःअर्थात् सब सुखी हो, सब निरोगी हो को साकार कर भारत को विश्व की उसी बुलन्दी पर पहुँचा जा सकता है, जहाँ व पुरातनकाल में जगतगुरु के रूप में स्थापित था।
हम संपूर्ण भारत में आयुष्यमान भव केन्द्र की स्थापना करना चाहते हैं। यदि आप हमारे विचारों से सहमत है तो इसे प्रसारित करें अौर जीवन का आनंद लें।

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